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अहमदाबाद: बेजोड़ विरासत की सुंदर बानगी

सुबह का यह खुशनुमा नजारा देखकर एकबारगी प्रतीत होता है कि जैसे सूरज का आह्वान करने में पूरा शहर तल्लीन हो।

By Babita KashyapEdited By: Published: Fri, 28 Jul 2017 04:36 PM (IST)Updated: Sat, 29 Jul 2017 09:16 AM (IST)
अहमदाबाद: बेजोड़ विरासत की सुंदर बानगी
अहमदाबाद: बेजोड़ विरासत की सुंदर बानगी

रात की काली चुनर जब तारों को सुलाकर सूरज की पहली किरणों की प्रतीक्षा में आकाश की नीलिमा में खो जाती है, तब साबरमती नदी के एक किनारे पर भद्र काली मंदिर और जैन मंदिरों की घंटियां तो दूसरे छोर पर अजान की गूंज सुनाई पड़ती है। गलियों में बने चबूतरों पर कबूतरों की फहफड़ाहट मानो नगाड़े की कमी पूरी कर रही होती है।

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सुबह का यह खुशनुमा नजारा देखकर एकबारगी प्रतीत होता है कि जैसे सूरज का आह्वान करने में पूरा शहर तल्लीन हो। अपनी नायाब वास्तुकला के लिए मशहूर यहां के ऐतिहासिक स्मारक बीते दिनों की गाथाएं सुनाते हुए जान पड़ते हैं। आज भी विश्व के नामी विश्वविद्यालयों से बड़ी संख्या में छात्र इन्हीं अद्भुत स्मारकों की वास्तुकला का अध्ययन करने आते हैं। हाल में रिलीज फिल्म 'ओके जानूÓ में भी इस शहर की खूबसूरत स्थापत्य कला की झलक दिखाई गई है।

महानगर का मस्ताना मिजाज

यह शहर प्राचीनता एवं आधुनिकता का अनोखा संगम है। प्राचीन मोहल्लों में रहने वालेअहमदाबादी भी 'एलेन सोलीÓ और 'गुचीÓ के कपड़े पहनकर पूरे ठाठ-बाट से पार्टी करते नजर आ जाएंगे। शॉपिंग मॉल्स से लेकर कई पांच सितारा होटल भी इस सिटी में मौजूद हैं। अहमदाबाद का विज्ञान केंद्र आपको विज्ञान के चमत्कारों से चकित कर देगा। साबरमती रिवर फ्रट के पास बने 'पतंगÓ नामक रिवॉल्विंग रेस्टोरेंट से आप पूरे शहर का 360 डिग्री नजारा भी देख सकते हैं। 

अहमदाबाद में भले ही बाकी महानगरों की तरह मेट्रो रेल अभी नहीं आई हो, पर बीआरटी अर्थात बस रैपिड ट्रांजिट सिस्टम शुरू करने वाला यह भारत का पहला शहर है। यह बस सेवा कुछ ही मिनटों में आपको शहर के एक कोने से दूसरे कोने तक पहुंचा देती है। एक जमाने में यह गुजरात की राजधानी हुआ करता था, पर अब आर्थिक राजधानी होने की वजह से इस शहर की सड़कों को बेहतरीन बनाया गया है। जगह-जगह फ्लाईओवर होने से ट्रैफिक की परेशानी भी कम होती है।

खंडहरों में आएगी जान

 प्राचीनकाल में शहर की आबादी को देखते हुए इसे दो हिस्सों में बांटा गया। यहां के सबसे पुराने किले को 'भद्र किलाÓ के नाम से जाता है। शहर के दूसरे किले का निर्माण सुल्तान अहमद शाह ने साबरमती तट से दूर पश्चिम दिशा में करवाया था। वर्तमान में साबरमती के एक तरफ पुराना शहर बसा हुआ है और दूसरी तरफ आधुनिकता एवं विकास की झांकी मिलती है। किलों की ऊंची दीवारें अहमद शाह की सल्तनत की रक्षा करती थीं। किसी अजनबी को इस शहर में प्रवेश के लिए चारों ओर बने विशाल दरवाजों से गुजरना पड़ता था। इतिहासकारों की मानें तो अहमदाबाद सल्तनत में कुल 21 दरवाजे बने हुए थे, लेकिन जिन्हें बाद में अंग्रेजों ने बढ़ती आबादी के मद्देनजर तुड़वा दिया था।

