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सांसों पर हमला कर रहे हैं बायो एयरोसोल

कीट-पतंगों,पेड़-पौधों व इंसानी बीमारी से निकलने वाले अवशेष हवाओं में घुलकर मानव शरीर को संक्रमित करने के साथ सांसों पर हमला कर रहे हैं।

By Srishti VermaEdited By: Published: Mon, 17 Apr 2017 12:27 PM (IST)Updated: Mon, 17 Apr 2017 12:53 PM (IST)
सांसों पर हमला कर रहे हैं बायो एयरोसोल
सांसों पर हमला कर रहे हैं बायो एयरोसोल

कीट-पतंगों,पेड़-पौधों व इंसानी बीमारी से निकलने वाले अवशेष हवाओं में घुलकर मानव शरीर को संक्रमित करने के साथ सांसों पर हमला कर रहे हैं। आइआइटी के अध्ययन में पाया गया है कि इन अवशेषों से बनने वाले बायो एयरोसोल (हवा में घुलकर तैरने वाले ठोस कण) घरों में पांच से 34 फीसद तक पाए जा सकते हैं। यह सांसों के जरिए शरीर में पहुंचकर इंसान को बीमार बना रहे हैं। शोध में यह बात सामने आई है कि मोटी दरी, मोटी कालीन, मोटी चादर व पर्दों में यह कण चिपक जाते हैं और हवा के साथ सूक्ष्म कणों में तैरते रहते हैं।

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आइआइटी कैंपस से लेकर शहर के बाहरी वातावरण व घरों में किए गए शोध कार्य के दौरान पांच सौ नमूने लिए गए। इनका अध्ययन करने के बाद जो परिणाम सामने आए, वे चौंकाने वाले थे। जिन घरों में सांस संबंधित बीमारियां पाई गईं, स्वस्थ होने के बाद भी उन स्थानों पर बीमारियों को जन्म देने वाले जैविक एयरोसोल कारक जीवित थे। आइआइटी के सिविल इंजीनिर्यंरग विभाग के डॉ. तरुण गुप्ता, रिसर्च स्कॉलर अमित सिंह चौहान व आइआइटी के स्वास्थ्य सलाहकार डॉ. संदीप कुमार मिश्रा की टीम का यह शोध कार्य ‘जनरल ऑफ अर्थ साइंसेज एंड इवायर्नमेंटल स्टडीज कैलीफोर्निया यूनाइटेड स्टेट’ ने प्रकाशित करने के लिए चुना है।

मौसम के बदलाव पर होता है अधिक खतरा
डॉ.संदीप मिश्रा के अनुसार, मौसम के बदलाव से बायो एयरोसोल का खतरा बढ़ जाता है। हवा में तैरने वाले बायो एयरोसोल इस दौरान लगातार बढ़ते रहते हैं। इससे ‘एलर्जिक रायनाइटिस’ बीमारी होने का खतरा रहता है। रिसर्च स्कॉलर अमित सिंह चौहान बताते हैं कि सबसे बड़ी बात यह है कि तक इन कणों की सुरक्षित मात्रा का अभी तक निर्धारण नहीं किया जा सका है जबकि पीएम (पर्टिकुलेट मैटर यानी प्रदूषण के सबसे छोटे कण) 2.5 से शरीर में
होने वाली बीमारियों की बात की जाए तो इसकी मात्रा निर्धारित है। पीएम 2.5 की एक मीटर क्यूब में 60 माइक्रोग्राम से अधिक मात्रा शरीर के लिए नुकसानदायक होती है।

-जेएनएन

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