Move to Jagran APP

पटाखों को कहें ना मनाए प्रदूषण मुक्त दीपावली

जागरण संवाददाता, गुड़गांव : विभिन्न आरडब्ल्यूए संगठन, वैज्ञानिक, सामाजिक कार्यकर्ता हर साल पटाखों के

By Edited By: Published: Mon, 20 Oct 2014 06:25 PM (IST)Updated: Mon, 20 Oct 2014 06:25 PM (IST)
पटाखों को कहें ना मनाए प्रदूषण मुक्त दीपावली

जागरण संवाददाता, गुड़गांव : विभिन्न आरडब्ल्यूए संगठन, वैज्ञानिक, सामाजिक कार्यकर्ता हर साल पटाखों के बिना प्रदूषण रहित दीपावली मनाने का संदेश देते हैं। हालांकि बदलते सालों के दौरान यह चेतना जागी तो हैं, मगर पटाखों का प्रयोग कम नहीं हुआ। हर नए नए किस्म के ज्यादा तेज आवाज और रोशनी वाले पटाखे आ जाते हैं। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड हालांकि इस बात की निगरानी रखता है कि दीपावली के पहले हवा में पर्टिकुलेट मैटर, नॉक्स की मात्रा कितनी बढ़ी। यह भी कि ध्वनि प्रदूषण कितना बढ़ा मगर बढ़े हुए प्रदूषण को कम करने के लिए पटाखे कम करने का काम आम आदमी का होना चाहिए, ऐसा मानना है डॉक्टरों और वैज्ञानिकों का।

loksabha election banner

स्वांस रोग विशेषज्ञों के अनुसार गुड़गांव की हवा में वैसे भी धूलकण और पर्टिकुलेट मैटर ज्यादा हैं, क्योंकि यहां निर्माण कार्य ज्यादा होते हैं। स्वांस के मरीज हर साल बढ़ रहे हैं। इसके साथ ही दीपावली के मौके पर जब धुंआ और आवाजों का शोर भी इस वातावरण में मिल जाता है तो हालात और ज्यादा मुश्किल हो जाते हैं। ज्यादा तेज धमाके से कान के पर्दे फटने की भी संभावना रहती है।

प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के सेवानिवृत वैज्ञानिक उमा शंकर सिंह बताते हैं कि दीपावली पटाखों के शोर और धुंए से ध्वनि और वायु प्रदूषण की मात्रा बढ़ जाती है। यह अस्थमा और सांस के मरीजों के लिए नुकसानदेह तो हैं ही पेड़ पौधों और पशु पक्षियों के लिए भी नुकसान देह है। हर दीपावली के समय यह देखा गया कि हवा में पर्टिकुलेट मैटर जिसे एसपीएम कहते हैं कि मात्रा बढ़ जाती है। दूसरी ओर दूसरे प्रदूषणकारी तत्व नॉक्स की भी मात्रा बढ़ जाती है। ये दोनों ही खतरनाक हैं। सांस लेने में परेशानी, आंखों में जलन आदि परेशानी पैदा करते हैं।

प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड दीपावली के एक दिन पहले और एक दिन बाद तक करता है । इसके लिए प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने एडीसी कार्यालय के पास हवा के प्रदूषण की जांच के लिए मशीन लगा रखी है। ध्वनि प्रदूषण की जांच भी शहर के तीन-चार हिस्सों में की जाती है।

पशु पक्षियों और पेड़ पौधों पर भी पड़ता है असर

पिछले साल सिविल लाइंस स्थित पक्षियों के अस्पताल में दीपावली के दिन ध्वनि और हवा प्रदूषण के कारण बीमार हुए दर्जन भर पक्षी लाए गए थे। जैन समाज द्वारा जैकबपुरा में संचालित पक्षियों के अस्पताल प्रमुख नरेश जैन बताते हैं कि हर दीपावली और उसके आस-पास 15-20 पक्षी बीमार होकर आ जाते हैं। पटाखों के कारण घायल होकर तो कुछ हवा में प्रदूषण के कारण सांस की तकलीफ से ग्रस्त होकर आते हैं। उन्हें सांस की तकलीफ घोंटू नाम की बीमारी हो जाती है। लोग पक्षियों को यहां वहां पड़ा देखकर अस्पताल लाते रहे हैं। इसके अलावा पालतू पक्षियों को भी लेकर आते हैं। एनिमल वेलफेयर सोसाइटी डॉक्टर्स फोरम के अध्यक्ष डा. एसपी गौतम के अनुसार पालतू जानवरों और स्ट्रीट डॉग पर भी ध्वनि और हवा में प्रदूषण का बुरा प्रभाव पड़ता है। इनमें आवाज के कारण चिड़चिड़ापन भी आ जाता है। इस लिए पटाखों के समय जानवरों को घर के भीतर रखना चाहिए। पटाखे चलाते समय यह ध्यान रहे कि आस-पास कोई जानवर नहीं हो। कोशिश हो पटाखों से दूर ही रखा जाए।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.