तलौडा में 50 महिलाओं ने घूंघट से की तौबा
जागरण संवाददाता, जींद : जिले के गांव तलौडा की महिलाओं ने सदियों से चली आ रही पर्दा प्रथा क
जागरण संवाददाता, जींद : जिले के गांव तलौडा की महिलाओं ने सदियों से चली आ रही पर्दा प्रथा को बाय-बाय करते हुए ऐतिहासिक पहल की। शादी के बाद ससुराल में सालों तक पर्दे में रहने वाली राजबाला, बबली, सुनीता, गुड्डी समेत करीब 50 महिलाओं ने मंच पर आकर घूंघट उतार दिया और संकल्प लिया कि भविष्य में वे कभी भी पर्दा नहीं करेंगी। यही नहीं, इन महिलाओं ने शपथ ली कि सार्वजनिक तौर पर या घर में गालियां देने वाले किसी भी पंच, सरपंच, विधायक या सांसद का खुलकर बहिष्कार किया जाएगा और अगले चुनाव में उन्हें वोट नहीं दिया जाएगा। यही नहीं, महिला संबंधी गालियां देने वाले पति का भी विरोध करेंगी और ऐसे लोगों के खिलाफ थाने में शिकायत करने से भी नहीं हिचकेंगी।
गांव बीबीपुर के पूर्व सरपंच सुनील जागलान द्वारा बीबीपुर मॉडल ऑफ विमेन एंपावरमेंट एवं विलेज डेवलपमेंट के तहत आयोजित कार्यक्रम में तलौडा से अलावा ढाडरथ, सिवाहा, बीबीपुर, खेड़ी तलौडा, हैबतपुर सहित दस गावों से सैकड़ों महिलाएं शामिल हुई। कार्यक्रम में खास बात यह रही कि इसमें मंच संचालन से लेकर हर कार्य महिलाओं ने बखूबी निभाया। महिलाओं ने सार्वजनिक तौर पर गालियों के किस्से भी बताए। महिलाओं ने कहा कि पुरुषों द्वारा आपसी लड़ाई और प्यार में दी जाने वाली महिला संबंधी गालियों को अब वे बर्दाश्त नहीं करेंगी। राजबाला ने कहा कि आजकल गाली देने का प्रचलन सा बना हुआ है। किसी बात में पुरुष महिलाओं से जुड़ी गाली देकर बात करते हैं। कोई गाली मां से शुरू होती है तो बहन से। अब किसी व्यक्ति ने ऐसी गाली दी तो थाने में उसके खिलाफ एफआईआर करवाई जाएगी। चाहे गाली देने वाला पति या परिवार का कोई भी सदस्य।
पांच रुपये के लिए, मां-बहन की गाली देने पर होती हैं हत्याएं
तलौडा गांव के सरपंच मदन लाल ने कहा कि अक्सर सुनने में आता है कि पांच रुपये के लिए हत्या कर दी। यह हत्या पांच रुपये के लिए नहीं, बल्कि मां-बहन की गाली देने के कारण की जाती है। गाली देने की हमारी मानसिकता बन चुकी है, हमें पता ही नहीं होता है कि कब हमारे मुंह से गाली निकल गई। इस संकीर्ण मानसिकता को खत्म करने के लिए खुद महिलाएं आगे आई और समानता के अधिकार के लिए उन्होंने अपने मुंह से पर्दा हटाया है।
अब दिमाग की लड़ाई लड़ें महिलाएं
मुख्य अतिथि पंचायती राज मंत्रालय की रुरल कम्यूनिकेशन स्ट्रेजिस्ट एवं मीडिया एक्सपर्ट उमा अय्यर रावला ने कहा कि पर्दे की क्या जरूरत है, व्यक्तित्व की बात कीजिए। जब मैं अपनी सीट पर बैठती हूं, भूल जाती हूं कि काली हूं, गौरी हूं, जींस पहननी है, साड़ी पहनना है, यह दिमाग की लड़ाई है। करोड़ों रुपये सेंक्शन करते समय दिमाग का इस्तेमाल करना पड़ता है, इसमें आदमी या औरत की क्या बात है। अगर कोई महिलाओं के बारे में गाली दी जाती है, तो उसकी मोबाइल में की गई रिकॉर्डिंग के आधार पर एफआईआर दर्ज होनी चाहिए। महिलाओं के प्रति दी जाने वाली गालियां समझाने से रुकती, तो 70 साल पहले रुक जाती। महिलाओं को अचार-पापड़ की प्रथा से बाहर आना होगा। महिलाएं शिक्षित होंगी, पढ़ेंगी-लिखेंगी, कंप्यूटर और बंदूक चलाएंगी। गोली मारेंगी और पुलिस में भर्ती होंगी। अब बेटी तय करेगी कि वह सिलाई-कढ़ाई करेगी या पढ़ाई करेगी।
