आस्था की डगर पर मन्नतों की मंजिल
सुरेंद्र सोढी, हिसार
ये आस्था की डगर है। नंगे पांव, कंधों पर कावड़, सैकड़ों किलोमीटर का रास्ता और बम-बम भोले का उन्माद भरा मंत्र। पहाड़ियों से समतल तक ये मन्नतों की मंजिल सैकड़ों सालों से बदस्तूर जारी है। श्रावण मास में शिवलिंग पर जल अभिषेक की परंपरा आदि काल से है। शिव की महिमा से अभिभूत भक्त मनोकामना पूर्ति के लिए ये डगर अपनाते हैं।
सूर्यनगर कालोनी के सुभाष उर्फ काला का कुटुंब चार पीढि़यों से हर वर्ष कावड़ लेने हरिद्वार जाता है। कहना यह कि पिता, दादा, परदादा और उनके दादा तक की यह आस्था आगे भी जारी रहेगी। शिव भगवान के भक्त अपने इष्ट को प्रसन्न करने के लिए एक जमाने में पैदल चलकर हरिद्वार से गंगाजल लाते थे। समय बदला, जमाना भी परंतु आस्था अपनी जगह अडिग है। गंगाजल लाने की परंपरा आज भी उसी डगर पर है। सैकड़ों साल पहले बांस के दोनों ओर जल की हांडी बांध कर लाने की तकनीक अब बदल गई है। बांस के दोनों ओर गंगाजल की हांडी के साथ जरूरत के सामान और सुविधा ने कांवड़ का स्वरूप बदल दिया। फिर ये कांवड़ सजने लगी और अब सौ रुपये से एक लाख रुपये तक की कांवड़ लेकर शिवभक्त शहर पहुंच रहे हैं। हरिद्वार से गंगाजल लाने के साधनों में भी बदलाव आया है। पैदल लाते हुए मनोकामना अनुसार कई प्रकार से गंगाजल मंदिरों तक लाया जाता है।
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पहली बार हिसार पहुंची शिव की पालकी
बांस की डंडी से कांवड़ में तब्दील हुई कांवड़ अपने रंग-बिरंगे स्वरूप से श्रावण माह में पूरे माहौल को रंगीन कर देती हैं। पहली बार नगर में तीन श्रद्धालु पालकी कांवड़ लेकर आए हैं। इसके अलावा झूला कांवड़, बैठी कांवड़, खड़ी कांवड़ व डाक कांवड़ का आना जारी है।
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सौ से दस हजार की कांवड़
शहर में सौ रुपये से लेकर दस हजार रुपये तक की कांवड़ में गंगाजल लाया गया है। क्रांतिनगर वासी सुनील के अनुसार हरिद्वार में एक से 11 लाख रुपये तक की कांवड़ भी तैयार की जाती है। वहां करोड़ों रुपये की कांवड़ तैयार होती है। जिसकी जितनी श्रद्धा होती है, ले आता है।
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गंगाजल लाने के बदलते साधन
-झूला कांवड़ : पैदल चलते हुए श्रद्धालु राह में कहीं पड़ाव आने पर किसी ऊंची जगह कांवड़ स्थापित करता है।
-बैठी कांवड़: इसे जमीन पर रखा जा सकता है।
-खड़ी कांवड़ : इसे आराम करते हुए भी कंधे पर ही रखना पड़ता है।
-डाक कांवड़ : किसी वाहन में रखकर लाई जाने वाली कावड़।
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कैलाश पंचांग के गणितज्ञ पंडित देव शर्मा अनुसार 25 जुलाई को रात 12:12 पर विशेष काल शुरू
शुक्रवार की रात 12 बजकर 12 मिनट से 12:54 तक विशेष काल होगा। जिसमें जलाभिषेक उत्तम होगा। प्रात:काल 5 बजकर 47 मिनट से 10 : 52 तक चर, लाभ अमृत का चावड़िया है। इस बीच 9 बजकर 48 मिनट सिंह लगन की उपस्थिति विशेष पूजा-अर्चना के लिए श्रेष्ठ होगी।