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खाद की पहली बोली, नहीं आया कोई ग्राहक

प्रदीप जांगड़ा, फतेहाबाद नंदीशाला से आमदन कमाने का नगर परिषद का जरिया औंधे मुंह गिर गया है। नींद स

By Edited By: Published: Thu, 26 Mar 2015 01:00 AM (IST)Updated: Thu, 26 Mar 2015 01:00 AM (IST)
खाद की पहली बोली, नहीं आया कोई ग्राहक

प्रदीप जांगड़ा, फतेहाबाद

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नंदीशाला से आमदन कमाने का नगर परिषद का जरिया औंधे मुंह गिर गया है। नींद से जागने के बाद चारे आदि का खर्च निकालने तथा मुनाफा कमाने के जुगत में रखी गई बोली सिरे नहीं चढ़ पाई। अब अप्रैल के मध्य में नंदीशाला में गोबर खाद की बोली लगाई जाएगी।

बुधवार को बोली का दिन निर्धारित किया था। पहली बार बोली होनी थी, मगर कई कारणों से कोई ग्राहक नहीं आया। अब विभाग ने बोली की अगली तारीख 15 अप्रैल निर्धारित की है। नंदीशाला में करीब चार सौ पशु हैं। उन पशुओं के गोबर से जैविक खाद बनती है। मौजूदा नंदीशाला करीब तीन साल पहले स्थापित की गई थी। लेकिन अभी तक कभी भी खाद बेची नहीं गई। ईओ ओपी सिहाग ने इस बार खाद बेचने का निर्णय लिया है। उनका मानना है कि इससे गोबर ठिकाने लगेगा और खाद की बिक्री से नगर परिषद की आमदन बढ़ेगी। नंदीशाला पर हर महीने लगभग तीन लाख रुपये खर्च हो रहे हैं। यदि खाद की सही बोली लगी तो खर्चा उठाने में आसानी होगी। इसलिए पहली बार खाद की बोली लगाई जा रही है। बुधवार को बोली लगाई जानी थी। अधिकारियों ने इंतजार भी किया कि शायद कोई खाद खरीदने के लिए आए। मगर कोई भी नहीं आया। किसानों की मानें तो खाद बेचने का यह तरीका तर्कसंगत नहीं है।

खेत खाली नहीं हुए : ईओ

ईओ ओपी सिहाग ने कहा कि अभी तक खेतों गेहूं खड़ी है। गोबर की खाद डालने के लिए खुले खेत चाहिए। जाहिर है कि फसलों की कटाई होगी, तभी किसान आएंगे। शायद इसी वजह से कोई बोलीदाता नहीं आया। इसलिए हमने 15 अप्रैल को बोली कराने का निर्णय लिया है। तब तक गेहूं की कटाई हो जाएगी।

नप के सामने तीन सवाल

- करीब दो साल तक खाद की बोली क्यों नहीं लगाई गई?

-क्या नगर परिषद प्रशासन इस खाद की उपेक्षा करता रहा या कुछ और मंशा थी?

- क्या नप प्रशासन सिर्फ बड़े जमींदारों का देना चाहता है? क्योंकि छोटे जमींदार को इतनी खाद की जरुरत नहीं है।

ये है किसानों का सुझाव

मताना निवासी किसान राजेश, विजेंद्र व अशोक का कहना है कि जैविक खाद का सामान्यतया एक भाव होता है, जो आम प्रचलन में रहता है। उसी भाव पर यह खाद बेचनी चाहिए। जिसे जितनी जरुरत होगी, वह ले जाएगा। उसकी कीमत नगर परिषद में जमा करवा दी जाए। ऐसा प्रावधान किया जा सकता है। क्योंकि गोशालाओं में ऐसा ही होता है। आजकल 800 रुपये ट्राली का रेट चल रहा है।


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