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बादली में सबसे ज्यादा घमासान

By Edited By: Published: Thu, 24 Jul 2014 01:00 AM (IST)Updated: Thu, 24 Jul 2014 01:00 AM (IST)
बादली में सबसे ज्यादा घमासान

शैलेंद्र गौतम, झज्जर

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दिल्ली से सटे इस जिले में चारों सीटें प्रतिष्ठा का सवाल बन रही हैं, क्योंकि इसे सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा का अपना इलाका माना जाता है तो सांसद दीपेंद्र सिंह की कर्मस्थली। रोहतक लोकसभा क्षेत्र में हुए विकास को लेकर सारे हरियाणा में कांग्रेसियों के बीच हाल में आलोचना का विषय बने रहे हैं। उनकी पूरी कोशिश होगी कि जिले की चारों विधानसभा सीटों झज्जर, बहादुरगढ़, बादली और बेरी पर जीत का परचम लहराया जाए। लेकिन इस बार के टिकट के लिए सबसे ज्यादा कांटे की टक्कर बादली विधानसभा क्षेत्र में रहने वाली है।

बीते विधानसभा चुनाव की बात की जाए तो मौजूदा विधायक नरेश शर्मा ने तेरह हजार से ज्यादा के अंतर से निर्दलीय बिजेंद्र चाहर को हराया था। बीते लोकसभा चुनाव में दीपेंद्र तमाम विकास के बावजूद भाजपा के ओम प्रकाश धनखड़ से महज 11 हजार से लीड ले सके थे। तब के वोटों का अंतर ही सीट को जबरदस्त हॉट बना रहा है। आलम यह है कि दो बार विधानसभा सीट जीतने के बाद भी नरेश शर्मा का टिकट काटने वालों की कांग्रेस में लाईन लगी है। भाजपा की बात की जाए तो खुद को नरेंद्र मोदी का सबसे नजदीक बताने वाले ओम प्रकाश धनखड़ यही से चुनाव मैदान में ताल ठोक रहे हैं। उनका टिकट पक्का माना जा रहा है इस वजह से भाजपा में फिलहाल उहापोह की स्थिति बनी हुई है। टिकट की आस लेकर कुछ अर्सा पहले भाजपा में शामिल हुए बंसीलाल के समधी मनफूल सिंह के बेटे बिजेंद्र चाहर अभी लगभग कोप भवन में हैं। वे फिलहाल कहीं नजर नहीं आ रहे। पिछले चुनाव में वे फाईट में तो नहीं रहे लेकिन निर्दलीय लड़कर बीस हजार वोट का जुगाड़ करके चर्चाओं में जरूर आ गए। ओम प्रकाश धनखड़ की कीमत पर उन्हें टिकट मिलेगा अभी मुमकिन नहीं है।

इनेलो की बात की जाए तो मंत्री तथा पांच बार विधायक रहे धीरपाल की मृत्यु के बाद समीकरण काफी बदले हैं। पहले टिकट की लाईन काफी लंबी हो चली थी लेकिन दो दिन पहले अभय चौटाला के हाथों धीरपाल की पत्नी की इनेलो में एंट्री के बाद लोगों को लगता है कि उन्हें चुनाव लड़ाने के लिए ही पार्टी में शामिल किया गया है। इनेलो को लगता है कि धीरपाल पांच बार विधायक रहे इसलिए उनका हलके में काफी प्रभाव रहा है। आज वो नहीं रहे तो सहानुभूति की लहर पर सवार होकर उनकी पत्नी जीत सकती हैं। यह करिश्मा पहले झज्जर विधानसभा क्षेत्र में हो चुका है। जब कांता देवी ने अपने पिता की मौत के बाद हुए उप चुनाव में धमाके दार जीत दर्ज की थी। सामने के सारे प्रत्याशियों की जमानत तक जब्त हुई थी। वैसे टिकट के लिए पार्टी में लाईन अभी तक मौजूद है, क्योंकि अभय ने धीरपाल की पत्नी को टिकट का ऐलान नहीं किया है। पहले भाजपा में रहे संजय कबलाना टिकट के जुगाड़ में हैं। उनके अलावा रेस में युवा जिलाध्यक्ष बबरे पहलवान भी हैं।

इस दफा निर्दलीय तौर पर कई लोग ताल ठोक सकते हैं। धीरपाल की जीत का सफर निर्दलीय नरेश शर्मा ने तोड़ा था। कांग्रेस, भाजपा तथा इनेलो के कई चेहरे या तो निर्दलीय या फिर कांडा या विनोद शर्मा की पार्टी से लोगों के बीच खड़े हो सकते हैं।


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