विश्व रेबीज दिवस : एआरवी के टीकों की नहीं कमी
जागरण संवाददाता, झज्जर : कुछ दिनों एआरवी के टीकों को लेकर अस्पतालों में काफी संकट बन गया था। लेकिन स
जागरण संवाददाता, झज्जर : कुछ दिनों एआरवी के टीकों को लेकर अस्पतालों में काफी संकट बन गया था। लेकिन सरकार की तरफ से पिछले दिनों वेयर हाउसों में एआरवी के टीके उपलब्ध कराने के बाद अस्पतालों में सप्लाई पहुंच चुकी हैं। स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों की बात पर विश्वास किया जाए तो अस्पतालों में टीकों की कमी नहीं है। जबकि स्टाक कम रह जाता है तो इनकी डिमांड भेजते ही वेयर हाउस से टीके भेज दिए जाते हैं। सरकार की तरफ से एआरवी के टीके अस्पतालों में लगवाने के लिए एक टीके का शुल्क 100 रुपये निर्धारित किया गया है। जबकि बीपीएल परिवारों के लोगों को ये टीके मुफ्त लगाए जाते हैं।
सामान्य अस्पताल के चिकित्सकों का मानना है कि अगर किसी भी व्यक्ति को रेबीज से संक्रमित कुत्ते, बंदर या किसी अन्य जीव ने काट लिया हो तो उसे तुरंत एंटी रेबीज की वेक्सिन लगवानी चाहिए। अगर कुत्ते या बंदर के काटने के 24 से 48 घटे के अंदर वेक्सिन लगवाई जाती है तो उसका असर कम हो जाता है। किसी भी व्यक्ति को रेबीज से संक्रमित कुत्ते या बंदर ने काट लिया हो तो एआरवी के पांच इंजेक्शन लगवाने पड़ते हैं।
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ये है टीके लगवाने का शेडयूल
पहला इंजेक्शन कुत्ते या बंदर के काटने वाले दिन, दूसरा इंजेक्शन तीसरे दिन, तीसरा इंजेक्शन सातवें दिन, चौथा इंजेक्शन चौदहवें दिन व पांचवां इंजेक्शन 28 वें दिन लगाया जाता है। जबकि वेक्सिन कुत्ते या बंद के काटने के तुरंत बाद लगवाने या फिर छह घटे के अंदर लगवा लेना चाहिए। इसके लिए सरकारी अस्पतालों में सरकार की तरफ से सुविधा मुहैया करवाई गई है। जिले के सामान्य अस्पतालों, सीएचसी व पीएचसी पर एआरवी टीके लगाने की सुविधा दी गई है। जबकि सामान्य अस्पताल के आपातकालीन विभाग में वेक्सिनेशन की सुविधा भी मुहिया कराई गई है। वेक्सिन का आधा इंजेक्शन कुल्हे में लगाया जाता है और आधे इंजेक्शन को काटे हुए स्थान पर स्प्रे किया जाता है या काटे हुए स्थान पर लगाया जाता है।
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30 लोग पहुंचे टीके लगावाने
विश्व रेबीज दिवस के दिन अकेले झज्जर के सामान्य अस्पताल की ही बात की जाए तो दोपहर तक 30 लोग एआरवी के टीके लगवाने के लिए पहुंचे। कुत्ते व बंदरों के काटने से हर रोज घायल व्यक्ति सरकारी अस्पतालों में पहुंच रहे हैं। लेकिन ये निश्चित नहीं है कि ये कुत्ते या बंदर रेबीज से ही पीड़ित हो। स्वास्थ्य विभाग की तरफ से रेबीज से संक्रमित कुत्ते या बंदर के काटे मरीजों के लिए चार श्रेणी बनाई गई हैं। इनमें व्यक्ति की चमड़ी पर रेबीज पीड़ित कुत्ते या बंदर की लार गिर जाए या उस पर स्क्रेच लग जाए उसे पहली श्रेणी में शामिल किया गया है। कुत्ते या बंदर के काटने पर हल्का खून आने पर दूसरी श्रेणी में, मुहं व हाथ से अलग स्थान पर काटने से हुए जख्म वाले मरीज को तीसरी व मुहं तथा हाथ पर काटने वाले मरीज को चौथी श्रेणी में शामिल किया गया है। तीसरी व दूसरी श्रेणी में आने वाले मरीज को तो जितना जल्दी हो सके वेक्सिन लगवानी चाहिए।
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कभी भी आ सकते हैं रेबीज के लक्षण
अगर किसी भी व्यक्ति को रेबीज से संक्रमित कुत्ते, बंदर, लोमड़ी, सियार आदि किसी जानवर ने काट लिया और समय पर इलाज नहीं करवाया तो यह लापरवाही उस व्यक्ति के प्राणों के लिए घातक बन सकता है। क्योंकि अगर किसी व्यक्ति को रेबीज का संक्रमण हो गया तो उसकी मौत होना निश्चित है। अगर मुहं व हाथ पर काटा हो तो तुरंत इलाज करवाना चाहिए। क्योंकि हाथ व मुहं के आस पास रेबीज से संक्रमित कुत्ते या बंदर आदि ने काटा हो तो रेबीज के कीटाणु दिमाग तक जल्दी पहुंच जाते हैं। जब भी किसी व्यक्ति को रेबीज से संक्रमित कुत्ता या बंदर काटता है तो शरीर की बारिक नसें कट जाती हैं और रेबीज के कीटाणु उन कटी हुई नशों के माध्यम से दिमाग तक पहुंच जाते हैं। अगर ये कीटाणु दिमाग तक पहुंच गए तो समझो मौत निश्चित है। यह केवल इलाज में लापरवाही के कारण होता है। समय पर पूरा इलाज करवा लिया जाए तो व्यक्ति शत प्रतिशत रेबीज के संक्रमण से बच जाएगा। लेकिन इलाज समय पर नहीं करवाया तो इसका असर किसी भी उम्र में आ सकता है।