खेल, शिक्षा व स्वास्थ्य : थोड़ा सा है, बहुत व बेहतर की है जरूरत
सुशील भाटिया, पलवल : आज हरियाणा प्रदेश अपने गठन की 48वीं वर्षगांठ मना रहा है। साढ़े चार दशक से भी अध
सुशील भाटिया, पलवल : आज हरियाणा प्रदेश अपने गठन की 48वीं वर्षगांठ मना रहा है। साढ़े चार दशक से भी अधिक समय में हरियाणा के विभिन्न जिलों के नौजवानों ने खेल व शिक्षा के क्षेत्र में जहां ढेरों उपलब्धियां हासिल कर प्रदेश को राष्ट्रीय- अंतरराष्ट्रीय स्तर पर गौरव दिलाया, वहीं स्वास्थ्य क्षेत्र में भी कुछ चुनिंदा जिलों में बेहतर सुविधाएं उपलब्ध हैं, पर दक्षिण दिशा में अंतिम छोर पर स्थित प्रदेश का 21वां जिला पलवल को खेल, शिक्षा व स्वास्थ्य तीनों क्षेत्रों में अंतिम पायदान (मेवात से थोड़ा ऊपर) पर ही रखा जाए, तो कोई अतिश्योक्ति न होगी।
ब्रज क्षेत्र से जुड़ा पलवल जिले में खेल व शिक्षा के क्षेत्र में अपार प्रतिभाएं मौजूद हैं। खेलों में जहां पिछले वर्षो में यहां के युवाओं ने स्पेट(स्पोर्ट्स एंड फिजिकल एप्टीट्यूट टेस्ट)में सबसे ज्यादा स्थान हासिल किए, वहीं शिक्षा क्षेत्र में पलवल ने गुलाब सिंह सौरोत, बीरबल, ओम प्रकाश शर्मा, सुश्री दया रावत जैसी हस्तियां दी हैं, जिन्होंने भारतीय प्रशासनिक सेवा, भारतीय पुलिस सेवा और न्यायिक सेवा में अपनी अलग पहचान बनाई। इन विभूतियों से स्पष्ट है कि जिले में प्रतिभाएं हैं, उन्हें तराशने के लिए सच्चे पारखी चाहिए, उन्हें मौका मिलना चाहिए और सुविधाएं देने की जरूरत है, पर इसे पलवल वासियों की बदकिस्मती ही कहेंगे कि किसी भी सरकार ने जिले में खेल व शिक्षा क्षेत्र में समुचित व जरूरी सुविधाएं मुहैया कराने की सुध नहीं ली, पिछली सरकार ने कुछ कदम जरूर उठाए हैं, पर देरी से और ऊंट के मुंह में जीरे के समान।
अब मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर के नेतृत्व में गठित हुई भाजपा सरकार से पलवल वासी उम्मीद कर रहे हैं कि उनकी नजरें इनायत पलवल पर भी होंगी।
खेल : न स्टेडियम, न प्रशिक्षक
पलवल 15 अगस्त-2008 को पृथक जिले के रूप में अस्तित्व में आया। जिला बनने से पहले यहां की खेल प्रतिभाओं को अभ्यास के लिए फरीदाबाद का रुख करना पड़ता था। जब जिला बना तो उम्मीद जगी कि अब खिलाड़ियों की सुध ली जाएगी और उनकी प्रतिभाओं को तराशने के लिए पारखी यानी प्रशिक्षक आएंगे, पर जिला बनने के छह साल बाद भी जिले को न तो राष्ट्रीय स्तर को कोई स्टेडियम मिला और न ही प्रशिक्षक मुहैया हो पाए। और तो और जिला खेल मुख्यालय ही राजकीय स्कूल की जमीन पर चल रहा है। पांच साल तो पूर्णकालिक जिला खेल अधिकारी ही नहीं मिला। प्रशिक्षकों के नाम पर मात्र दो प्रशिक्षक एक योगा व एक एथलेटिक्स का मिला। इससे स्वत : ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि जब द्रोणाचार्य(प्रशिक्षक)ही नहीं होंगे, तो खिलाडि़यों को अर्जुन कौन बनाएगा। यहां यह भी बताना उचित होगा कि खेल विभाग की नीति है कि जब कोई प्रशिक्षक ही नहीं है, तो उस खेल से संबंधित न तो सुविधाएं मुहैया कराई जाती है और न ही कोई फंड आता है।
शिक्षा : यूनिवर्सिटी तो दूर की बात, कालेज भी नहीं
