तीन साल में आधे से भी कम कर दिया आरक्षित मूल्य
बिजेंद्र बंसल, फरीदाबाद हरियाणा शहरी विकास प्राधिकरण (हुडा) के शॉप कम ऑफिस (एससीओ ) घोटाले में
बिजेंद्र बंसल, फरीदाबाद
हरियाणा शहरी विकास प्राधिकरण (हुडा) के शॉप कम ऑफिस (एससीओ ) घोटाले में अधिकारियों की मिलीभगत की पोल परत दर परत खुल रही है। हुडा अधिकारियों ने 2013 में सेक्टर-12 के एक तीनमंजिला निर्माण की अनुमति वाले एससीओ का आरक्षित मूल्य 5.74 करोड़ रुपये तय किया, मगर अब तीन साल बाद 2016 में इसी सेक्टर के एससीओ का आरक्षित मूल्य सिर्फ 2.40 करोड़ रुपये तय कर दिया। हुडा प्रशासक यशेंद्र ¨सह कहते हैं कि यदि इस ई-नीलामी की फाइल पर 5.74 करोड़ रुपये की नीलामी का प्रपत्र लगा होता तो सही आरक्षित मूल्य तय करने में कोई चूक नहीं होती। निश्चित रूप से यह ई-नीलामी का प्रस्ताव बनाने वाले संपदाधिकारी कार्यालय के अधिकारियों व कर्मचारियों की कमी है। प्रशासक ने इसके चलते हुडा के संपदाधिकारी राजेश कुमार, वरिष्ठ लेखाधिकारी सोमेश्वर शर्मा, अधीक्षक अमीचंद, लेखाधिकारी महेश राघव, लेखाधिकारी सुरेश मदान सहित जयपाल लिपिक से जवाब मांगा है कि क्यों न उन्हें आरोपित किया जाए।
बता दें, सात और आठ अक्टूबर को हुडा ने 2.40 करोड़ रुपये आरक्षित मूल्य पर सेक्टर-12 के 72 एससीओ की ई-नीलामी की थी। इनमें से 58 एससीओ की लोगों ने हाथों-हाथ ई-नीलामी में सहमति दे दी। कुछ एससीओ 2.60 तो कुछ की 4.80 करोड़ रुपये तक सहमति दर्ज की गई। इसमें सफल लोगों को एससीओ देने की मंजूरी देने से ठीक पहले प्रशासक ने सभी 58 एससीओ की ई-नीलामी रद कर दी। हुडा के प्रशासनिक सूत्र मान रहे हैं कि जिन 58 एससीओ की ई-नीलामी में लोगों की खरीद सहमति 220 करोड़ रुपये आई है, यदि सही आरक्षित मूल्य तय किया जाए तो यह राशि 500 करोड़ रुपये पार कर सकती है।
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गत वर्ष भी की गई थी नीलामी रद
गत वर्ष नवंबर में तत्कालीन हुडा प्रशासक पीसी मीणा ने सेक्टर-28 के एक स्कूल की साइट रद की थी। तब ई-नीलामी में अंतिम खरीददार ने 10,83, 87, 500 रुपये की सहमति दी थी मगर ई-नीलामी में अपनी सहमति देने का समय खत्म होने से एक मिनट पूर्व दिल्ली पब्लिक स्कूल ने 11,28, 87, 500 रुपये की बोली लगाई। हालांकि कंप्यूटर दिल्ली पब्लिक स्कूल की यह बोली दर्ज नहीं कर पाया। इसके चलते हुडा प्रशासक ने दिल्ली पब्लिक स्कूल की लिखित शिकायत पर कंप्यूटर में दर्ज अंतिम बोली रद की थी। तब हाईकोर्ट ने भी प्रशासक का कथन उचित ठहराया था।