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कबड्डी में आंख खोई, पर हिम्मत नहीं हारी, खाट बुनकर चलाते हैं जिंदगी

कहते हैं कि ईश्वर जब लेता है, तो बहुत कुछ देता भी है। पर इसे हर कोई समझ नहीं पाता। आमघरा के दिव्यांग कुर्सी-खाट बुनकर जीविकोपार्जन करते हैं।

By Bhupendra SinghEdited By: Published: Wed, 22 Jun 2016 06:26 AM (IST)Updated: Wed, 22 Jun 2016 06:33 AM (IST)
कबड्डी में आंख खोई, पर हिम्मत नहीं हारी, खाट बुनकर चलाते हैं जिंदगी

सूरत। कहते हैं कि ईश्वर जब लेता है, तो बहुत कुछ देता भी है। पर इसे हर कोई समझ नहीं पाता। आमघरा के दिव्यांग कुर्सी-खाट बुनकर जीविकोपार्जन करते हैं। उनकी बुनाई इतनी सधी हुई होती है कि लोग दंग रह जाते हैं। यह कला उन्होंने दिव्यांग होने के बाद आईटीआई से सीखी।

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आमघरा के अहीरवाड में रहने वाले रामभाई जैराम भाई अहिर 61 साल के हैं। बचपन में उनकी आंखें ठीक थीं। पर युवावस्था में एक बार कबड्डी खेलते हुए उनकी बायीं आंख की रोशनी खो गई। उसके बाद उस आंख का जब ऑपरेशन करवाया, तब दायीं आंख की रोशनी भी चली गई।


आईटीआई में प्रशिक्षण लिया


दोनों आंखों की रोशनी चले जाने के बाद रामभाई का जीवन मुश्किल हो गया। ऐसे में किसी ने उन्हें सलाह दी कि अहमदाबाद आईटीआई में जाओ, वहां रोजगार के लिए कोई न कोई काम सीख लोगे। इसके बाद रामभाई ने 1989 और 1990 के दौरान वहां कुर्सी में पट्टी भरने का कोर्स किया। जिंदगी की नई शुरुआत हुई। उसके बाद वे वलसाड़ आ गए। यहां उन्होंने कुर्सियों में पट्टी भरने का काम शुरू किया। यह काम वे दस साल तक करते रहे। इस दौरान उन्हें लगा कि कुछ नया करना चाहिए। अतएव उन्होंने खाट भरने की कोशिश की। इस काम में उन्हें सफलता मिली। आज उस काम में उनकी इतनी अधिक महारत हासिल है कि लोग उन्हें अपने घर अपने वाहन से ले जाते हैं। बाद में छोड़ भी देते हैं।


एक दिन में दो खाट का काम
राम भाई अहीर खाट में पट्टी बुनने का काम इतनी तेजी से करते हैं कि लोग देखते रह जाते हैं। वे एक दिन में दो खाट का काम पूरा कर लेते हैं। एक खाट बुनने का वे 400 रुपए लेते हैं। इस तरह से वे रोज 800 रुपए कमा लेते हैं।


अपना काम अच्छी तरह से करते हैं
हम बरसों से आमघरा के राम भाई के पास खाट बुनने का काम करवा रहे हैं। वे नेत्रहीन होने के बाद भी अपना काम अच्छी तरह से जानते हैं। उनके काम को देखकर कोई भी नहीं कह सकता कि यह किसी नेत्रहीन व्यक्ति का काम है।
रणछोड़ भाई पटेल, मलियाघ्ररा

उन्हें काम करता देख मैं हतप्रभ रह गया


जब मुझे पता चला कि आमघरा के नेत्रहीन राम भाई खाट बुनने का काम बहुत ही कुशलता के साथ करते हैं, तो मैं दो खाट लेकर उनके पास गया। वहां मैंने देखा कि नेत्रहीन होने के बाद भी रामभाई बहुत ही सुंदर तरीके से खाट बुनने का काम करते हैं, मैं उनके काम को देखकर हतप्रभ रह गया-पंकजभाई पटेल, देगाम


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