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Gujarat Election 2017: गुजरात के हिंदीभाषी भी अब भाजपा के साथ

चूंकि कांग्रेसी अन्य भाषा-भाषी विभाग के प्रमुख हिंदीभाषी थे, इसलिए मुंबई की तरह गुजरात का हिंदीभाषी समुदाय भी लंबे समय तक कांग्रेस की ताकत बना रहा।

By Babita KashyapEdited By: Published: Fri, 03 Nov 2017 12:15 PM (IST)Updated: Fri, 03 Nov 2017 12:15 PM (IST)
Gujarat Election 2017: गुजरात के हिंदीभाषी भी अब भाजपा के साथ
Gujarat Election 2017: गुजरात के हिंदीभाषी भी अब भाजपा के साथ

 सूरत (गुजरात), ओमप्रकाश तिवारी। गुजरात की सियासत में हिंदीभाषियों की हनक भी कम नहीं है। पिछले विधानसभा चुनाव तक ये कांग्रेस की ताकत समझे जाते थे। लेकिन 2014 के लोकसभा चुनाव से यह वर्ग भाजपा के साथ खड़ा दिखाई देने लगा है। संपूर्ण गुजरात की 6.20 करोड़ आबादी में परप्रांतीय, विशेषकर हिंदीभाषियों की संख्या एक करोड़ से ज्यादा यानी 20 फीसद है। यह आबादी गुजरात-महाराष्ट्र सीमा पर स्थित उमरगांव से कच्छ की खाड़ी तक फैली है। लेकिन इनमें मतदाता 55 से 60 लाख के बीच ही हैं। 

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फिर भी वलसाड़ से अहमदाबाद तक करीब 20 सीटों पर यह वर्ग निर्णायक भूमिका निभाता है। खासतौर से वलसाड़, भरुच, सूरत, नवसारी, वडोदरा एवं अहमदाबाद जनपद में। वडोदरा में तो हिंदीभाषी मधु श्रीवास्तव लंबे समय से भाजपा के विधायक चुने जा रहे हैं। वहीं की एक सीट से विधायक चुने गए राजेंद्र त्रिवेदी तो भाजपा की वर्तमान सरकार में मंत्री भी हैं। वह मूलत: उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले के रहने वाले हैं। कुछ वर्ष पहले एक गुजराती दैनिक ने संभावना जताई थी कि अंकलेश्वर का विधायक भी आने वाले समय में कोई हिंदीभाषी होगा, क्योंकि इस क्षेत्र में हिंदीभाषियों की आबादी करीब एक लाख है। 

अंकलेश्वर के आसपास तो गडख़ोल, सारंगपुर, भड़कोदरा जैसे गांवों में तो दो दशक पहले से सरपंच के चुनाव भी हिंदीभाषी जीतने लगे थे। औद्योगीकरण की तरफ बढ़ रहे दहेज में भी हिंदीभाषियों की आबादी तेजी से बढ़ रही है। कुछ दिनों पहले ही प्रधानमंत्री ने भरुच के सागरतटीय कस्बे दहेज को भावनगर के घोघा से जोडऩेवाली रो-रो फेरी सेवा का उद्घाटन किया है। यह सेवा शुरू होने के बाद वापी से चार गुना बड़े इस औद्योगिक क्षेत्र में तेजी आएगी और रोजगार के अवसर बढ़ेगे। इससे यहां हिंदीभाषियों की आबादी बढऩे की संभावना व्यक्त की जा रही है। परप्रांतियों के बढ़ते प्रभाव को देखते हुए कांग्रेस ने दो दशक पहले ही रायबरेली मूल के जेपी पांडेय के नेतृत्व में अन्य भाषा-भाषी विभाग का गठन किया था। जवाब में भाजपा ने भी सीआर पाटिल के नेतृत्व में ऐसा ही अन्य भाषा-भाषी विभाग बनाया था। 

चूंकि कांग्रेसी अन्य भाषा-भाषी विभाग के प्रमुख हिंदीभाषी थे, इसलिए मुंबई की तरह गुजरात का हिंदीभाषी समुदाय भी लंबे समय तक कांग्रेस की ताकत बना रहा। यहां तक की 2012 के विधानसभा चुनाव में भी यह वर्ग कांग्रेस के साथ ही रहा था। लेकिन 2014 से समीकरण बदले हैं। लोकसभा चुनाव में उठी मोदी लहर में 80 फीसद हिंदीभाषियों को भाजपा की तरफ मोड़ दिया। गुजरात की सभी 26 लोकसभा सीटें भाजपा की झोली में डालने में इस वर्ग का भी बड़ा हाथ रहा है। 2014 के बाद से उत्तर प्रदेश सहित कई हिंदीभाषी राज्यों में आती गईं भाजपा सरकारों के साथ-साथ गुजरात के हिंदीभाषियों के बीच भाजपा की पैठ भी गहराती गई है।

कांग्रेस का दावा है कि नोटबंदी एवं जीएसटी के कारण भाजपा को मिल रहे इस समर्थन में कमी आई है। लेकिन वापी स्थित हिंदीभाषियों की संस्था उत्तरभारतीय सेवा ट्रस्ट के अध्यक्ष राजनारायण तिवारी पिछले वर्ष हुए वापी नगरपालिका चुनाव का उदाहरण देते हुए कांग्रेस के इस दावे को खारिज करते हैं। उनके अनुसार नोटबंदी के महीने भर के अंदर ही हुए इस चुनाव में नगरपालिका की 44 में से 41 सीटों पर भाजपा की जीत हुई थी। उनके अनुसार इसी प्रकार जीएसटी का भी कोई विशेष असर इस वर्ग पर नजर नहीं आने वाला। 

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