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जान जोखिम में डाल स्कूल जाना विवशता

By Edited By: Published: Sat, 02 Aug 2014 02:42 AM (IST)Updated: Fri, 01 Aug 2014 06:55 PM (IST)
जान जोखिम में डाल स्कूल जाना विवशता

योगेंद्र सिंह भदौरिया, गुड़गांव : स्कूली बच्चों की सुरक्षा को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने सख्त निर्देश के साथ कई नियमों के पालन करने की चेतावनी दे रखी है। बावजूद इस दिशा में न तो स्कूल प्रबंधन न ही जिला प्रशासन गंभीर है। यही कारण है कि स्कूली वाहनों में बच्चों की सुरक्षा के इंतजाम नहीं हैं। स्कूली वाहन चलाने वाले भी तय नियमों का पालन नहीं कर रहे हैं। इसके चलते बच्चे जान जोखिम में डालकर रोज स्कूल आना-जाना पड़ रहा है।

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सुप्रीम कोर्ट ने बच्चों की सुरक्षा को लेकर जो निर्देश जारी किए उसके अनुसार हर स्कूल प्रबंधन को बताना था कि उनके स्कूल से लेकर वाहनों में बच्चों को ले आने व ले जाने तक सुरक्षा को लेकर पुख्ता इंतजाम किए गए हैं। लेकिन अभी तक बहुत कम स्कूल प्रबंधन ने ऐसे प्रमाण पत्र जमा कराए हैं। स्कूल बसों से लेकर आटो, वैन, रिक्शा में क्षमता से अधिक बच्चे बैठा करे ले आना और पहुंचाना इनकी अक्षमता के प्रमाण हैं। वाहन चालक भी तय जगह के बजाय मनमर्जी से कहीं पर भी वाहन खड़ा कर बच्चे बैठाते उतारते हैं। बस चालक लाल बत्ती पर भी नहीं रूकते, इसके विपरीत जल्दबाजी के चक्कर में चालक तेजगति से वाहन दौड़ा देते हैं। शिक्षा विभाग से लेकर जिला प्रशासन, ट्रैफिक पुलिस भी स्कूली वाहनों पर शिकंजा नहीं कस पा रही है। जिला प्रशासन स्कूली वाहनों की जांच-पड़ताल कर तो रहा है लेकिन वह खानापूर्ति से अधिक नहीं है। यही कारण हैं कि स्कूली वाहन बच्चों के लिए खतरा बने हुए हैं।

बच्चों को भी करनी पड़ती है कसरत

रिक्शा में तीन-चार नहीं बल्कि सात-आठ बच्चों को बैठाया जाता है। चढ़ाई वाली जगह पर दो-तीन बच्चे उतरकर रिक्शा को धक्का लगाने को मजबूर किया जाता है। मौसम कोई भी हो स्कूली बच्चों को यह काम करना पड़ता है। ऐसे में अभिभावकों की नाराजगी स्वाभाविक है, फिर भी इस पर रोक नहीं लग पा रही।

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यह है दिशा निर्देश

- स्कूल बस पीले रंग में होनी चाहिए, बस पर आगे पीछे स्कूल बस लिखा होना अनिवार्य है।

- किराए की बस पर 'आन स्कूल ड्यूटी' अंकित होना चाहिए।

- बस में फ‌र्स्ट एड बाक्स का होना आवश्यक है, आग लगने की स्थिति से निपटने के लिए फायर निकास होना चाहिए।

- स्कूल का नाम व नंबर बस के पीछे लिखा होना चाहिए।

- बस चालक को पांच साल का न्यूनतम अनुभव होना चाहिए। बस में एक अटेंडेंट होना आवश्यक है।

- बसों की खिड़कियों पर ग्रिल्स लगी हुई होनी चाहिए

-तय जगह पर वाहन पार्क हो, स्कूल में भी पार्किंग की जगह तय होनी चाहिए

-वाहन चालक के पास लाइसेंस होना चाहिए

-वाहन की फिटनेस समय-समय पर हो और उसका प्रमाण पत्र होना चाहिए

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''स्कूली बच्चों की सुरक्षा का पूरा ख्याल रखा जाएगा। इसके लिए टीम गठित कर रखी हैं। यह टीम सतत भ्रमण कर स्कूली वाहनों का जायजा लेने के साथ ही स्कूलों का भी निरीक्षण कर रही हैं। गड़बड़ी मिलने पर वाहनों के चालान काटे जा रहे हैं। रही बात स्कूल से बच्चों की सुरक्षा को लेकर प्रमाण पत्र देने की तो उसके लिए निर्देश दिए जा रहे हैं। जो भी इस कार्य में लापरवाही बरतेगा उसके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी।''

-पुष्पेंद्र सिंह चौहान, अतिरिक्त उपायुक्त, गुड़गांव


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