हमारे खोजी इनोवेटर्स
जिज्ञासा होगी, तभी खोज कर सकेंगे। हर किसी में यह खोजी प्रवृत्ति स्वाभाविक रूप से होती है। प्रेरणारूपी खाद मिलते ही अंदर का वैज्ञानिक जाग जाता है। मिलते हैं ऐसे ही खोजी इनोवेटर्स से...
कोच्चि के दो बच्चे प्रणव एवं गायत्री अक्सर दोपहिया वाहनों की टक्कर व दुर्घटनाओं की खबरें पढ़ा करते। जब भी वे पिता के दोपहिया वाहन से कहीं जाते, तो मां परेशान हो जातीं। बच्चों को लगा कि इस समस्या का कोई निदान तो निकालना चाहिए। आखिर क्या करें कि हादसे से पहले ही कोई सिग्नल या अलार्म बज जाए? उन्होंने दोपहिया वाहन में एक ऐसी इमरजेंसी लाइट और सायरन युक्त सिस्टम इंस्टॉल करने का आइडिया सुझाया, जो दुर्घटना से पहले ही सक्रिय हो जाएगा। अगर टक्कर हो भी जाए, तो वहां से गुजरने वाले दूसरे वाहनों को चेतावनी मिल जाएगी। दोस्तो, एक प्रचलित कहावत है, आवश्यकता आविष्कार की जननी है। हमारे बीच ऐसे अनेक बच्चे-किशोर हैं, जिन्होंने अपने आसपास की जमीनी समस्याओं को देखने और उनका अध्ययन करने के बाद वैज्ञानिक तरीके से समाधान निकाला।
मानसिक परेशानी को समझा
एक अनुमान के अनुसार, भारत में करीब 13 से 14 प्रतिशत स्कूली बच्चे किसी न किसी प्रकार की लर्निंग डिसएबिलिटी का सामना कर रहे हैं। लोगों को इसकी पर्याप्त जानकारी नहीं है। ऐसे में भोपाल के हर्ष सोंगरा ने ‘माई चाइल्ड’ नाम से ऐप बनाया है, जो 45 सेकंड में बच्चों की मानसिक परेशानी को स्क्रीन कर लेगा। इसके लिए अभिभावकों से बच्चे की उम्र, लंबाई, वजन आदि के बारे में कु छ सवाल किए जाएंगे। दरअसल, हर्ष खुद भी डिलेड मोटर को- ऑर्डिनेशन नामक बीमारी से जूझ रहे हैं। वह नहीं चाहते कि उन्हें जिन हालात से गुजरना पड़ा, दूसरे बच्चे भी उसका सामना करें।
बुजुर्ग-दिव्यांग बने प्रेरणा
पटना की शालिनी कुमारी के दादा जी घर की छत पर बागवानी करते थे, लेकिन एक हादसे के बाद उन्हें वॉकर की मदद से चलने को मजबूर होना पड़ा। वे सीढ़ियां नहीं चढ़ पाते थे। बागवानी छूट गई। शालिनी को यह अच्छा नहीं लगा। उसने अपने खोजी दिमाग से वॉकर में कुछ तब्दीलियां करने का सुझाव नेशनल इनोवेशन फाउंडेशन को भेजा। उन्होंने उसे विकसित करने की जिम्मेदारी एक कंपनी को सौंप दी। आज जो मॉडिफाइड वॉकर तैयार हुआ है, उसमें स्प्रिंग लोडेड सेल्फ- लॉकिंग फ्रंट लेग्स, हॉर्न एवं लाइट लगे हैं। लोगों को इससे सहूलियत हुई है। शालिनी कहती हैं, ‘मैं नौवीं में थी, जब यह आइडिया आया था कि वॉकर के सामने वाले लेग्स को एडजस्ट करने से सीढ़ियां चढ़ना मुश्किल नहीं होगा। फिलहाल मेडिकल की तैयारी कर रहीं शालिनी का मानना है कि एक औसत बच्चा भी इनोवेशन कर सकता है, जरूरत सिर्फ उसे मोटिवेट करने की है।
ध्यान भटकने पर खुला दिमाग
