सरकारी संपत्ति पर अवैध विज्ञापन सामग्री का कब्जा
योगेंद्र सिंह भदौरिया, गुड़गांव : अनधिकृत विज्ञापन सामग्री सरकारी संपत्ति की सूरत बिगाड़ रही है और सरकारी एजेंसियां हाथ पर हाथ धरे बैठी हैं। जिला प्रशासन इनसे निपटने के बड़े-बड़े दावे कर रहा है, जबकि शहर राजनीतिक सहित अन्य प्रकार की विज्ञापन सामग्री से लगातार पटता जा रहा है। एक्ट में अनधिकृत रूप से विज्ञापन सामग्री लगाने वालों से निपटने के प्रावधान हैं, लेकिन कोई भी इसके तहत कार्रवाई करने को तैयार नहीं है। हालात यह है कि वर्ष 2008 में अस्तित्व में आए नगर निगम अभी तक सार्वजनिक संपत्ति की सूरत बिगाड़ने वाले करीब आधा दर्जन के खिलाफ ही कार्रवाई कर पाया है। विधानसभा चुनाव की कवायद के चलते विभिन्न राजनीतिक पार्टियों के नेता लगातार अपने पोस्टर व विज्ञापन सामग्री से शहर को पाटने में लगे हैं।
सरकारी कार्यालय, फ्लाईओवर, फुट ओवरब्रिज, बिजली व टेलीफोन के बिल, डिवाइडर, बस क्यू शेल्टर, दीवारों से लेकर लोगों के मकान, दुकान, रेलवे स्टेशन, ट्रेन, बस, ऑटो पर किसी न किसी प्रकार की विज्ञापन सामग्री जरूर नजर आती है। इन अनधिकृत रूप से लगने वाली सामग्री से आम लोगों के साथ ही प्रशासन भी परेशान हैं। रंग-रोगन कराने के बाद इस प्रकार की सामग्री लगने से जहां इनकी सूरत बिगड़ रही, वहीं संबंधित को आर्थिक नुकसान भी पहुंच रहा है। रात के अंधेरे में लोग अनधिकृत रूप से विज्ञापन सामग्री लगा रहे हैं। निगम का अतिक्रमण विरोधी दस्ता भी कार्रवाई के नाम पर खानापूर्ति करता ही नजर आता है। अधिक दबाव होने पर वह सामग्री हटाने का प्रयास करता है लेकिन सुबह सामग्री वापस लगी हुई मिलती है। लोगों की संपत्ति पर सामग्री लगने पर वह इनका सफाया करते हैं लेकिन सरकारी संपत्ति पर लगी सामग्री अधिकारियों की लापरवाही उजागर करती है। सबसे बड़ी बात है कि एक्ट में प्रावधान होने के बावजूद कार्रवाई नहीं करना अधिकारियों की मिलीभगत व लापरवाही की ओर इशारा करता है।
नहीं हुई विज्ञापन पर लिखे नंबरों पर कार्रवाई
तत्कालीन निगमायुक्त आरके खुल्लर ने सबसे पहले सार्वजनिक संपत्ति की सूरत बिगाड़ने वाली विज्ञापन सामग्री को गंभीरता से लिया था। उन्होंने विज्ञापन सामग्री से जिसे फायदा होना है और जिसका उस पर मोबाइल नंबर अंकित है उन पर शिकंजा कसा था। उन्होंने इनकी एक सूची तैयार कर इनके खिलाफ मामला दर्ज कराने का भी प्रयास किया था। हालांकि उनके स्थानांतरण के बाद किसी ने इस पर ध्यान नहीं दिया।
क्या कहता है नियम
सार्वजनिक संपत्ति पर लगी अनधिकृत विज्ञापन सामग्री पर शिकंजा कसने के लिए एक्ट में भी प्रावधान हैं। हरियाणा संपत्ति विरूपण रोकथाम अधिनियम 1989 के तहत निगम अनधिकृत रूप से विज्ञापन लगाने वालों पर कार्रवाई कर सकता है। यह अलग बात है कि वर्ष 2008 में अस्तित्व में आए निगम ने अभी तक इस अधिनियम के तहत करीब आधा दर्जन के खिलाफ ही कार्रवाई की है। इसमें सबसे पहले एक कांग्रेस के नेता पर तत्कालीन निगमायुक्त आरके खुल्लर ने मामला दर्ज कराया था।
राजनीतिक विज्ञापन सामग्री पर हाथ डालने से कतराता है दस्ता
निगम का अतिक्रमण विरोधी दस्ता चाहे लाख दंभ भरे लेकिन वह राजनीतिक विज्ञापन सामग्री हटाने से कतराता है। यही कारण है कि वर्तमान में भी शहर भर के बिजली व टेलीफोन पोल पर राजनीतिक विज्ञापन सामग्री लगी हुई है। यह जहां शहर की सुंदरता खराब कर रहे वहीं दुर्घटना का भी कारण बने हुए हैं। जबकि रोड के बीच व साइड में इस प्रकार की विज्ञापन सामग्री को लेकर हाईकोर्ट ने सख्त निर्देश दे रखे हैं। हाईकोर्ट इस प्रकार की सामग्री को किसी भी सूरत में अनुमति देने के पक्ष में नहीं है।
''इस दिशा में निगम का अतिक्रमण विरोधी दस्ता लगातार कार्रवाई कर रहा है। साथ ही चेतावनी भी दे रहे हैं कि नहीं माने तो फिर पुलिस में मामला दर्ज कराया जाएगा। रोज सुबह हमारी चार टीम भ्रमण कर विज्ञापन सामग्री का सफाया कर रही हैं। साथ ही इन सामग्री को लगाते हुए जो भी व्यक्ति मिलते हैं उनके खिलाफ भी मामला दर्ज कराया जा रहा है।''
-अमित श्योकंद, प्रभारी, अतिक्रमण विरोध दस्ता।