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विभागों में तालमेल की कमी से करोड़ो रुपये बर्बाद

जागरण संवाददाता, झज्जर : आप उखाड़ों हमें तो काम मिलेगा इसी तर्ज पर शहर के विकास के लिए तो करोड़ो रुप

By Edited By: Published: Sat, 18 Apr 2015 01:02 AM (IST)Updated: Sat, 18 Apr 2015 01:02 AM (IST)
विभागों में तालमेल की कमी से करोड़ो रुपये बर्बाद

जागरण संवाददाता, झज्जर :

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आप उखाड़ों हमें तो काम मिलेगा इसी तर्ज पर शहर के विकास के लिए तो करोड़ो रुपये खर्च किए जा चुके हैं। विभागीय तालमेल की कमी होने के चलते हो रहे विकास कार्यो से आमजन जरूर परेशान है लेकिन खुदाई अभियान के दौरान के टूटने वाली पेयजल लाइन व कटती जा रही टेलिफोन की केबलों को दुरूस्त करने वाले विभागीय व ठेकेदारों के कारिंदों को जरूर काम मिल रहा है।

लोकसभा चुनाव की सुगबुगाहट के साथ ही शहर की टूटी हुई सड़कों के अच्छे दिन आने की आस आमजन को जरूर बंधी थी। जिसका कुछ असर दिखाई भी दिया। कुछ सड़कों को निर्माण कार्य चला भी तो कुछ का कछुआ गति से चल रहा नाला निर्माण कार्य ने मामला खटाई में डाल दिया। चुनावी मौसम होने के कारण बेलगाम तरीके से व ठेकेदारों की मनमानी से शहर के विकास कार्य चलते रहे। कभी दूसरे स्थान पर काम जोड़ने तो कभी बजट की कमी होने का रोना रोते हुए कई कार्य अधर में ही लटके रहे। चुनावों की तैयारियों में जुटें अधिकारियों को इन सुध लेने का मौका कम ही मिला। कुछ समय उपरांत विधानसभा चुनाव की दस्तक होते ही फिर शहर को चमकता दिखाने के लिए कई सड़कों को निर्माण हुआ, हालांकि इस दौरान उनकी गुणवता को लेकर जरूर सवाल उठते रहे। लेकिन अधिकारी चुनावों की तैयारियों में इतने मशगूल थे कि इस ओर कम ही ध्यान दिया गया। पुराने शहर की बात की जाए तो छिकारा चौक से सिलानी गेट क्षेत्र को जोड़ने की भूमिका पुराना नेशनल हाइवे, सिलानी गेट से कुलदीप चौक से दिल्ली गेट व दिल्ली गेट से छारा चुंगी होते हुए बस अड्डा की ओर आने वाली बाहरी सड़कों व बाजार वाली मुख्य सड़कों के इर्द गिर्द ही आबादी थी। शहर की तीनों प्रमुख सड़के कहीं नालों के जुड़ाव के लिए, तो कहीं सीवर लाइन दबाने के लिए या फिर पेयजल सप्लाई व्यवस्था सुधारने के नाम पर खुदाई की गई है। लेकिन कार्य पूरा होने के उपरांत इनकों दुरूस्त करने न तो ठीक तरीके पीडब्ल्यूडी की ओर से निभाई गई और न ही खुदाई करने वाले विभाग ने इसकी जहमत उठाई। शहर में विकास कार्य हुए बजट भी खूब खर्च हुई लेकिन शहरवासियों को विकास के नाम पर तो केवल गड्ढे ही मिले दिखाई देते हैं। ये अलग बात है कि इन विकास कार्यो के दौरान किन किन लोगों को कितना लाभ मिला। फौरी तौर पर देखा जाए तो पुराने शहर की अधिकांश सड़कों व गलियों में गड्ढों की भरमार है। ऐसे में झज्जर को गड्ढों को शहर कहने में कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी।

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अधिवक्ता देवेंद्र रोहिला का कहना है कि विभागीय तालमेल के साथ ही विकासकार्य होने चाहिए। कोई बना रहा है तो कोई उखाड़ रहा है इस नीति के तहत कागजों में तो विकास कार्यो की भरमार हो जाती है, लेकिन धरातल पर किस विकास कार्य का कितने लोगों को कितना लाभ हुआ इसका भी आंकलन होना चाहिए। क्योंकि विकास में नाम पर लगाने वाला पैसा तो आमजन का ही है।

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शहर वासी रमेश चंद्र कौशिक का कहना है कि शहर में विकास के नाम पर पैसा तो खर्च होता है। लेकिन अधिकारियों की लापरवाही व ठेकेदारों की मनमानी से होने वाले विकास कार्य आमजन को कम ही रास आ रहे है। इन दिनों शहर में देखा जाए तो चलो उखाड़ों हमें तो काम मिलेगा की ही नीति दिखाई देती हैं। क्योंकि खुदाई के दौरान कभी पेयजल सप्लाई बाधित होती है तो कभी टेलिफोन व्यवस्थाएं ठप्प पड़ जाती है। इस दौरान ठेकेदारों के कारिंदों व विभागीय कर्मचारियों को मरम्मत का काम जरूर मिल जाता है। लेकिन इस मरम्मत के कार्य पर जो खर्चा आता है वह भी आमजन की जेब से ही निकलता है। ऐसे शहरवासियों को विकास कार्य कम ही रास आ रहें हैं।


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