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अभिमन्यु के पौत्र जन्मेजय ने किया था सर्पयज्ञ

By Edited By: Published: Sun, 19 May 2013 12:20 AM (IST)Updated: Sun, 19 May 2013 12:23 AM (IST)
अभिमन्यु के पौत्र जन्मेजय ने किया था सर्पयज्ञ

सुभाष डागर, फरीदाबाद : औद्योगिक नगरी फरीदाबाद के गांव सीही का इतिहास पांडव काल से जुड़ा है। यहा बना नागश्री मंदिर आसपास क्षेत्रों के लोगों के लिए आस्था का केंद्र बना हुआ है। महाभारत काल में महाराज जन्मेजय ने गांव सीही में नागयज्ञ किया था। इसी स्थान पर नागश्री के नाम से मंदिर बना हुआ है। अभी तक यहां पर सर्पो की हड्डियां निकलती हैं। ग्रामीण इन्हें टी-टी कहकर पुकारते हैं।

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महाभारत युद्ध के बाद पांडव अपना राज अभिमन्यु के पुत्र राजा परीक्षित को सौंप कर हिमालय चले गए थे। राजा परीक्षित को एक नाग जाति की कन्या से प्रेम हो गया था, लेकिन नाग कन्या का भाई तक्षक इसके विरोध में था। राजा परीक्षित ने विरोध के बावजूद नाग कन्या से विवाह रचा लिया। तक्षक ने प्रतिशोध लेने के लिए कई बार परीक्षित पर वार किया मगर परीक्षित को एक वरदान था कि वह सर्प के काटने के बाद यदि अपने जख्म को देख लेगा तो सर्प काटने का असर नहीं होगा। एक बार परीक्षित वन में शिकार खेलने जा रहे थे तो तक्षक एक सुंदर बेंत का रूप धारण करके पड़ा हुआ था। परीक्षित ने उसे बेंत समझकर उठा लिया और उससे अपनी कमर को खुजाना शुरू कर दिया। तभी तक्षक ने परीक्षित को डंक मार दिया। परीक्षित पीछे नहीं देख सकता था। सर्प के काटने के सात दिन तक परीक्षित जिंदा रहे। इस दौरान उन्हें व्यास ने भागवत कथा सुनाई। तब से भागवत कथा का शुभारंभ हुआ। इसके बाद राजा परीक्षित की मृत्यु हो गई। पिता की मौत का बदला लेने के लिए राजा जन्मेजय ने गांव सीही में नाग जाति को खत्म करने के लिए नागयज्ञ कराया।

गांव सीही निवासी देव कृष्ण तेवतिया ने बताया कि बताते हैं कि उस समय विद्वान अपने मंत्रों को बोलते थे तो दुनिया भर के सर्प उड़ कर आते थे और गर्म तेल के कढ़ाहों में गिर कर अपने प्राण देते थे। तक्षक अपने आप को बचाने के लिए राजा इंद्र के आसन के नीचे जाकर छुप गया। विद्वानों के मंत्रों से इंद्र का आसन हिलने लगा तो उन्होंने ऋषि नारद से इसका कारण पूछा। नारद ने जन्मेजय के यज्ञ के बारे में बताया। तब इंद्र गांव सीही में आए थे। उन्होंने जन्मेजय से कहा कि तक्षक उनकी शरण में आया है। इसलिए इसे क्षमा कर दें। इंद्र की बात सुनने के बावजूद तक्षक को बीच में से कढ़ाही में दे दिया। इसलिए सर्प के मुंह तथा पूंछ पर जहर होता है। बताते हैं कि सर्प बीच में से इसलिए मीठा होता है। अब पृथ्वी पर जितने भी सर्प है, वह उस तक्षक की संतान है। यहां पर जन्मेजय ने तक्षक से सात वचन भी भरवाए थे। उस स्थान पर नागश्री का भव्य मंदिर है। यहां पर खुदाई करते हैं तो सांपों की हड्डियां निकलती हैं। इन हड्डियों को ग्रामीण टी-टी कहते हैं। यहां पर एक नाग यज्ञ के स्थान पर तालाब भी है, जिसे नाग-यज्ञ सरोवर के नाम से पुकारा जाता है। इसमें स्नान करने से चर्म रोग दूर हो जाते हैं।

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