शहीद दलीप ¨सह के शहादत दिवस पर विशेष = भारत चीन युद्ध में 15 चीनी सैनिकों को मारकर शहीद हुए दलीप ¨सह
डॉ. ओम प्रकाश अदलखा, पटौदी शहीदों एवं सैनिकों का गढ़ पटौदी क्षेत्र एक ऐसा क्षेत्र है जिसके वीर सै
डॉ. ओम प्रकाश अदलखा, पटौदी
शहीदों एवं सैनिकों का गढ़ पटौदी क्षेत्र एक ऐसा क्षेत्र है जिसके वीर सैनिकों की मिसालें पूरे देश में दी जाती हैं। एक ऐसे ही वीर हुए हैं जटौली निवासी जाबांज दलीप ¨सह जिनके विवाह के दौरान उन्हें भारत-चीन युद्ध के लिए बुलावा आ गया एवं वे मातृभूमि की रक्षा के लिए वैवाहिक सुख छोड़कर यूनिट वापिस लौट गए। चीन के साथ युद्ध में 15 हमलावर चीनी सैनिकों को मौत के घाट उतार कर दुश्मन देश के सैनिकों की गोलियों से शहीद हो गए। शहीद दलीप ¨सह की शहादत पर इस क्षेत्र को ही नहीं अपितु पूरे देश को गर्व है। कल रविवार 20 अक्टूबर को उनका 54 वां शहादत दिवस उनके पैतृक गांव जटौली में श्रद्धा एवं देशभक्ति की भावना से ओतप्रोत होकर मनाया जाएगा। आश्रम हरि मन्दिर संस्थाओं के संचालक महामण्डलेश्वर स्वामी धर्मदेव महाराज के सान्निध्य में मनाए जाने वाले इस आयोजन में मुख्य अतिथि के रूप में विधायक उमेश अग्रवाल तथा विधायक बिमला चौधरी सहित अनेक राजनेता एवं गणमान्य लोग भाग लेंगे।
उल्लेखनीय है कि शहीद दलीप ¨सह का जन्म 2 फरवरी 1941 को स्वर्गीय ठाकुर छज्जु ¨सह-मुंकन्दी देवी दम्पति के घर हुआ। पारिवारिक संस्कारों के कारण उनमें देश प्रेम की भावना कूट-कूट कर भरी हुई थी। उनके पिता स्वर्गीय ठाकुर छज्जु ¨सह भी आठ कुमायुं रेजीमेंट में रहकर देश की सेवा कर चुके थे। 14 अक्टूबर 1959 को दलीप ¨सह सेना में भर्ती हो गए तथा दूसरी राजपूत रेजीमेंट के जवान बने। उसका विवाह 21 जून 1962 में थोरा बंकापुर के ठाकुर टूकी ¨सह की बेटी रामावती से हुआ। भारत चीन में संभावित युद्ध के कारण उनके विवाह के पूर्व ही उन्हें रेजीमेंट में वापिस लौटने का संदेश आ गया। इस पर वे विवाह की रस्म पूरी कर एवं वैवाहिक सुख छोड़कर मातृभूमि की रक्षा के लिए वापिस रेजीमेंट लौट गए। भारत चीन युद्ध के दोरान नामकाचू सेक्टर पर उनका आमना सामना चीनी सेना से हुआ। इस युद्ध में उनके अनेकों साथी शहीद हो गए। साथी सैनिकों की शहादत के बाद भी दलीप ¨सह हमलावर सैनिकों को मुंह तोड़ जवाब देते रहे तथा उन्होंने 15 चीनी सैनिकों को मार गिराया। गोला बारूद खत्म होने पर चीनी सैनिकों ने उन्हें घेर लिया तथा गोलियों से छलनी कर दिया। उन्हें बीस गोलियां लगीं। उनकी शहादत पर क्षेत्र को ही नहीं अपितु पूरे देश को नाज है। ऐसे वीर सपूत का कल 54 वां शहादत दिवस मनाया जा रहा है।
शहीद की विधवा रामावती भी शहीद दलीप ¨सह से कम पूज्य नहीं है क्षेत्र में शहीद दलीप ¨सह की जहां शहादत के किससे सनाए जाते हैं वहां शहीद की विधवा रामावती की चर्चा भी कम नहीं होती। यद्यपि विवाह के समय रामावती की आयु काफी कम थी तथा उन्होंने वैवाहिक सुख भी नहीं भोगा था। यहां तक कि वे अपने पति का चेहरा भी ठीक से नहीं देख पाई थीं। ऐसे में दलीप ¨सह की शहादत के बाद लोगों ने उन्हें पुर्नविवाह की सलाह दी परंतु उन्होंने पुर्नविवाह से साफ मना कर दिया एवं पूरी उम्र वैधव्य जीवन जीया। रामवती ने पति की शहादत के बाद हमेशा अपनी ससुराल में ही रही। पति के प्रति अगाध प्रेम की जीवन में ऐसी मिसालें बहुत कम देखने को मिलती हैं।