नकदी का दर्शन अब नहीं आसान
जागरण संवाददाता, गुरुग्राम : नोटबंदी को एक महीने हो गए। उम्मीद थी कि एक सप्ताह में ही हालात सामान
जागरण संवाददाता, गुरुग्राम : नोटबंदी को एक महीने हो गए। उम्मीद थी कि एक सप्ताह में ही हालात सामान्य हो जाएंगे पर एक माह बाद भी हालात जस के तस हैं। अंतर है तो इतना कि पहले नोट बदलने के लिए लाइनें लगती थीं, अब पैसे निकालने के लिए लाइनें लगती हैं। कैशलेस ट्रांजेक्शन में ही लोगों को उम्मीद नजर आ रही है।
गत महीने आठ नवंबर की रात 12 बजे से नोटबंदी लागू है। इसके बाद से बैंकों एवं एटीएम के सामने प्रतिदिन लंबी-लंबी लाइनें लग रही हैं। लोगों ने अपने पुराने नोट बैंकों में जमा करा दिए। अब नए नोट निकालने के लिए जब बैंक में पहुंच रहे हैं तो कैश नहीं मिलता। प्रतिष्ठानों ने अपने कर्मियों का वेतन उनके अकाउंट में डाल दिया है लेकिन कैश की किल्लत की वजह से कर्मचारियों को कैश नहीं मिल पा रहा है। घंटों लाइन में लगने के बाद भी जब नंबर आता है तो किसी को 20 हजार रुपये की जगह पांच हजार तो किसी को दस हजार रुपये दिए जाते हैं। अधिकतर को घंटों लाइनों में लगने के बाद कुछ भी नसीब नहीं होता है क्योंकि नंबर आने से पहले ही कैश खत्म हो जाता है। यह हाल शहर से लेकर गांव तक के सभी सरकारी एवं निजी बैंकों का है।
शोपीस बनकर रह गए एटीएम
कुछ दिनों तक एटीएम ही नए नोटों के हिसाब से तैयार नहीं थे। अब जब सभी 1306 एटीएम तैयार हो चुके हैं तो कैश ही नहीं है। अधिकतर एटीएम में पिछले दस-बारह दिनों से एक बार भी कैश नहीं डाला गया है। लोग कैश निकालने के लिए सुबह से लेकर देर रात तक भटक रहे हैं। लोगों का घर चलाना तक मुश्किल हो गया है। शिवाजी नगर निवासी राजेश कुमार एवं ओम ¨सह कहते हैं कि वे लोग मकान का किराया दस तारीख तक देते हैं। पिछले महीने नहीं दे पाए। इस महीने भी उम्मीद कम ही दिखाई दे रही है। इससे मकान मालिक के साथ संबंध खराब हो रहा है। न बैंक में कैश है और न ही एटीएम में। सेक्टर 10 निवासी अमित कुमार ने बताया कि वह पिछले चार दिनों से बैंक के सामने लाइन में लग रहे हैं। दो से तीन घंटे लाइन में लगने के बाद भी पता चलता है कि कैश खत्म हो गया। मंगलवार को रात 12 बजे तक कम से कम 25 एटीएम के चक्कर लगाए लेकिन कहीं भी कैश नहीं मिला। साउथ सिटी निवासी जसबीर ¨सह कहते हैं कि नोटबंदी अच्छा है लेकिन इसके लिए तैयारी न करना अब सभी को महंगा पड़ रहा है। पहले तैयारी करनी चाहिए थी फिर नोटबंदी लागू करना चाहिए था। 80 प्रतिशत से अधिक कार्य नकदी पर आधारित हैं। कैशलेस ट्राजेक्शन ही अब विकल्प है।
जब कैश पीछे से ही भरपूर नहीं आ रहा है, फिर कहां से दें। लोगों की परेशानी जायज है। अधिक से अधिक लोगों को कैश उपलब्ध हो सके, इसके लिए किसी को 20 हजार की जगह दस या पांच हजार रुपये दिए जाते हैं। कैश की कमी से ग्राहक सेवा पूरी तरह प्रभावित है। उम्मीद है अगले सप्ताह तक स्थिति में सुधार आने की।
-डॉ. राजेश भोला, वरिष्ठ प्रबंधक, बैंक ऑफ बड़ौदा।