परमसुख के लिए अनाशक्ति जरूरी : रमणानंद
जागरण संवाददाता, चरखी दादरी : परिव्रजक संत, व्यासपीठासीन स्वामी रमणानंद पुरी ने कहा कि भवसागर स
जागरण संवाददाता, चरखी दादरी :
परिव्रजक संत, व्यासपीठासीन स्वामी
रमणानंद पुरी ने कहा कि भवसागर से पार होने के लिए भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में परा विद्या का उपदेश दिया है। इसलिए भगवान को वैधय संज्ञा लेनी पड़ी। सन्यास आश्रम को बनाने वाले भी परमात्मा है। स्वामी रमणानंद पुरी कीकरवासनी क्षेत्र स्थित श्री बड़ा हनुमान मंदिर परिसर में श्री विष्णु सहस्त्र नाम का व्याख्यान कर रहे थे। उन्होंने कहा कि अधिकारी मनुष्य को अपने संसार का कर्तव्य पूरा करके सन्यास आश्रम में प्रवेश करना चाहिए। सन्यास लेकर केवल आत्मा निष्ठा में ही तत्पर होना चाहिए। ग्रहस्थ में प्रवेश करके ग्रहस्थोचित कर्म अनाशक्त भाव से करने चाहिए। सन्यासियों का धर्म है प्रसन्न अर्थात मन को शांत रखना। वामप्रस्थ का धर्म होता है विभिन्न प्रकार के नियम लेकर अनुष्ठान करना। ग्रहस्थ का मुख्य कर्तव्य है दान देना एवं ब्रह्मचर्य का मुख्य कर्तव्य है गुरू की सेवा करना। दान के प्रसंग में स्वामी रमणानंद ने कहा कि ग्रहस्थ को न्याय से धन कमाकर दस प्रतिशत धर्म में लगाए। धर्म दो प्रकार के है एक सकाम और दूसरा निष्काम। सकाम भाव से अनुष्ठान करने पर संसारी की सुख सुविधा प्राप्त होती है परंतु समय आने पर उन सुख सुविधाओं का वियोग भी हो जाता है। परंतु निष्काम भाव से किया हुआ अनुष्ठान मन को पवित्र बनाता है। मन में संसार का वैराग्य उत्पन्न होता है जिससे साधक मोक्ष ज्ञान बनता है इस प्रसंग में महाभारत का नेवला का उदाहरण देकर बताया कि किस प्रकार परिश्रम से प्राप्त ब्राह्माण परिवार के दान दिया हुआ सतु का गिरा हुआ कण का स्पर्श करके नेवला का आधा भाग सोने का हो गया था और आधा भाग महाराज युधिष्ठर के अश्वमेघ यज्ञ मंडप के धुल से भी सोना नहीं हो पाया क्योंकि युधिष्ठर महाराज हिमालय से धन प्राप्त कर अश्वमेघ यज्ञ किया था। नेवला के प्रसंग में महाभारत में उल्लेख हुआ है कि सद ग्रहस्थ के न्याय से धन कमाकर धन को तीन भाग में विभक्त करना चाहिए। एक भाग धर्मार्थ, दूसरा भाग भोगार्थ के लिए एवं तृतीय भाग धन को बढ़ाने के लिए विनियोग करना चाहिए।