ससुर पिता तो जेठ बड़े भाई समान, उनसे कैसा पर्दा
तलौडा की बहू संतोष ने कहा कि पर्दा प्रथा खत्म के लिए यह ऐतिहासिक कदम है। अब महिलाओं को खुद को आगे बढ़ना होगा। यह पर्दा प्रथा महिलाओं के लिए ही क्यों है। हम पर्दा किससे करें। ससुर हमारे पिता समान व जेठ बड़े भाई के समान है, उनसे पर्दा कैसा। समाज वाले अपनी सोच को बदलें। दूसरे की बहू-बेटी को अपने अपनी बहू-बेटी समझें। इस प्रथा को महिलाओं की इस पहल को बेशर्मी का नाम न देकर उनको सम्मान दें। अब हर किसी को जगाना होगा। नारी को उसका हक दिलाना होगा। पर्दा प्रथा और महिलाओं को गाली देना सामाजिक बुराई है।
बुजुर्ग महिलाओं समेत नई बहुओं ने खोला घूंघट
गांव तलौडा की 35 साल से कम उम्र की कई बहुओं ने भी मंच पर आकर घूंघट को बाय-बाय कर दिया। सुनीता, बबली, गुड्डी, मंजीत कौर, ¨पकी समेत कई बहु मंच पर आई और घूंघट खोलते हुए कहा कि अब कभी भी पर्दा नहीं करेंगी। इन महिलाओं का कहना था कि जब निगाहें पुरुषों की बुरी हैं तो महिलाएं पर्दा क्यों करें। वहीं, कई बुजुर्ग महिलाओं ने भी घूंघट उतार दिया। इन सभी महिलाओं को स्टेज पर बुलाकर सम्मानित भी किया गया।
यह तो मानसिक रोग निकला
गांव की 45 वर्षीय राजबाला ने कहा कि जब मैं अपने घर में थी तो अपनी भाभियों को घूंघट निकालते देखती थी। शादी के बाद इस गांव में बहू बनकर आई तो यहां घूंघट निकालना शुरू कर दिया। हम इसको रिवाज समझते थे। लेकिन यह तो मानसिक रोग निकला।
ये दिलाई गई शपथ : पुरुष समाज द्वारा महिला संबंधित गाली का विरोध करेंगे। ऐसे जनप्रतिनिधि को वोट नहीं देंगी, जो महिलाओं के संबंध में गाली देगा। उन गीतों का भी बहिष्कार किया जाएगा, जिनमें महिलाओं पर गलत शब्दों का इस्तेमाल किया गया है।
--वर्जन
यह कार्यक्रम अपराध मुक्त समाज की तरफ एक कदम है। इसमें रूटीन में देने वाली महिला संबंधी गाली पर महत्वपूर्ण निर्णय लिया है। एक प्रोजेक्ट बनाकर उमा अय्यर रावला को सौंपा है। इस प्रोजेक्ट में महिला सशक्तीकरण एवं ग्रामीण विकास से जुड़े हुए लगभग 100 ¨बदुओं का क्रियाकलाप है, जिसे अपनाने पर हर गांव महिला सशक्तिकरण के साथ अपने ग्रामीण क्षेत्र का विकास कर सकता है।
सुनील जागलान, कार्यक्रम के संयोजक
वर्जन
अब समय आ गया है कि महिलाओं को बंधन मुक्त करना है। यह प्रयास शुरू में 25 प्रतिशत भी बदलाव लाता है, तो यह बड़ा बदलाव होगा। पहले कन्या भ्रूण हत्या पर रोक लगाई गई थी। आज महिलाओं के लिए यह कदम उठाया है। ऐसे कार्यक्रमों से रूढि़वादी परंपरा को खत्म किया जा सकता है। उनके गांव के लिए यह कार्यक्रम होना गौरव की बात है।
मदन लाल, सरपंच, तलौडा