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उम्मीदों की किरण बनीं आशा वर्कर

By Edited By: Published: Sat, 30 Aug 2014 07:31 PM (IST)Updated: Sat, 30 Aug 2014 07:31 PM (IST)
उम्मीदों की किरण बनीं आशा वर्कर

शेर सिंह डागर, नूंह : मेवाती महिलाओं की सेहत के लिए मेवात में कार्यरत आशा वर्कर नई आशा के रूप में सामने आई हैं। इन कार्यकर्ताओं के दम पर अब मेवात की लगभग पचास प्रतिशत महिलाएं अस्पतालों में डिलीवरी कराने लगी है, जिससे जच्चा-बच्चा मृत्यु दर में भी कमी आई है। विभागीय अधिकारी भी मान रहे है कि जिस तरह से पिछले चार-पाच वर्षो में मेवात की महिलाओं का रुझान सरकारी अस्पतालों में डिलीवरी कराने की ओर बढ़ा है उसके पीछे ग्रामीण आचल में काम कर रही स्वास्थ्य विभाग की आशा वर्कर का अहम भूमिका है। आशा वर्कर ही महिलाओं को डिलीवरी के लिए अस्पताल तक लाने में काम कर रही है। इससे विभाग की नई उम्मीदें बंधी है।

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क्या थी पहले स्थिति :::

वर्ष 2007-08 में जहा 14 प्रतिशत डिलीवरी अस्पताल में होती थी, अब यह बढ़कर 47 प्रतिशत हो गई है। मेवात जैसे पिछड़े व अशिक्षित क्षेत्र में यह विभाग की एक बड़ी उपलब्धि है। बता दें कि मेवात में महिलाओं की स्थिति बेहतर नहीं है। अशिक्षित होने के कारण अधिकाश महिलाएं अनिमिया की शिकार है और वो घर पर ही दाइयों के माध्यम से बच्चों को जन्म देती है। पांच वर्ष पहले यहा एक हजार बच्चों के जन्म लेने पर अस्सी बच्चे एक महीने के अंदर मौत के शिकार हो जाते थे। इसे ध्यान में रखते हुए सरकार ने वर्ष 2007-08 में यहा फ्री प्रसूति वाहन सेवा शुरू कर आशा वर्कर्स की तैनाती की। आशा वर्कर्स पर गर्भवती महिलाओं के नामाकन से लेकर अस्पताल में उनकी डिलीवरी कराने तक जैसी कई जिम्मेदारी हैं, जिसकी एवज में उन्हे विभाग द्वारा मानदेय दिया जाता है।

913 आशा वर्कर कर रही है काम ::

जिले के ग्रामीण व शहरी इलाके में 913 आशा वर्कर काम कर रही हैं, जो पूरी मेहनत कर गर्भवती महिलाओं को संस्थागत डिलीवरी तक ही नहीं पहुंचाती बल्कि गर्भवती महिलाओं को दवाइयां, टीकाकरण सहित कई बातों के बारे में बताती हैं और उन्हें अस्पताल तक लेकर आती है।

शिशु मृत्यु दर :::

पहले हालात ये थे कि यहा एक वर्ष तक के एक हजार में से 80 बच्चे दम तोड़ देते थे, जो अब घटकर 65 रह गए हैं। हालाकि यह आंकड़ा अभी काफी बड़ा है, जिसमें सुधार करने की जरूरत है। इसके लिए विभाग कई और रहबर-ए-सलामती जैसी योजना चलाने जा रहा है।

घटी प्राइवेट अस्पतालों में डिलीवरी ::

विभागीय आंकड़ों के मुताबिक 2007 में प्राइवेट अस्पतालों में डिलीवरी 7 प्रतिशत थी, जो अब घटकर 4 प्रतिशत रह गई है। महिलाओं को रुझान सरकारी अस्पतालों की तरफ तेजी से बढ़ा है।

क्या कहते है अधिकारी :

सिविल सर्जन डा.बीके राजौरा कहना है मेवात की जच्चा-बच्चा मृत्यु दर को कम करने व अस्पतालों में डिलीवरी के बढ़ने में आशा वर्कर का सबसे बड़ा योगदान है। बच्चे के जन्म बाद के 48 घटे ज्यादा खतरनाक होते है। इसी अवधि में दो-तिहाई बच्चे मर जाते है। आशा वर्कर के अलावा प्रसूति के लिए जिले में 19 छोटी मोबाइल वैन निशुल्क चालू है। उन्होंने कहा अभी मेवात में आशा वर्कर कम है, जिन्हे बढ़ाने के लिए उनके प्रयास जारी हैं। अभी कई गांव ऐसे हैं जहां आशा नहीं हैं तो कई ऐसे भी हैं जहां और बढ़नी चाहिए। विभाग की कोशिश है कि आशा और बढ़ाई जाए और हर गांव में महिलाओं को उनके स्वास्थ्य व जापे के बारे में जागरूक किया जाए। मेवात में 11 सौ आशा चाहिए।

आंकड़ों पर एक नजर :::

वर्ष डिलीवरी प्रतिशत

2007-08 14 प्रतिशत

2008-0 18 प्रतिशत

2009-10 30 प्रतिशत

2010-11 40 प्रतिशत

2011-12 46 प्रतिशत

2012-13 45 प्रतिशत

2013-14 46 प्रतिशत अबतक।


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