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..तो कैसे रुक पाएगा बच्चे का खून

By Edited By: Published: Wed, 16 Apr 2014 11:15 PM (IST)Updated: Wed, 16 Apr 2014 11:15 PM (IST)
..तो कैसे रुक पाएगा बच्चे का खून

जागरण संवाददाता, झज्जर : सामान्य अस्पताल में अगर कोई हीमोफीलिया से पीड़ित बच्चा घायल होकर आ जाए, तो उसके उपचार के लिए खास व्यवस्था नहीं है। ब्लड बैंक में ऐसे बच्चों के लिए जरूरी ब्लड का फैक्टर-8 रखने की व्यवस्था नहीं है। जब तक इस फैक्टर की व्यवस्था हो, तब तक पीड़ित बच्चे की ब्लीडिंग रोक पाना मुमकिन नहीं होगा।

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इस बीमारी से पीड़ित बच्चों के चोट लगने की स्थिति में खून का बहाव रोकने के लिए ब्लड के फैक्टर-8 की आवश्यकता होती है। यह फैक्टर खून की यूनिटों से ही निकाला जाता है। जिन बच्चों के खून में इस फैक्टर की उपलब्धता नहीं होती, उनके खून के बहाव को रोकना आसान नहीं होता। यह एक आनुवांशिक बीमारी है, जो लड़कियों की तुलना में लड़कों में अधिक पाई जाती है। इस बीमारी से पीड़ित बच्चों का ब्लड बैंक में पंजीकरण होता है, ताकि आपात स्थिति में उनकी मदद की जा सके। हालांकि अभी तक सामान्य अस्पताल के ब्लड बैंक में इस बीमारी से पीड़ित किसी बच्चे का पंजीकरण नहीं हुआ है। इसके बावजूद अगर ऐसा कोई बच्चा इलाज के लिए आता है, तो यहां से उसे इस तरह की कोई सहायता नहीं मिल सकती। जिले में ऐसे मामले सामने नहीं आने के लिए अस्पताल प्रशासन की ओर से इस बीमारी से निपटने की दिशा में कोई कदम भी नहीं उठाए गए हैं।

यह है हीमोफीलिया

सिविल सर्जन डा. रमेश धनखड़ ने बताया कि यह बीमारी जन्मजात होती है। इस बीमारी से पीड़ित बच्चों के खून में ब्लड की क्लॉटिंग करने वाला तत्व 'फैक्टर-8' नहीं होता। यह तत्व खून को गाढ़ा करने का काम करता है। इस बीमारी से पीड़ित बच्चे को अगर चोट लग जाए, तो उसका खून रोक पाना आसान नहीं होता। इसी फैक्टर के सहारे खून का बहाव रोका जा सकता है।

बन आती है जान पर

इस बीमारी से पीड़ित बच्चों की जिंदगी लगातार दांव पर लगी रहती है। उन्हें काफी संभलकर रखना पड़ता है। चोट से बचाना बहुत जरूरी होता है। एक बार चोट लगने के बाद अगर खून बहने लगता है, तो खून का बहाव रोकना मुश्किल हो जाता है। खून के अधिक बहाव के कारण बच्चे की जान भी जा सकती है। ऐसे बच्चों को घर से बाहर निकालना भी किसी जोखिम से कम नहीं होता।

कमजोरी के शिकार भी

अगर हीमोफीलिया से पीड़ित बच्चे को बार-बार चोट लगती है, तो उसमें खून की कमी लगातार बनी रहती है। बच्चा कमजोर हो जाता है। खून की कमी के कारण वह दिमागी रूप से भी कमजोर हो जाती है। उसकी मांसपेशियां कमजोर हो जाती हैं। शरीर के जोड़ों से होने वाला रक्तस्राव उनके लिए ज्यादा घातक होता है।

बड़े ब्लड बैंक की जरूरत

फैक्टर-8 की व्यवस्था बड़े ब्लड बैंकों में ही संभव है। खून के इस कंपोनेंट को ब्लड की यूनिटों से ही निकाला जाता है। जहां ब्लड का टर्नओवर ज्यादा होता है, वहीं इस कंपोनेंट की व्यवस्था होती। सामान्य अस्पताल का टर्नओवर करीब 18 सौ यूनिट ही है, जबकि इस फैक्टर के लिए 5 हजार यूनिट क्षमता वाले ब्लड बैंक की जरूरत होती है। साथ ही इस कंपोनेंट के लिए ब्लड बैंक को अलग से लाइसेंस लेना पड़ता है, जिसकी प्रक्रिया भी काफी जटिल है।

अभी तक ब्लड बैंक में ऐसे किसी बच्चे का पंजीकरण नहीं हुआ है। हमारे पास हीमोफीलिया से निपटने के लिए जरूरी कंपोनेंट उपलब्ध नहीं हैं। यह बड़े ब्लड बैंकों में ही मिल सकते हैं।

-इंदिरा हसीजा, इंचार्ज ब्लड बैंक।


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