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आ रही है परीक्षा की घड़ी, पर डरें ना बल्कि ऐसे करें खुद को तैयार

परीक्षा के नाम भयभीत होने वाले छात्र कैसे इससे मुक्‍त होकर परीक्षा में उम्‍दा प्रदर्शन कर सकते हैं, इस संदर्भ में विवेक शुक्ला ने की कुछ मनोचिकित्सकों से बात....

By Pratibha Kumari Edited By: Published: Thu, 16 Feb 2017 01:52 PM (IST)Updated: Thu, 16 Feb 2017 02:56 PM (IST)
आ रही है परीक्षा की घड़ी, पर डरें ना बल्कि ऐसे करें खुद को तैयार
आ रही है परीक्षा की घड़ी, पर डरें ना बल्कि ऐसे करें खुद को तैयार

जैसे ही विभिन्न शैक्षिक बोड्स की परीक्षाएं शुरू होती हैं, छात्रछात्राओं में ‘परीक्षा के खौफ’ के लक्षण सिर चढ़कर दिखाई देने लगते हैं। इस स्थिति के कारण पढ़ने वाले बच्चों को अक्सर गर्दन पर खिंचाव की वजह से दर्द, कंधों में जकड़न और अपर्याप्त नींद आदि समस्याएं उत्पन्न होने लगती हैं। परीक्षा का समय शायद छात्र-छात्राओं की उम्र के दौर का सबसे तनावपूर्ण समय होता है। ऐसा इसलिए, क्योंकि परीक्षाओं के परिणाम पर ही छात्र-छात्राओं का भविष्य निर्भर करता है।

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उबरें पढ़ाई के दबाव से
आज छात्र-छात्राओं को उच्चस्तरीय प्रतियोगी परीक्षाओं का अधिक सामना करना पड़ता है। वे अपने स्कूल से संबंधित कार्यों में दिन का लगभग एक तिहाई समय व्यतीत करते हैं, जबकि लड़कियां लड़कों से ज्यादा समय बिताती हैं। स्कूल का कार्य कुछ नकारात्मक स्थितियां भी पैदा करता है। जैसे बहुत ज्यादा सामाजिक चिंताएं और
चयन करने की क्षमता में कमी आदि। ये नकारात्मक प्रभाव होमवर्क के दौरान ज्यादा सक्रिय होते हैं। जो बच्चे होमवर्क नियमित रूप से करते हैं, वे भावनात्मक और अन्य समस्याओं का सामना कम करते हैं। इसलिए
इम्तहान से पहले पढ़ाई के दौरान बच्चों को नियमित रूप से होमवर्क करना चाहिए।

तनाव पर नियंत्रण
तनाव एक ऐसी बेचैनी होती है, जो हर किसी को अलग-अलग तरह से प्रभावित करती है चाहे वह कोई छात्र-छात्रा हो या कोई वयस्क। साधारणत: पढ़ने वाले बच्चों के लिए तनाव के कई कारण हो सकते हैं। जैसे अपशब्द, उपेक्षा, गरीबी, परीक्षा में असफलता या बीमारी आदि। हालांकि कुछ हद तक तनाव लाभदायक हो सकता है, क्योंकि सीमित तनाव से बच्चों को पढ़ाई के प्रति सचेत करने में मदद मिलती है। अक्सर एक छात्र-छात्रा में तनाव की कई
प्रतिक्रियाएं होती हैं। जैसे वे अपने प्रति लोगों से ज्यादा सावधानी की अपेक्षा रखता है, मूड में बदलाव आना, कुछ कामों को करने से टालना या अकेले रहना, स्कूल जाने से मना करना, स्कूल का काम न करना, सोने में दिक्कत होना या शारीरिक कष्ट होना जैसे सिरदर्द या हाजमे से संबंधी समस्याएं आदि। इन समस्याओं के निवारण में अभिभावकों के सहयोग की जरूरत है।


अपेक्षाओं का अधिक भार न डालें:
अभिभावक अपने बच्चों को सफल देखना चाहते हैं और उनके शैक्षिक प्रदर्शन से बहुत ज्यादा अपेक्षाएं रखते हैं, ऐसे में यह प्रश्न उठता है कि क्या हमारी अपेक्षाएं बहुत ज्यादा हैं? अभिभावकों को बच्चों की क्षमता और उनकी दिलचस्पी को समझना चाहिए और उन पर अपनी अपेक्षाएं पूरी करने का दबाव नहीं डालना चाहिए।

बच्चों की सुनें
आपका बेटा या बेटी जब वह किसी तनावपूर्ण स्थिति के बारे में बता रहा हो, तो आप एक अच्छे श्रोता बनें और अपने बच्चों को यह आश्वस्त करें कि आपका उनके साथ पूरा सहयोग और प्यार साथ है।

