तारीफ तो मिली, मदद की दरकार
शैलेंद्र गौतम, झज्जर विंबलडन जूनियर के चैंपियन सुमित नांगल, पद्मश्री सुनील डबास और एशियाड के पदक
शैलेंद्र गौतम, झज्जर
विंबलडन जूनियर के चैंपियन सुमित नांगल, पद्मश्री सुनील डबास और एशियाड के पदक धारी बजरंग पूनिया जैसे खिलाड़ियों को पैदा करने वाली झज्जर की धरती पर एक और प्रतिभा ने जन्म लिया। जिसने बेहतर खेल की बदौलत देशभर में वाहवाही बटोरी।
रविंदर उर्फ भिंडा पहलवान के पिता फूल सिंह पोस्टमैन का काम करते हैं। दो संतानों में ये बेजोड़ खिलाड़ी सबसे बड़ा है। सिलानी के अखाड़े से निकलकर आज वह देश की राजधानी में भी अपनी चमक बिखेर चुका है पर सरकार उसे उतना खर्च भी मुहैया नहीं करा पा रही जिससे वो अपने फन को निखार सुशील, योगेश्वर व बजरंग के पद चिह्नों पर चल सके। भिंडा का सपना है कि वह एशियाड व ओलंपिक का मैडल जीते। इसके लिए उसे कड़ी मेहनत व खुराक की जरूरत है। दिल्ली में रहकर वह अपने खर्च पर प्रशिक्षण हासिल कर रहा है। सुशील, योगेश्वर व बजरंग खुद मान चुके हैं कि भिंडा में जबरदस्त प्रतिभा है। उसे दिल्ली में तराशा जा रहा है। लेकिन पिता फूल सिंह कहते हैं कि जब वो वर्ल्ड या एशियाड चैंपियन बनेगा तब तक उनका दीवाला पिट चुका होगा। वो अपना पेट काटकर भिंडा को हर वो सुविधा दे रहे हैं जिससे वो निखर सके।
अपने दादा मांगेराम से प्रेरणा पाकर भिंडा पहलवान उद्देश्य को हासिल करने में लगा हुआ है। वो राष्ट्रीय स्तर पर आयोजित जूनियर वर्ग की कुश्ती प्रतियोगिता में 7 स्वर्ण पदक झटक चुका है। जबकि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देश का गौरव बढ़ाते हुए उसने एक स्वर्ण व रजत पदक पर अपना कब्जा कायम रखा। झारखंड में हुई नेशनल कुश्ती प्रतियोगिता में सिलानी के पहलवान ने अपने प्रतिद्वंदी को पटखनी देते हुए स्वर्ण पदक हासिल करते हुए अपना दसवां पदक जीता।
सिलानी पाना केशो के भिंडा उर्फ रविंद्र पहलवान के पिता फूल डाकिया ने बताया कि झारखंड में हुई नेशनल कुश्ती प्रतियोगिता में स्वर्ण पदक हासिल कर उनके बेटे ने दिखाया कि वो क्या चीज है। उन्होंने बताया कि भिंडा ने सीनियर वर्ग की दहलीज पर कदम रखते ही स्वर्ण पदक विजेता बना और 60 किलोग्राम भार वर्ग में अपने प्रतिद्वंदी को धूल चटाते हुए 10 पदक धारी का खिताब भी अपने नाम किया है। उन्होंने बताया कि भिंडा ने अब तक जो भी किया उसकी एवज में उसे न तो कोई पैसा मिला और न ही मदद। परिवार का सपना है कि भिंडा देश का नाम रोशन करे। उसने दस पदक जीत दर्शाया भी है कि वो तिरंगे की धाक समूचे संसार में फैला सकता है लेकिन कोई उसकी मदद को आगे तो आए। उसे जो मदद मिल रही है वह ऊंट के मुंह में जीरे सरीखी ही है।