ये लो गर्भनाल, मेरे बच्चे को स्कूल में दाखिला दे दो
सूरत। गत सप्ताह दक्षिण गुजरात की बमरोली प्राथमिक शाला में यह अजीबो-गरीब वाकया पेश आया। महिला का भोलापन और अज्ञानता देख आचार्य ने भी गर्भनली के आधार पर उसके बच्चे को दाखिला भी दे दिया। बच्चे के जन्म का कोई दस्तावेज न होने पर महिला गर्भनली (नार) लेकर ही स्कूल पहुंच गई थी। उसे आचार्य के समक्ष रख दिया। पांच वर्ष की उम्र का बच्चे लगने पर आचार्य ने उसे पहली कक्षा में प्रवेश भी दे दिया।
पखवाड़े पहले कहा था जन्म का प्रमाण लाना
बमरोली निकाय संचालित हिंदी शाला संख्या-91 में 1600 विद्यार्थी है। कक्षा एक में प्रवेश प्रक्रिया चल रही है। इस स्कूल में अधिकांश श्रमजीवियों के बच्चे पढ़ते हैं। 15 दिन पहले बच्चे का दाखिला करवाने के लिए स्कूल आई इस महिला को आचार्य सूर्यदेव तिवारी ने बच्चे के जन्म का प्रमाण लाने को कहा था। इसे लेकर वह असमंजस में थी कि यह क्या होता है। पुन: स्कूल पहुंची तो अपनी थैली में से एक रूमाल निकाल कर आचार्य के हाथ पर रख दिया। आचार्य ने उसे खोल कर देखा तो मोटे धागे नुमा कुछ सूखी हुई चीज नजर आई प्राचार्य ने महिला से पूछा ये क्या है। प्राचार्य जवाब सुनकर दंग रहे गए। महिला ने सहजता से कहा कि बच्चे की गर्भनाल है। इसके अलावा बच्चे के जन्म का कोई सबूत नहीं है।
क्या कहते हैं आचार्य
सूर्यदेव तिवारी कहते हैं कि महिला के पास जन्म प्रमाण पत्र सरीखा कोई कागजी दस्तावेज नहीं था। महिला ने गर्भनाल को ही जन्म प्रमाण पत्र मानने की गुजारिश की थी। मानवता, नियमों और स्कूल जाने योग्य बच्चे प्रवेश से वंचित न रहें, सरकार के इस दृष्टिकोण को ध्यान में रख कर प्रवेश दिया है।