मन को भा रहे कैरेबियाई देशों के भोजपुरी गीत
पूनम , गुरुग्राम किसी देश या समाज की संस्कृति उसमें रहने वाले लोगों के दिलों में बसती है। लगभग
पूनम , गुरुग्राम
किसी देश या समाज की संस्कृति उसमें रहने वाले लोगों के दिलों में बसती है। लगभग दो सौ साल बाद भी कैरेबियाई भारतीय प्रवासियों ने अपनी संस्कृति को जिस जज्बे से जिंदा रखा, वह इस बात की गवाह है कि स्मृतियां दुनिया की तमाम भौतिक चीजों से ज्यादा स्थायी और गहरी होती हैं। ब्रिटिश शासन काल में भारत के उत्तर प्रदेश, बिहार आदि राज्यों से मजदूरी के लिए कैरेबियाई देशों- फिजी, सूरीनाम, ट्रिनिडाड में ले जाए गए मजदूरों के वंशजों ने आज भी अपनी संस्कृति को बचाए कर रखा है। पश्चिमी सभ्यता का प्रभाव पड़ने के बावजूद उनके गीत-संगीत में भोजपुरी का प्रभाव बना हुआ है।
गुरुग्राम स्थित अमेरिकन इंस्टीट्यूट ऑफ इंडियन स्टडीज (एआरसीसी) ने आर्काइव एंड रिसर्च सेंटर फॉर एथनोम्यूजिकोलॉजी ने उन देशों में गाए जाने वाले गीतों पर शोध किया है। शोध में मौलिक गीतों की श्रृंखला रिकॉर्ड की गई है। जिन्हें प्रवासी और संगीत विषय से गुरुग्राम के सामुदायिक रेडियो 'गुड़गांव की आवाज' पर कार्यक्रम 'सारा आसमान हमारा' में प्रस्तुत किए जाते हैं। गुरुग्राम में लाखों की संख्या में रह रहे पूर्वांचल के लोगों के लिए यह एक सुखद अनुभूति है।
'गुड़गांव की आवाज' शोध करने वाले संगठन एआरसीसी की एसोसिएट डायरेक्टर जनरल डॉ. शुभा चौधरी की इस मेहनत को लोगों तक पहुंचा रहा है। कार्यक्रम में गुरुग्राम समेत रेडियो सुनने वाले सभी प्रवासियों को भी इस परिचर्चा से जोड़ा है। जो इस संदर्भ में अपने विचार रख सकें, कि उन्होंने किस तरह अपने लोक संगीत व संस्कृति को अपने गांव से दूर कायम रखा। डॉ. शुभा चौधरी बताती हैं कि उन देशों में जाने वाले मजदूर परिवारों के साथ महिलाएं भी गई होंगी। अपने साथ वे केवल अपने सामान की पोटली ही नहीं अपनी संस्कृति और संगीत भी ले गए। भोजपुरी अंचल के ग्रामीण गीत अपने मूल स्वरूप में वहां गाए जाते हैं। इस शोध में उन पहलुओं की भी पड़ताल है कि कैरेबियाई देशों में वो गीत (जिनमें ज्यादातार भोजपुरी हैं) अब उनका स्वरूप कैसा है। दिलचस्प यह है कि बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश में वे गीत उसी सुर और बोल के साथ गाए जाते हैं। जिस तरह कैरेबियाई देशों में गाए जाते हैं
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यह कार्यक्रम यूनेस्को की मदद से तैयार कर रहे हैं। इसमें अमेरिकन इंस्टीट्यूट ऑफ इंडियन स्टडीज के शोध पर आधारित है। 1830 से 1920 के बीच त्रिनिनाद, मॉरिशस में अपने देश से काफी संख्या में ले जाए गए थे। उनमें ज्यादातर पूर्वांचल के हैं। प्रवासियों ने वहां जो संगीत कायम किया वह आज भी उसी रूप में है। हमलोग परिचर्चा के साथ उस संगीत की श्रृखंला प्रस्तुत कर रहे हैं, जो गुरुग्राम और पूरे देश में रहने वाले पूर्वांचल के लोगों को दिलचस्प लगेगी। यह श्रृंखला शुक्रवार को सुबह 10.30 बजे प्रसारित कर रहे हैं। पहले एपिसोड में प्रवास की यादें और कैरेबियाई देशों में भोजपुरी संगीत पर चर्चा की गई।
- आरती जयमान, स्टेशन डायरेक्टर गुड़गांव की आवाज।