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निर्दलीय उमेद ने बिगाड़े कईयों के समीकरण

जागरण संवाददाता, चरखी दादरी : बाढ़डा विधानसभा क्षेत्र के चुनावी इतिहास में पहली बार किसी निर्दलीय

By Edited By: Published: Mon, 20 Oct 2014 06:24 PM (IST)Updated: Mon, 20 Oct 2014 06:24 PM (IST)
निर्दलीय उमेद ने बिगाड़े कईयों के समीकरण

जागरण संवाददाता, चरखी दादरी :

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बाढ़डा विधानसभा क्षेत्र के चुनावी इतिहास में पहली बार किसी निर्दलीय प्रत्याशी ने न केवल बड़ी तादाद में मत हासिल किए बल्कि स्थापित चुनावी समीकरण भी उलट फेर कर दिए। उमेद सिंह पातुवास इस क्षेत्र से पहले भी जिला पार्षद का चुनाव रिकार्ड अंतर से जीत चुके है। वे कई वर्षाें इनेलो से जुड़े हुए थे तथा पार्टी के पदाधिकारी थे। बाढ़डा हलके से उन्होंने दूसरे प्रत्याशियों की तरह इनेलो से टिकट के लिए दावेदारी जताई थी। टिकट न मिलने पर उन्होंने पंचायती उम्मीदवार के तौर पर निर्दलीय चुनाव लड़ा था। उन्हें मिले मतों ने सभी को चौंकाया है। उमेद पातुवास को 24 हजार 362 मत मिले है। हालांकि चुनावी मुकाबले में वे चौथे स्थान पर रहे है लेकिन सम्मान जनक मत हासिल करने में सफल रहे। यहां यह माना जा रहा है कि इनेलो के कुछ नाराज कार्यकर्ता, समर्थक व मतदाता उनके साथ थे। वे लंबे समय से समाजसेवा के क्षेत्र में सक्रिय रहे जिसका लाभ उन्हें चुनाव में मिला है। इनेलो प्रत्याशी कर्नल रघबीर सिंह छिल्लर 30 हजार 338 मत लेकर तीसरे स्थान पर रहे है। वे जीतने वाले भाजपा के अपेक्षाकृत युवा व नए प्रत्याशी सुखविंद्र मांढ़ी से 8751 मतों से पिछड़ गए है। यहां यह माना जा रहा है कि उमेद पातुवास को मिलने वाले मतों का एक बड़ा हिस्सा इनेलो के परंपरागत मतों का रहा है। इसी प्रकार वे कांग्रेस प्रत्याशी रणबीर सिंह महेंद्रा के मतों में भी कुछ हद तक सेंध लगाने में कामयाब रहे है। जानकारों का मानना है कि यदि उमेद पातुवास मैदान में नहीं होते तो बाढ़डा हलके के चुनावी नतीजे कुछ और ही होते। भाजपा की बढ़त, इनेलो व कांग्रेस के पिछड़ने में उमेद पातुवास को मिले मत एक हद तक निर्णायक साबित हुए है। पहली बार निर्दलीय तौर पर चुनाव लड़कर उमेद पातुवास भले ही नतीजे के चौथे पायदान पर रहे हो लेकिन बाढ़डा हलके के चुनावी समीकरण उलटफेर करने में उनके मतों को निर्णायक माना जा रहा है। नतीजों से पूर्व उन्हें कोई भी गंभीरता से लेने को तैयार नहीं था लेकिन अब यह भी चर्चा है कि मुकाबले में खड़ी सियासी दल की टिकट उन्हें मिल जाती तो नतीजे कुछ और ही होते।


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