फाइलों में अटकी योजनाएं
जागरण संवाददाता, जींद : सत्ता बदलने के साथ शहर का सियासी मिजाज भी बदलता रहा है। कुछ नहीं बदला है, तो
जागरण संवाददाता, जींद : सत्ता बदलने के साथ शहर का सियासी मिजाज भी बदलता रहा है। कुछ नहीं बदला है, तो वह है शहर की फिजा। जी हां ओमप्रकाश चौटाला के बाद भूपेंद्र सिंह हुड्डा उसके बाद मनोहर लाल खट्टर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने। पिछले करीब डेढ़ दशक में प्रदेश की सत्ता के तीन चेहरे बदलने पर भी जींद शहर की फिजा में कोई बदलाव देखने को नहीं मिला है।
बंसीलाल के शासनकाल में घोषणा हुई, चौटाला के शासनकाल में आधारशिला रखी गई तथा हुड्डा के शासनकाल में काम शुरू हुआ तथा बीच में रुक गया। नई सरकार को सत्ता में आए करीब छह माह हो गए हैं। काम आज भी वहीं अटका है, जहां पूर्व की सरकार छोड़कर गई थी। हम बात कर रहे है शहर की जीवन रेखा समझे जाने वाले बाईपास व मिनी-बाईपास की। इन दो को यदि छोड़ भी दे तो शहर में न जाने ऐसी कितनी योजनाएं हैं, जो पिछले कई सालों से केवल फाइलों में ही बनती व बिगड़ती रही है। जिनमें पार्किग, ट्रैफिक सिस्टम व सीवरेज सिस्टम को मुख्य माना जा सकता है। पक्ष-विपक्ष के बीच विवादों व आरोप-प्रत्यारोपों के बीच शहर की सरकार की बैठकें होते हैं। बैठकों में पास होने वाली करोड़ों रुपये की राशि से विकास कार्य होने के दावे भी होते हैं, परंतु हकीकत में कहीं कोई विकास कार्य दिखाई नहीं देता। शहर की टूटी-फूटी सड़के, बदहाल सीवरेज व्यवस्था व सड़कों पर रेंगते वाहन, अव्यवस्था में व्यवस्था के दावों की पोल खोलते रहते हैं। हुडा क्षेत्र हो या फिर शहर के पास कालोनियां या फिर बाहरी व स्लम बस्ती, हर जगह अव्यवस्था ही अव्यवस्था नजर आती है। शहर की सरकार के नुमाइंदे न केवल इसे स्वीकार करते हैं, बल्कि इसके लिए सत्ता की साथ-साथ स्थानीय नेतृत्व को अधिक जिम्मेदार मानते हैं। अधिकतर लोगों का कहना है, कि सत्ता हाथ से जाने के बाद अपने ही नहीं पराये में भी जींद को अपनी कर्मभूमि बताने की होड़ मच जाती हैं। कोई जींद को प्रदेश की राजधानी बनाने का दंभ भरता है तो कोई विकास की गंगा बहाने के वादे। सत्ता मिलने के बाद जींद के लिए बड़े-बड़े वादे करने वाले जींद से मुंह मोड़ लेते हैं। जिस कारण प्रदेश के सबसे प्राचीन शहरों में से एक होते हुए जींद आज विकास की दृष्टि से प्रदेश का सबसे पिछड़ा शहर बनकर रह गया है।
पटियाला चौक निवासी सुनील कुमार का कहना है कि सरकार की अनदेखी के कारण जींद हर क्षेत्र में पिछड़ता जा रहा है। जब तक सरकार व स्थानीय नेता क्षेत्र के प्रति गंभीर नहीं होंगे, तब तक जींद का विकास संभव नहीं है।
गुरुद्वारा कालोनी निवासी अशोक कुमार का कहना है कि या तो स्थानीय प्रशासन व राजनेता सही ढंग से बात नहीं रख पा रहे हैं, या फिर सरकार जींद के विकास को लेकर गंभीर नहीं है। बॉक्स
टैक्सी स्टेंड के प्रधान अजय यादव का कहना है कि शहर में न तो पार्किग की कोई सही कोई व्यवस्था है। अनियंत्रित ट्रैफिक के कारण दिन भर सड़कों पर वाहन फंसे रहते हैं।
सैनी मुहल्ला निवासी विजय सैनी का कहना है कि राजनेताओं ने जींद को रैली स्थल बनाकर छोड़ दिया है। सत्ता से बेदखल होने के बाद नेताओं को जींद की याद आ जाती है तथा सत्ता में आने के बाद शहर को भूला दिया जाता है।
बाईपास निर्माण कार्य पूरा होने के बाद जींद की वास्तविक स्थिति में कुछ बदलाव हो सकता हैं, परंतु अब तक किसी भी पार्टी ने जींद की इन महत्वपूर्ण योजनाओं की तरफ ध्यान नहीं दिया।
विनोद आंशरी, पार्षद एवं पूर्व नप प्रधान।
संस्थाओं के अनुसार नप अपनी तरफ से सही काम कर रही हैं, परंतु कुछ योजनाएं व काम नप के अधिकार क्षेत्र से बाहर है। जिसमें चाह कर भी कुछ नहीं किया जा सकता। इसके लिए सरकार व प्रशासन को गंभीर प्रयास करने होंगे।
रमेश खट्टर नप उपप्रधान।
पिछले करीब दो दशक से प्रदेश की सत्ता में रहने वाली किसी भी सरकार व पार्टी ने जींद के विकास को प्राथमिकता नहीं दी। जिस कारण जींद की महत्वपूर्ण योजनाएं वर्षो से अधूरी पड़ी हुई हैं।
सुधीर कौशिक, पार्षद।
जींद में काम तो हुए हैं, परंतु जरूरत के अनुसार नहीं हुए। पिछले दस साल में शहर की कई बड़ी परियोजनाओं पर सरकार के स्तर पर काम नहीं हो पाया। प्रदेश की नई सरकार से जींद के विकास को गति मिलने की उम्मीद हैं।
अधूरी पड़ी प्रमुख योजनाएं
- ओवरब्रिज।
- बाईपास।
- मिनी बाईपास।
- विश्वविद्यालय विस्तार।
- अटल पार्क।
- खेल परिसर।
- जींद-सोनीपत रेलवे लाइन।
- रेलवे विद्युतीकरण
- फोरलेन
- पोलीक्लीनिक
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प्रस्तावित एवं घोषित योजनाएं
- ट्रांसपोर्ट जोन।
- पार्किग स्थल।
- ट्रैफिक सिस्टम।
- नरवाना-पटियाला व जींद- हांसी रेलवे लाइन।
- पोलिटेक्निक कॉलेज।
- औद्योगिक क्षेत्र
- बस अड्डा शिफ्टिंग।
- सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट।