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फोरलेन की जमीं पर किसानों का धर्म प्रदर्शन

जागरण संवाददाता, फतेहाबाद : फोरलेन के लिए जमीन देने वाले किसान करीब चार महीने से धरने पर बैठ मुआवजे

By Edited By: Published: Sun, 07 Feb 2016 01:01 AM (IST)Updated: Sun, 07 Feb 2016 01:01 AM (IST)
फोरलेन की जमीं पर किसानों का धर्म प्रदर्शन

जागरण संवाददाता, फतेहाबाद : फोरलेन के लिए जमीन देने वाले किसान करीब चार महीने से धरने पर बैठ मुआवजे की मांग कर रहे हैं। कई बार प्रशासनिक अधिकारियों को ज्ञापन भी दिया और लघु सचिवालय परिसर प्रदर्शन भी कर चुके हैं। लेकिन अधिकारी सुन नहीं रहे। अपनी बात प्रशासन व सरकार तक पहुंचाने के लिए हर तरीका अपना रहे हैं। अब उन्होंने फोरलेन बनाने के लिए तैयार किए गए मैदान पर गुरुग्रंथ साहिब का पाठ शुरू करवाया है। शुक्रवार को शुरू किए गए इस पाठ का रविवार सुबह भोग डाला जाएगा। इस पाठ के माध्यम से किसान दो तरीके की अरदास कर रहे हैं। पहली अरदास ये है कि उनकी बात सरकार नहीं सुन रही, इसलिए ईश्वर ही समाधान करे। दूसरी अरदास ये है कि उनके दर्द पर आंखें मूंद कर बैठे अधिकारियों को ईश्वर बुद्धि दे ताकि वे किसानों की पीड़ा को समझ सकें। खैर, यह उनके रोष प्रदर्शन का एक तरीका है।

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किसान महेश कुमार, राजेंद्र कुमार, महाबीर, अनिल सैनी, सतीश व पवन आदि ने बताया कि उन्होंने विकास कार्यों के लिए अपनी जमीन दी है। पहले तो सरकार ने उनकी जमीन की कीमत प्रति 51 लाख निर्धारित की थी। जबकि उन्होंने जमीन दे दी तो उसके बाद 40 लाख रुपये निर्धारित कर दी। उनका कहना है कि सरकार अपने किए गए वादे पर खरी नहीं उतर पाई। यह किसानों के साथ धोखा है कि जो भाव बताया गया, वह दिया नहीं गया। इसके अलावा उनका कहना है कि धांगड़ व दरियापुर के आसपास का इलाका ग्रामीण क्षेत्र में आता है। वहां की जमीन शहर की तुलना में सस्ती है। उनकी जमीन शहर के पास लगती है, जिसके बावजूद उन्हें धांगड़ व दरियापुर से कम भाव दिए गए हैं। इससे शहरी क्षेत्र के किसानों में निराशा है। इन मांगों को लेकर वे स्थानीय प्रशासनिक अधिकारियों से कई बार मिल चुके हैं। अधिकारी आश्वासन दिए जा रहे हैं। इसके अलावा बात आगे बढ़ती ही नहीं है। वे अपनी मांग को लेकर इस कड़ाके की ठंड में भी धरने पर बैठते रहे हैं, लेकिन अधिकारी आखें मूंद कर बैठे रहे। यह उनके साथ नाइंसाफी है।

--इस तरह अड़े हैं पेंच

दरअसल, राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण ने अपने नियमों व पॉलिसी के हिसाब से कीमत निर्धारित कर दी और किसानों से जमीन ले ली। प्रशासनिक अधिकारी नियमों में बदलाव कर नहीं सकते। इसलिए किसानों को नियमों से बाहर होकर कीमत दी नहीं जा सकती। इधर, किसानों का कहना है कि सरकार अपनी सुविधा अनुसार नियम बनाती है। हमें नियमों से कोई लेना देना नहीं है, हम तो व्यवहारिक बात कर रहे हैं। प्रशासनिक अधिकारी भी यह बात मानते हैं कि किसी भी पक्ष को गलत नहीं ठहराया जा सकता। नियम अपनी जगह सही हो सकते हैं, लेकिन किसानों की बात भी गलत नहीं है।

--मैं किसानों से मिलकर आया हूं: डीआरओ

मैं किसानों की बात को नाजायज नहीं मान सकता, लेकिन नियम भी अपनी जगह मायने रखते हैं। मैं आज ही किसानों से लगभग दो घंटे बातचीत करके आया हूं। इसके अलावा प्रशासनिक अधिकारियों से भी विचार विमर्श चल रहा है। अधिकारियों की मध्यस्थता के बाद इस मसले का समाधान हो जाएगा। ऐसी बात नहीं है कि प्रशासन किसानों की मांगों पर गंभीर नहीं है, बल्कि बातचीत का सिलसिला जारी है।

-विजेंद्र भारद्वाज, जिला राजस्व अधिकारी।


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