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फैसले की घड़ी, तय होगा गांवों के विकास का रुख

मणिकांत मयंक, फतेहाबाद संभव है कि सुप्रीम कोर्ट के निर्णय उपरांत पंचायती चुनावों पर असमंजस की स्थि

By Edited By: Published: Wed, 07 Oct 2015 01:00 AM (IST)Updated: Wed, 07 Oct 2015 01:00 AM (IST)
फैसले की घड़ी, तय होगा गांवों के  विकास का रुख

मणिकांत मयंक, फतेहाबाद

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संभव है कि सुप्रीम कोर्ट के निर्णय उपरांत पंचायती चुनावों पर असमंजस की स्थिति खत्म हो जाएगी। गांवों की सरकार बनाने वाले आमजन आश्वस्त होंगे। जन के प्रतिनिधि बन गांवों की चौधर के लिए ताल ठोंकने वालों को भी करीब एक माह से गड़े अपने तंबू सजाए रखने अथवा उखाड़ने की ऊहापोह पर मार्गदर्शन मिल जाएगा। सबसे अहम तो यह कि 'होल्ड' पर रखी चुनाव प्रक्रिया की वजह से मंद पड़े ग्रामीण विकास का रुख भी तय हो जाएगा।

दरअसल, 9 सितंबर को पंचायती चुनाव के लिए आचार संहिता लगाए जाने के बाद ग्रामीण विकास के नए कार्यों पर ब्रेक लग गया था। मनरेगा जैसी रोजगारपरक तो इंदिरा आवास सरीखी आवासीय व अन्य योजनाएं ठमक गई थीं। ये योजनाएं अरबों रुपये की थीं। अकेला 14वें वित्त आयोग की अनुशंसित राशि 2 अरब, 9 करोड़, 64 लाख है। पंचायती चुनाव की घोषणा से करीब दो माह पहले महामहिम राज्यपाल के हवाले से जारी की गई इस राशि से गांवों में जलापूíत, च्वच्छता, सीवरेज, व ठोस कचरा प्रबंधन जैसे विकास कार्य करवाए जाने हैं। लेकिन इस दौरान राज्य निर्वाचन आयोग ने पंचायत चुनाव की घोषणा कर दी। ये विकास कार्य रुक गए। इसी बीच चुनाव की सरकारी शर्तों को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई। माननीय अदालत के दखल पश्चात करीब एक पखवाड़े से चुनावी प्रक्रिया होल्ड पर है। जाहिराना तौर पर विकास कार्य भी गति नहीं ले पा रहा है। कहीं वेट एंड वाच की स्थिति बनी हुई है, कहीं गति नहीं पकड़ रही। कहने को भले ही जिला विकास एवं पंचायत अधिकारी राजेश खोथ कहते हों कि रफ्तार मंद हो सकती है मगर विकास एक सतत प्रक्रिया है और यह इंतजार नहीं कर सकता। लेकिन इस हकीकत से मुंह नहीं मोड़ा जा सकता कि न केवल अवाम अपितु अधिकारियों में भी असमंजस की स्थति बरकरार है। हर निगाह सवचर््च्च न्यायालय के फैसले पर जा टिकी है। अब फैसले की घड़ी आ गई। गांवों के विकास का रुख तय हो जाएगा। कारण कि सुप्रीम कोर्ट के निर्देश उपरांत राज्य में पंचायती चुनाव की प्रक्रिया से असमंजस के बादल छंटेंगे। वरिष्ठ अधिवक्ता लाल बहादुर खोवाल के मुताबिक, नई शर्तें होंगी। नए सिरे से चुनाव होंगे। नई अधिसूचना जारी होगी। प्रक्रिया भी दोबारा शुरू होगी। बहरहाल, अगर राज्य सरकार सुप्रीम कोर्ट के फैसले के तत्काल बाद नई अधिसूचना जारी करती है और आचार संहिता लागू होती है तो विकास रफ्तार नहीं भर सकेगा। कदाचित चुनाव की तिथि आगे बढ़ाती है तो ग्रामीण इलाके में विकास का पहिया तेजी से घूम सकता है।


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