समस्याओं को सुलझाने का तरीका सिखाएं : बच्चों को बड़ी समस्याओं को आसानी से सुलझाने का तरीका सिखाने में मदद करें। उनके साथ बात करें और उन्हें बताएं कि आपने अपनी तनावपूर्ण स्थितियों का सामना किस प्रकार किया था।
अतार्किक सोच से सचेत रहें: कई बार हम बच्चों को इस प्रकार के वाक्यों को कहते हुए सुनते हैं कि,‘मुझे अच्छे नंबर लाने हैं, अन्यथा दोस्त मेरा मजाक उड़ाएंगे। इसी तरह यदि मैं परीक्षा में अच्छे नंबर नहीं लाया, तो मुझे पता है कि मेरे माता-पिता कितने निराश होंगे।’ यदि आपको ऐसा लगे कि तनाव आपके बच्चों के शब्दकोश
का एक हिस्सा बनता जा रहा है, तो उनसे सकारात्मक वार्तालाप करें और उनकी मदद करें।

ध्यान और योग
योग आप के बच्चों के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को सुधारने की एक बेहतर विधि साबित हो सकता है। ध्यान और योग प्रभावकारी विधिया हैं, लेकिन ये उन बच्चों पर ज्यादा असर करती हैं, जिनके माता-पिता अपने बच्चों से खुलकर बात करते हैं और तनावपूर्ण स्थिति में उनकी मदद करते हैं।
(डॉ.गौरव गुप्ता, वरिष्ठ मनोरोग विशेषज्ञ तुलसी हेल्थ केयर, नई दिल्ली)

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लक्ष्य अवश्य बनाएं
परीक्षा के डर से पढ़ना, पढ़ने के लिए स्थायी तौर पर प्रेरणा नहीं बन सकता। दीर्घ-काल में अपने लक्ष्य को पूरा करने के लिए पढ़ने या अध्ययन की प्रवृत्ति स्टूडेंट्स को कहीं ज्यादा प्रेरणा प्रदान कर सकती है। हो सकता है कि अनेक छात्रों ने अभी यह निर्णय न लिया हो कि वे भविष्य में क्या करना या बनना चाहते हैं, पर वे सभी सफल
तो होना ही चाहते हैं। जैसे, दीर्घकालिक लक्ष्य (लांग टर्म गोल) से संबंधित विजन दस साल बाद का हो सकता है। इस विजन को सकारात्मक होना चाहिए, जो सफलता से जुड़ा हो। आप उस सकारात्मक विजन को साकार करने
के लिए अभी से प्रयास करें और उसे अपनी प्रेरणा बनाएं। याद रखें सफलता सिर्फ अच्छे नंबरों को प्राप्त करना भर नहीं है। सफलता जीवन को इस तरीके से जीना है कि आप अपने जीवन की समस्याओं को भी पहचान सकें। आपका विजन आपको पढ़ने के लिए लक्ष्य प्रदान करेगा। याद रखें, एग्जाम न तो जिंदगी की परिभाषा है और न ही सफलता की। इस तरह की संतुलित सोच आपको परीक्षा में उम्दा प्रदर्शन के लिए प्रेरित करने में सक्षम है। इससे परीक्षा का खौफ खत्म हो जाता है।
(डॉ.अचल भगत, मनोरोग विशेषज्ञ, अपोलो हॉस्पिटल, नई दिल्ली)

अभिभावक ध्यान दें
- पढ़ाई के दौरान बच्चा यदि थोड़ी देर के लिए फोन करता है, गेम्स खेलता है या टी.वी. देखता है, तो कुछ वक्त के लिए उसे ऐसा करने दें। इससे दिमाग में ताजगी आती है और दोबारा पढ़ने बैठने पर बच्चा बेहतर रूप से एकाग्रचित्त होकर पढ़ पाता है।
- विशेषकर परीक्षाओं के दिनों में बच्चे की पढ़ाई व उसकी तैयारी की तुलना दूसरे बच्चों जैसे उसके भाई- बहनों,पड़ोसियों के बच्चों या उसके दोस्तों (जो अच्छी तरह से पढ़ाई कर रहे हों) से न करें। इससे बच्चा हतोत्साहित होता है।
- परीक्षा के परिणाम व नंबरों से जुड़ी अपेक्षाओं को अभिभावक बच्चे पर न थोपें। इससे बच्चे में विफलता का भय पनपता है और उसका आत्म-विश्वास डगमगाने लगता है।
- यदि बच्चा हताशा में आकर आपसे कहता है कि उसकी तैयारी बेकार है और वह फेल होने वाला है, तो उसकी पूरी बात सुनें। इसके बाद अपनी ओर से उसकी पढ़ाई व तैयारी को लेकर संतोष व विश्वास जताएं।
- बच्चे को आश्वस्त करें कि हर अच्छी व बुरी स्थिति में हम उसके साथ हैं।
(डॉ.उन्नति कुमार, मनोरोग विशेषज्ञ)


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