आवास :फाइलों में बंद रहीं आवास विकास योजनाएं
आदित्य राज, गुड़गांव: साइबर सिटी में आम आदमी को आवास उपलब्ध की योजनाएं तो कई बनाई गई, लेकिन प्रशास
आदित्य राज, गुड़गांव: साइबर सिटी में आम आदमी को आवास उपलब्ध की योजनाएं तो कई बनाई गई, लेकिन प्रशासनिक उदासीनता के चलते फाइलों से बाहर नहीं निकल पाई। आवास की उम्मीदें लगाए बैठे लोगों को इस साल भी निराश ही होना पड़ा। अब निराशा के साथ इस साल को विदा कर रहे लोग नए साल से उम्मीदें बांध रहे हैं। ये उम्मीदें नए साल में सरकार के लिए चुनौती होंगी। हाउसिंग योजनाओं पर काम शुरू करना होगा। यदि इस पर ध्यान नहीं दिया गया तो अवैध कालोनियों का विस्तार रोकना असंभव होगा।
कई वर्षो से साइबर सिटी व आसपास में आम लोगों के लिए आवासीय सुविधा उपलब्ध कराने की बात चल रही है। साल दर साल बीतने के बाद भी इस दिशा में उपयोगिता या उत्पादक प्रयास नहीं किया गया। अब स्थिति यह है कि जिन लोगों की बदौलत गुड़गांव आज साइबर सिटी है, वे लोग किराए पर ही रहने को मजबूर हैं या फिर अवैध कालोनियों में मकान बनाने को मजबूर हैं।
काम करने को राजी नहीं
प्रदेश की कांग्रेस सरकार ने जाते-जाते एफोर्डेबल हाउसिंग स्कीम के तहत 20 बिल्डरों को लाइसेंस जारी कर दिया था। लेकिन अधिकांश बिल्डर काम करने को राजी नहीं हैं। बिल्डरों को तीन साल के भीतर फ्लैट बनाकर देने हैं। प्रति फ्लैट कीमत 20 से 25 लाख रुपये तक निर्धारित है। कुछ बिल्डर इसमें भी खेल कर रहे हैं। योजना से संबंधित विज्ञापन ऐसे अखबारों में प्रकाशित करवाते हैं कि कम से कम लोग पढ़ सकें। जब कम से कम लोग विज्ञापन देखेंगे फिर आवेदन कम आएंगे। आवेदन कम आने पर अधिक कीमत पर आगे फ्लैट बेचेंगे। इस तरह आम आदमी को फ्लैट उपलब्ध कराने के नाम पर वर्षो से मजाक चल रहा है। जानकार बताते हैं कि आवेदन देने के बाद यदि ड्रा में नाम भी आ जाए तो भी अधिकांश लोग फ्लैट नहीं ले सकते। आम आदमी के लिए 20 से 25 लाख रुपये जुटाना भी मुश्किल है।
प्रॉपर्टी डीलर ही खरीद लेते हैं फ्लैट
नियमानुसार किसी भी सोसायटी में 15 प्रतिशत आर्थिक रूप से कमजोर लोगों के लिए फ्लैट उपलब्ध कराने का प्रावधान है। फ्लैट की कीमत इतनी अधिक होती है कि कमजोर वर्ग के लोग खरीद नहीं पाते हैं। ऐसी स्थिति में प्रोपर्टी डीलर लोगों से फ्लैट खरीद लेते हैं। यही वजह है कि अधिकांश हाउसिंग बोर्ड कालोनियों से लेकर कालोनाइजरों की सोसायटियों में आर्थिक रूप से कमजोर लोग गायब हैं।
उद्यमियों ने भी नहीं दिया ध्यान
साइबर सिटी व आसपास हजारों औद्योगिक इकाइयां हैं। इनमें लाखों श्रमिक काम करते हैं। श्रमिकों को अस्थायी तौर पर ही सही आवास उपलब्ध कराने की दिशा में उद्यमियों ने ध्यान नहीं दिया। इस वजह से अधिकांश श्रमिक स्लम बस्तियों में रहने को मजबूर हैं। सेक्टरों से लेकर साफ-सुथरी कालोनियों में मकान का किराया इतना अधिक है कि अधिकांश श्रमिक रह नहीं सकते। श्रमिक नेता रमेश त्यागी कहते हैं कि प्रदेश सरकार को उद्यमियों के ऊपर दबाव बनाना चाहिए। यदि औद्योगिक इकाइयां आवासीय सुविधा उपलब्ध करा दे फिर ट्रैफिक जाम की समस्या भी काफी हद तक दूर हो जाएगी। उदाहरणस्वरूप फैक्ट्री मानेसर में है और श्रमिक रहते हैं गुड़गांव के राजीव नगर में। जब आवासीय सुविधा उपलब्ध होगी तो जहां फैक्ट्री होगी वहीं पर श्रमिक रहेंगे।