पलवल के अभिभावक लाडले-लाडलियों को फिलहाल अपने घर के आसपास सरकारी स्तर पर उच्चतर शिक्षा दिलाने की सोच भी नहीं सकते। उनके लिए यह दिवा स्वपन बना हुआ है। क्योंकि जिले में कोई यूनिवर्सिटी या मेडिकल कालेज तो दूर की बात, साधारण कालेज भी स्थापित नहीं हो पाया। महिला शिक्षा को बढ़ावा देने का ढिंढोरा पीटने वाली सरकारें जिले में अब तक भी एक अदद सरकारी महिला कालेज स्थापित नहीं करवा पाई। पिछली सरकार ने चार महीने पूर्व डा.अंबेडकर कालेज शुरू तो करवा दिया, पर कालेज प्रांगण में पढ़ाई कम और प्रशासन का काम अधिक चलता रहा। पहले लोकसभा चुनाव और फिर हरियाणा विधानसभा चुनाव की समूची प्रक्रिया यहीं से संचालित होती रही।
स्वास्थ्य : मात्र भवन से कैसे मिले चिकित्सीय सुविधाएं
जिला बनने के बाद पलवल के सामान्य अस्पताल की गतिविधियां छह साल तक सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र के भवन से ही चलती रही। हालांकि अलग भवन बनाने की प्रक्रिया जिला गठन के बाद से ही शुरू हो गई थी, पर यह 100 बिस्तर वाला अस्पताल का भवन अब दो महीने पहले बन कर तैयार हो गया। तब लोगों को उम्मीद बंधी कि अब उन्हें बेहतर चिकित्सीय सुविधाएं मिलेंगी, पर फिलहाल यह आशाएं धूमिल ही नजर आ रही हैं, क्योंकि जिले में समुचित संख्या में विभिन्न रोगों के चिकित्सकों व संसाधनों का अभाव है। ऐसे में मात्र भवन बन जाने से ही समुचित इलाज की उम्मीद करना बेमानी है।
खट्टर सरकार के लिए चुनौती
पिछली सरकार के मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा मार्च माह में लोकसभा चुनाव की घोषणा से ठीक पूर्व गांव घुघेरा में बनने वाले खेल स्टेडियम की आधारशिला रख गए। इसके अलावा अशोक सैनी के रूप में यहां पूर्णकालिक जिला खेल अधिकारी व चार खेल प्रशिक्षक भी नियुक्त हुए हैं। अब खट्टर सरकार के लिए चुनौती यह है कि खेलों का उचित माहौल बनाने के लिए जल्द से जल्द खेल स्टेडियम का निर्माण पूरा करवाए और विभिन्न अन्य खेलों के प्रशिक्षकों की नियुक्ति करे। इसके अलावा पलवल चूंकि कृषि प्रधान जिला है, इसलिए यहां कृषि विश्वविद्यालय स्थापित करने पर विचार किया जाना चाहिए। जिले में मेडिकल कालेज, लॉ कालेज और महिला कालेज की स्थापना करने बारे भी भाजपा सरकार के समक्ष बड़ी व प्रमुख चुनौती है। अगर सरकार ऐसा करने में सफल रहती है, तो राज्य की स्वर्ण जयंती वर्षगांठ यानी 50वें साल में यह यहां की जनता के लिए बड़ा व कीमती तोहफा होगा।
''सरकार कोई भी रही हो, पर पलवल के साथ तो अब तक पक्षपात व भेदभाव ही होता आया है। किया भी है, तो नाम मात्र का। हम भाजपा सरकार से कुछ बेहतरी की उम्मीद कर सकती है।''
-नारायण सिंह, पूर्व प्राचार्य, जीजीडीएसडी कालेज पलवल
''स्वास्थ्य सुविधाओं की दृष्टि से पलवल जिला बेहद पिछड़ा हुआ है। समुचित इलाज के अभाव में यहां के लोगों को फरीदाबाद-दिल्ली का रुख करना पड़ता है। हमें आशा है कि मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर की सरकार पलवल पर भी कृपा दृष्टि करेगी।''
-डॉ.जेके मित्तल, चिकित्सक, होडल
''खेल गतिविधियों के नाम पर यहां सिर्फ शून्य है। खेलों में आगे बढ़ने का शौक रखने वाले साधन संपन्न तो फरीदाबाद या दिल्ली चले जाते हैं, पर बाकी प्रतिभाएं आर्थिक अभाव में बीच रास्ते में ही दम तोड़ देती हैं। निश्चित रूप से नई सरकार के समक्ष खेलों का माहौल स्थापित करना बड़ी चुनौती है।''
-अल्पना मित्तल, महिला समाजसेवी