कागजों में सिमटी हैं सुविधाएं (मुद्दा)
जागरण संवाददाता, झज्जर : हरियाणा सरकार बेशक विजेता खिलाड़ियों को भारी भरकम रकम देकर दूसरों को चैंपियन
जागरण संवाददाता, झज्जर : हरियाणा सरकार बेशक विजेता खिलाड़ियों को भारी भरकम रकम देकर दूसरों को चैंपियन बनने के लिए प्रोत्साहित कर रही है। लेकिन धरातल पर देखा जाए तो स्पीड सहित तमाम दूसरी योजनाएं प्रतिभा को तराशने में नाकारा साबित हो रही हैं। चुनिंदा नामों की बात छोड़ दी जाए तो झज्जर में खेल के दम पर अपना कैरियर बनाने वाले खिलाड़ी बहुत कम हैं। सुनील डबास ने पद्मश्री लेकर जिले का मान बढ़ाया है। वो गुड़गांव के द्रोणाचार्य कॉलेज में प्रवक्ता भी हैं। झज्जर में तैनात रहे डीएसपी जोगिंदर सिंह का भी उदाहरण खुशकिस्मतों की श्रेणी में हैं। पहलवान बजरंग पूनिया, दुष्यंत, रविंद्रा उर्फ भिंडा ने खेल के दम पर अपनी पहचान तो बना ली लेकिन हरियाणा सरकार का योगदान किसी की सफलता में नहीं है। बजरंग, दुष्यंत व भिंडा दिल्ली के अखाड़ों में अपने खर्च पर प्रशिक्षण हासिल कर रहे हैं। जब वो जीतने लगे तो सरकार की नजर उन पर पड़ गई लेकिन किसी को तराशने का काम हरियाणा सरकार की योजना नहीं कर सकी। सुनील डबास कबड्डी की राष्ट्रीय कोच बनी। देखा जाए तो उनकी भी ट्रेनिंग उनके खर्च पर ही हुई। जब उन्हें पद्मश्री मिल गई तो सरकार ने पैतृक गांव में एच अकादमी खोल दी लेकिन वो आज भी नियमित कोच को तरस रही है। सुनील की सफलता का श्रेय लेने में सरकार नहीं चूकी लेकिन वो कोई ऐसा रास्ता तैयार नहीं कर सकी जो प्रतिभाएं तराश सकें। ये खिलाड़ी का खुद का बूता है जो वो मां बाप के पैसों से ट्रेनिंग लेकर बड़ा बनता है। अंतर राष्ट्रीय स्तर पर सफल हुआ तो बल्ले बल्ले अन्यथा गुमनामी के अंधेरे में गुम होने में उसे देर नहीं लगती। सफल होने वाले नाम गिने चुने हैं लेकिन उन नामों की लिस्ट खत्म नहीं होती जो सुविधा न मिलने से अपने सफर को बीच में छोड़ गए। कहने को झज्जर में जहांआरा स्टेडियम है और गांवों में भी कई स्टेडियम बने हैं लेकिन खिलाड़ियों के हश्र को देखकर या तो माता पिता उन्हें खेल के लिए प्रोत्साहित ही नहीं कर रहे और जो थोड़े बहुत हैं वो सुविधा न मिलने से बीच में सफर छोड़ जाते हैं। सुनील डबास खुद भी मानती हैं कि खिलाड़ी को जो सुविधा मिलनी चाहिए वो अमूमन नहीं मिल पाती है, बहुत सी प्रतिभाएं बीच में रास्ता बदल लेती हैं।