अरावली की सुंदरता पर ग्रहण है कीकर
जागरण संवाददाता, फरीदाबाद : अरावली पर्वतमाला पूरी तरह कीकर (बबूल) से अटी पड़ी है। कीकर के पेड़ कम ऊ
जागरण संवाददाता, फरीदाबाद : अरावली पर्वतमाला पूरी तरह कीकर (बबूल) से अटी पड़ी है। कीकर के पेड़ कम ऊंचाई के होते हैं तथा इनकी पत्तियों में अम्लीय तत्व ज्यादा होते हैं। विशेषज्ञ मानते हैं कि कीकर के पेड़ के नीचे कुछ और पनप नहीं पाता। अरावली में यदि कीकर की जगह औषधीय पौधे उगाए गए होते तो निश्चित तौर पर अरावली का स्वरूप ही और कुछ होता। बाबा रामदेव जून 2016 में जब फरीदाबाद आए थे तो उन्होंने अरावली को कीकर मुक्त करके यहां हर्बल पार्क विकसित करने की बात कही थी।
शहर की मुख्य सड़कों के किनारे उग आई है कीकर : शहर की मुख्य सड़कों के किनारे कीकर के पेड़ उग आए हैं। सूरजकुंड रोड, सोहना रोड, फरीदाबाद गुरुग्राम रोड, पाली रोड पर कीकर उगी हुई है। सड़कों के किनारे लगे कीकर वाहन चालकों के लिए मुसीबत का सबब बन जाते हैं। क्योंकि कई बार झाड़ियां लटककर सड़कों के बीच में आ जाती है। प्रशासन की ओर से इन झाड़ियों को काटने की जहमत नहीं उठाई जाती।
1870 में भारत लाया गया था कीकर : कीकर का वैज्ञानिक नाम प्रोसोपिस जूलीफ्लोरा है। यह मूलरूप से दक्षिण और मध्य अमेरिका तथा कैरीबियाई देशों में पाया जाता था, 1870 में इसे भारत लाया गया था। वन अधिकारी बलराम बताते हैं प्रदेश में दो तरह की कीकर होती है। एक मस्कट कीकर और दूसरी देशी कीकर। वह बताते है कि अरावली की वादियों में मस्कट कीकर फैली हुई है। इनकी जड़े गहरी होती है, जिसके कारण यह तेजी से अंदर ही अंदर फैलती हुई चली जाती है। यह जमीन के भीतर से ही पानी खींच लेती है।
अरावली में वनक्षेत्र विकसित करने को नहीं हुए प्रयास : बेशक पूरे अरावली क्षेत्र में निर्माण कार्य प्रतिबंधित है मगर वन विभाग पिछले चार सालों में यहां गैर वानिकी कार्य रोकने में पूरी तरह विफल रहा। सूरजकुंड अरावली क्षेत्र में अवैध निर्माणकर्ताओं ने कीकर सहित कुछ अन्य पेड़ भी काटे, मगर वन विभाग ने इनकी एवज में यहां नए पेड़ नहीं लगाए। विशेषज्ञ मानते हैं कि यदि अरावली में कीकर की जगह पहाड़ी पेड़ उगाए जाते तो पूरा फरीदाबाद ही नहीं बल्कि दिल्ली भी रेगीस्तान से चलने वाली धूल भरी आंधियों के प्रकोप से मुक्त रहती।
कीकर का अर्थिक कोई फायदा नहीं है। हालांकि कीकर पर मानव उपयोग वाला गोंद आता है मगर इसे एकत्र इसलिए नहीं किया जा सकता कि इससे गोंद एकत्र करना काफी मुश्किल होता है। फरीदाबाद जिले में मैंने अरावली में ही कीकर के ज्यादा पेड़ देखे हैं। यदि इसकी जगह औषधीय पौधों पर ध्यान दिया जाता तो मैं समझता हूं कि दिल्ली के नजदीक अरावली एक बड़ा उपयोगी क्षेत्र हो जाता। इसके अलावा औषधीय पौधे वन्य जीव जंतुओं की भी संख्या बढ़ाने में कारगर साबित होते। अरावली में कीकर बढ़ने से ही औषधीय पौधे नहीं पनप पाए। अभी भी अरावली में कीकर से निजात के लिए हमें औषधीय बीज यहां बारिश से पूर्व डालने चाहिए। कीकर को केवल बंजर जमीन में उग आने वाला पौधा नहीं मानना चाहिए। जहां कीकर उग सकती है, वहां कोई भी पेड़ अथवा पौधा जीवंत हो सकता है।
-डॉ.विमलेश प्रसाद जैन,
सेवानिवृत्त, विभागध्यक्ष, बिरसा एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी, रांची।
शहर के किनारे फैली हुई कीकर की झाड़ियों को साफ करवाना चाहिए। इसके अलावा अरावली में तेजी से झाड़ियां फैलती जा रही है, जिससे पेड़ पौधे खत्म हो रहे हैं। इसको लेकर भी सरकार को कदम उठाने चाहिए।
-जितेंद्र भड़ाना, सदस्य, सेव अरावली।