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कांग्रेस से नाराज नहीं हूं

जागरण संवाददाता, बल्लभगढ़: मुख्य संसदीय सचिव शारदा राठौर बेशक इस बार चुनाव मैदान में नहीं हैं, मग

By Edited By: Published: Tue, 30 Sep 2014 02:36 AM (IST)Updated: Tue, 30 Sep 2014 01:04 AM (IST)
कांग्रेस से नाराज नहीं हूं

जागरण संवाददाता, बल्लभगढ़:

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मुख्य संसदीय सचिव शारदा राठौर बेशक इस बार चुनाव मैदान में नहीं हैं, मगर उनके समर्थक पूरी तरह सक्रिय हैं। कांग्रेस का टिकट कटने से नाराज शारदा समर्थक चुनाव में पूरी तरह भाजपा प्रत्याशी मूलचंद शर्मा के पक्ष में जुट गए हैं। हालांकि, खुद शारदा ने अभी तक भी अपने को चुनाव प्रचार से दूर रखा हुआ है। वे रविवार को शहर में मुख्यमंत्री आने के बावजूद भी दिखाई नहीं दी। शारदा ने अभी तक कांग्रेस छोड़ने संबंधी भी कोई फैसला नहीं लिया है। बताया जाता है कि वे कांग्रेस से नहीं बल्कि कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष डा.अशोक तंवर की टिप्पणी से नाराज हैं।

शारदा के खासमखास हो लिए शर्मा के साथ

2005 में बल्लभगढ़ से शारदा राठौर ने तत्कालीन इनेलो प्रत्याशी के रूप में मूलचंद शर्मा को बड़े अंतर से हराया था। इसके बाद शारदा ने चुनाव में मददगार अपने खास समर्थक और राजपूत बिरादरी के निर्विवाद नेता कंवर रतन सिंह एडवोकेट को नगर निगम में पार्षद मनोनीत कराया था। अब कंवर रतन सिंह भाजपा प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़ रहे मूलचंद शर्मा के पक्ष में प्रचार करते नजर आते हैं। उन्होंने पिछले दिनों राजपूत बिरादरी के प्रधान एस.आर.रावत के साथ मूलचंद शर्मा का स्वागत कर समर्थन दिया था।

शारदा ने दी कांग्रेस प्रत्याशी की जमानत जब्त कराने की चुनौती

शारदा राठौर ने जिस दिन प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष डा.अशोक तंवर की टिप्पणी से नाराज होकर चुनाव मैदान से हटने की घोषणा की थी उस दिन शारदा ने यह भी दावा किया था कि डा.तंवर जिसे भी कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में बल्लभगढ़ से लड़ाएंगे,उसकी जमानत जब्त होगी। राजनीतिक पंडित मानते हैं कि बेशक शारदा अपने समर्थकों से भाजपा प्रत्याशी के समर्थन में जाने के लिए अभी खुलेआम नहीं कह रही हों मगर उनके समर्थक इसी बयान के बाद से कांग्रेस प्रत्याशी को हराने में जुट गए हैं।

चुनाव में अगले फायदे नुकसान नहीं देखते नेता

राजनीति के जानकार कहते हैं कि चुनाव के दौरान राजनेता ठीक उसी तरह सोचते हैं जिस तरह सीमा पर युद्ध लड़ते समय फौजी सोचता है। भविष्य के फायदे-नुकसान उनके लिए कोई मायने नहीं रखते क्योंकि पांच साल में राजनीति कई बार बदल जाती है। ये पंडित मानते हैं कि शारदा ने इस बार चुनाव नहीं लड़कर सबसे बड़ी राजनीतिक भूल की है। वे बल्लभगढ़ में चुनाव लड़ रहे सभी उम्मीदवारों में सबसे सशक्त रहतीं।


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