50 हजार से अधिक फ्लैट खाली
जहां शहर में रह रहे हजारों लोग आवास के लिए तरस रहे हैं, वहीं साइबर सिटी व आसपास 50 हजार फ्लैट्स के खरीदार नहीं। अधिकांश फ्लैट्स या तो बिल्डर के ही पास हैं या फिर प्रॉपर्टी डीलरों ने खरीद रखा है। इन फ्लैटों की कीमत औसतन एक करोड़ रुपये है। इसे खरीदना आम आदमी क्या अच्छी खासा वेतन पाने वालों के लिए भी मुश्किल है।
नए साल में भी नहीं बदलेगी तस्वीर
नए साल में भी तस्वीर बदलने वाली नहीं है। यदि सस्ती दर वाली हाउसिंग स्कीम के तहत बिल्डरों ने योजना पर काम भी शुरू कर दिया, तो बिल्डिंगों का निर्माण वर्ष 2018 से पहले संभव नहीं। वैसे भी अधिकांश बिल्डरों ने कभी भी समय पर काम पूरा नहीं किया। इस वजह से प्रतिदिन किसी न किसी बिल्डर के खिलाफ धरना-प्रदर्शन हो रहे हैं। सरकार को बिल्डरों के ऊपर अंकुश लगाना होगा तभी समय पर बिल्डिंगों का निर्माण पूरा होगा। अनुमान के मुताबिक साइबर सिटी में आम आदमी को कब स्कीम के तहत एक से डेढ़ लाख फ्लैट्स अगले तीन वर्षो में तैयार होंगे।
सेक्टरों में होनी चाहिए सुविधा
लेबर लॉ एडवाइजर एसोसिएशन के संयोजक अधिवक्ता आरएल शर्मा कहते हैं कि समाज में हर तरह के कार्य करनेवाले लोग हैं। कोई सैलून चला रहा है, कोई घर में सफाई का काम करता है, कोई कपड़ों में आयरन करने का काम करता है, कोई फैक्ट्री में काम करता है आदि। सरकार ने ऐसे लोगों के बारे में कभी गंभीरता से सोचा ही नहीं। साइबर सिटी की हालत यह है कि मध्यम वर्ग के लोग एक फ्लैट नहीं खरीद सकते फिर इससे नीचे वाले के बारे में अंदाजा लगाया जा सकता है। सरकार को चाहिए कि प्रत्येक सेक्टर में गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करनेवाले लोगों के लिए ही नहीं बल्कि मध्यम वर्ग के लोगों के लिए जगह उपलब्ध कराए।
आवंटित फ्लैट्स बेचने पर लगे रोक
गुड़गांव में हुडा प्रशासक रहे रिटायर्ड आईएएस एसपी गुप्ता कहते हैं कि साइबर सिटी व आसपास आम आदमी के लिए आवास की समस्या तब खत्म होगी, जब आवंटित फ्लैट्स बेचने पर रोक लगेगी। कुछ लोग पैसे कमाने के चक्कर में तो कुछ पैसे की कमी के चक्कर में आवंटित फ्लैट या प्लाट बेच लेते हैं। जब बेचने पर रोक लग जाएगी फिर किसी न किसी तरह लोग पैसा जमा करके फ्लैट में रहना शुरू करेंगे। कहने का मतलब है कि शासन व प्रशासन के स्तर पर यदि कमी है तो आम आदमी के स्तर पर भी कमी है। जहां तक बिल्डरों का सवाल है तो इनके ऊपर नकेल कसना होगा तभी नियमानुसार वे काम करेंगे। नए साल में एफोर्डेबल हाउसिंग स्कीम के तहत काम यदि शुरू हो जाता है तो अच्छी उपलब्धि होगी।