जोधपुर से इलेक्ट्रॉनिक्स ऐंड इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग कर रहे रुद्र गोस्वामी बचपन में एक औसत छात्र हुआ करते थे। परीक्षा में अंक भी अधिक नहीं आते थे, लेकिन मैथ्स एवं साइंस में रुचि और वायर, बैट्री के साथ काम करना अच्छा लगता था। वे बताते हैं,‘मैंने सातवीं के बाद पढ़ाई को गंभीरता से लेना शुरू किया। हालांकि 11वीं में जब हॉस्टल में रहना हुआ, तो मन भटकने लगा। सूझ ही नहीं रहा था कि क्या करूं? मैंने देखा कि स्टूडेंट्स का ज्यादा वक्त कलम के साथ बीतता है, तो सोचा क्यों न उसमें ही कुछ नया प्रयोग किया जाए? मैंने कलम की ग्रिप पर प्रेशर सेंसर लगाया, जो भटकाव होने पर सिग्नल देकर हमें सचेत कर देता है। रुद्र के अनुसार, साइंटिफिक टेम्परामेंट के लिए किताबी नहीं, बल्कि व्यावहारिक ज्ञान जरूरी है।
ठेला चालकों की परेशानी
तमिलनाडु के नमक्कल की 11वीं की छात्रा आर. पवित्रा पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम को अपनी प्रेरणा मानती हैं। उन्हें देखकर ही खेलखेल में कुछ प्रयोग करने शुरू किए थे। जब देखा कि ठेला चालकों को सड़कों पर किस तरह ढलान या मुहाने पर मुश्किलें होती हैं, तो उन्होंने ठेले की स्टीयरिंग पद्धति को आसान बनाने एवं उसमें ब्रेक आदि लगाने का सुझाव दिया। एनआईएफ को वह आइडिया पसंद आया और इसके लिए उन्हें इग्नाइट अवार्ड से सम्मानित किया गया। पवित्रा कहती हैं,‘हम जो ज्ञान अर्जित करते हैं, उससे समाज के लिए उपयोगी चीजों का निर्माण करना चाहिए, ताकि लोगों को सहूलियत हो। उनका जीवन आसान हो। आज वे हैंडलूम और कृषि उपकरणों को विकसित करने में जुटी हैं।
विकसित करनी होगी शोध की प्रवृत्ति
बच्चों के सुझाव से ही नए इनोवेशन हो रहे हैं। ऐसे में उनकी उत्सुकता को अगर बढ़ाना है, उनमें वैज्ञानिक सोच उत्पन्न करनी है, तो उन्हें जड़ों से जोड़ना होगा। आज हमारे चारों ओर इतने प्रकार के अंधविश्वास फैले हुए हैं, जिनका कोई वैज्ञानिक आधार नहीं। हमें कोशिश करनी होगी कि बच्चे वैज्ञानिक तरीके से सोचें। आसपास के प्राकृतिक एवं भौतिक संसाधनों के बारे में जानें। उनसे बहुत कुछ सीखा जा सकता है। इसी तरह बुजुर्गों एवं महिलाओं की अनेक समस्याएं हैं। उनका हल निकालने के बारे में सोचना होगा, जिसके लिए संवेदना चाहिए। एक संवेदनशील इंसान ही दूसरों का दर्द महसूस कर सकता है। हमें ऐसी पीढ़ी तैयार करने की जरूरत है, जो समस्याओं के साथ रहने की बजाय उसका हल निकाले। बच्चों में शुरुआत से ही शोध की प्रवृत्ति को विकसित करना होगा। उनमें बेचैनी का बीज डालना होगा।
-अनिल गुप्ता, एग्जीक्यूटिव वाइस चेयर, एनआईएफ
गलती करने की छूट
बच्चों में साइंस के प्रति रुझान पैदा करने के लिए अन्वेषण की प्रवृत्ति विकसित करनी होगी। उन्हें गलतियां करके, उससे उबरने और सीखने की छूट देनी होगी। स्कूलों में ऐसा माहौल बनाना होगा, जिससे स्टूडेंट्स के अंदर जिज्ञासा उत्पन्न हो। बच्चों को तकनीक के साथ ही लकड़ी, कंकड़, मिट्टी, पानी से कुछ नया बनाने की आजादी देनी होगी।
-सोनम वांगचू, इनोवेटर
हल निकालने की प्रेरणा
समस्याओं की बात करें, तो वे हमारे आसपास नहीं, बल्कि दिमाग में होती हैं। बच्चों के सामने समाज में जितने उदाहरण होंगे, वे जितना देखेंगे, उतनी जिज्ञासा बढ़ेगी और वे सीखेंगे। बच्चों को उन समस्याओं का हल निकालने के लिए प्रेरित करें, जो वे अपने स्कूल या आसपास देखते हैं, क्योंकि जो चीज जीवन को आसान बनाए, वही साइंस है।
-अनुज शर्मा, संस्थापक, बटन मसाल
प्रस्तुति- अंशु सिंह