औद्योगिक सुरक्षा उपकरण में बनाई पहचान
जागरण संवाददाता, फरीदाबाद : उद्योगों में सुरक्षा के प्रति जागरूकता बढ़ने के साथ ही नगर में औद्योगिक
जागरण संवाददाता, फरीदाबाद : उद्योगों में सुरक्षा के प्रति जागरूकता बढ़ने के साथ ही नगर में औद्योगिक सुरक्षा उपकरण बनाने वाली कंपनियों ने अपनी पहचान स्थापित कर ली है। इन कंपनियों में उद्योगों में इस्तेमाल होने वाले दस्ताने, मास्क, जैकेट, कवरआल (एक साथ सिले जैकेट-पैंट) आदि बनाए जाते हैं। ऐसी कंपनियों की तादाद 100 से अधिक हो चुकी है, जो फरीदाबाद के अलावा आसपास के शहरों में भी सुरक्षा उपकरणों की सप्लाई कर रहे हैं।
दिलचस्प बात यह है कि इसके लिए बहुत बड़ी जगह की जरूरत नहीं नहीं पड़ती है। 15 से 20 कर्मचारियों वाले ये उद्योग छोटी-छोटी वर्कशाप में अपना काम चला रहे हैं, लेकिन इनके कारोबार का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि यहां हर महीने पांच लाख से अधिक दस्ताने तैयार होते हैं। इसके अलावा यहां तैयार पूरे शरीर को ढकने वाली जैकेट नुमा कवर आल, जैकेट, रिफ्लेक्टेड जैकेट और मास्क की मांग भी कम नहीं है।
जैन बंधुओं ने की थी शुरुआत
वर्ष 1986 में पंजाब से कपड़े और होजरी का काम छोड़ कर आए जैन बंधुओं ने यहां आकर सबसे पहले दस्ताने बनाने का काम शुरू किया। उस समय सिर्फ कुछ बड़े उद्योगों में दस्ताने का इस्तेमाल होता था और कोलकाता से ये दस्ताने आते थे। जैन बंधुओं ने यहीं दस्ताने बनाने शुरू किए। शुरू में उनका काम ज्यादा नहीं चला, लेकिन जब यहां के उद्योगों ने बहुराष्ट्रीय कंपनियों को माल सप्लाई करना शुरू किया तो उनके जोर देने पर इनको औद्योगिक सुरक्षा पर ध्यान दिया। इसके बाद जैन बंधुओं का तो काम चला ही, साथ ही शहर में छोटे-छोटे और भी कारखाने खुल गए, जो हर तरह के दस्ताने के साथ साथ दूसरे सामान भी बनाने लगे। जैन बंधु अब अलग-अलग काम कर रहे हैं और उनका कारोबार 70 से 80 लाख रुपये से सालाना है।
''पहले उद्योगों में कामगारों की सुरक्षा की ओर ध्यान कम दिया जाता था, लेकिन अब इनकी सुरक्षा का बहुत ख्याल रखा जाता है। नए युग के उद्यमी कामगारों की सुरक्षा का हर तरह का ख्याल रखते हैं। अब प्रधानमंत्री मोदी भी उद्योगों की ओर ध्यान दे रहे हैं, इसलिए औद्योगिक सुरक्षा उपकरण बनाने वाले उद्योग के दिन भी अच्छे आने तय हैं।''
-राकेश जैन, सीईओ, जैनसंस सेफ्टी इंडस्ट्रीज।
यहां भी चीनी घुसपैठ
पिछले कुछ वर्षों से चीन से निटेड ग्लवस्स (दस्ताने) आ रहे हैं, जो भारत में बन रहे दस्तानों से 15 से 20 फीसद सस्ते पड़ते हैं। राकेश बताते हैं कि इससे उनके कारोबार पर असर पड़ा है, लेकिन उनकी कोशिश है कि वो अपनी गुणवत्ता के आधार पर बाजार में टिके रहें।