कई वर्षों तक ये दरवाजे बेजान पहरेदारों की तरह शहर में तैनात रहे, किंतु विकास के नाम पर रेल

और पुल बनाने के लिए इन दरवाजों का भी नामो निशान मिटा दिया गया। शहर के मुख्य दरवाजों में लाल दरवाजा, तीन दरवाजा और दिल्ली दरवाजा शामिल हैं। तीनों दरवाजे मानो इस शहर की रखवाली कर रहे हों, पर वास्तव में ये सिर्फ इतिहास के फटे हुए पन्ने बनकर रह गए हैं। राह चलते हुए आपको यहां अनगिनत खंडहर तथा प्राचीन इमारतें नजर आएंगी। उम्मीद की जा रही है कि विश्व धरोहर बनने की घोषणा होने के बाद अब इन खंडहरों में नई जान फूंकी जा सकेगी।

 

साबरमती के संत की भूमि

'दे दी हमें आजादी बिना खड्ग बिना ढाल, साबरमती के संत तूने कर दिया कमालÓ...ये पंक्तियां आज भी 'बापूÓ के साबरमती आश्रम स्थित उनकी कुटिया में सुनाई देती हैं। एक तरफ साबरमती का कल-कल बहता पानी आजादी के विजयगीत की तरह सुनाई देता है तो दूसरी तरफ आश्रम का शांत वातावरण गांधीजी के जीवन-मूल्यों से जोड़ता है। यह शहर गांधीजी की कर्मभूमि रहा है। आज भी उनके आश्रम में बापू को श्रद्धांजलि देने के लिए देश-विदेश से लोग आते हैं।

महात्मा गांधी ने इसी शहर से 'दांडी मार्चÓ की शुरुआत की थी और नमक पर लगे अंग्रेजों के अन्यायपूर्ण कानून को तोड़ा था। इसी शहर में गांधीजी ने सरदार पटेल एवं दूसरे स्वतंत्रता सेनानियों के साथ मिलकर एक आजाद और अन्यायरहित भारत का सपना देखा था। साबरमती आश्रम हजारों लोगों को चरखे, हैंडलूम तथा अन्य हस्तकलाओं के माध्यम से रोजगार देता है।

प्राचीन हवेलियों की सैर

इस शहर में निर्मित गुजरात के समृद्ध व्यवसायियों के घर फ्रांसीसी और ब्रिटिश वास्तुकला से प्रभावित हैं। लगभग हर घर के आंगन में तुलसी के पौधे के साथ कारीगरी से युक्त लकड़ी का झूला जरूर लगाया हुआ मिल जाएगा। घरों के विशाल दरवाजे और उन पर की गई पच्चीकारी देखने वालों को सम्मोहित कर देती है। यहां की ज्यादातर प्राचीन हवेलियां अब हेरिटेज होटलों में तब्दील कर दी गई हैं। यहां आकर आप इन पारंपरिक घरों में रहने का सुख प्राप्त कर सकते हैं। विरासत के प्रति जागरूकता के लिए हर रविवार को अहमदाबाद पर्यटन विभाग हेरिटेज वॉक का भी आयोजन करता है।

लुभा लेता है दिलकश अंदाज

नाश्ते में खाखरा, जुबान पर गुजराती गीत और चेहरे पर मुस्कान लिए हर अहमदाबादी अपनी ही मस्ती में धंधे यानी काम पर जाता दिखेगा। 'केम छोÓ-ये दो शब्द आपको उनसे तुरंत जोड़ देंगे। अपने गुज्जु अंदाज में वह चाय के लिए जरूर आमंत्रित करता है। हिंदी आये न आये, पर वे आपको अपनी टूटी-फूटी हिंदी में पूरी दुनिया की जानकारी दे देंगे। वे अपने मेहमानों की खातिरदारी चाय के साथ गाठिया, ढोकला, भाखरवड़ी के साथ करते हैं।

इन्हें देखना न भूलें... नल सरोवर में प्रवासी पक्षियों की जल-क्रीड़ा

नल सरोवर नामक पक्षी अभयारण्य में जाड़े के मौसम में हजारों विदेशी प्रवासी पक्षी आते हैं और नल सरोवर की लहरों से अठखेलियां करते हैं। आप भी इन विदेशी मेहमानों के साथ यहां के सुहावने मौसम में नौकाविहार करके उनकी बेपरवाह उड़ानों को देखकर विस्मित हो सकते हैं।

हड़प्पा संस्कृति की झलक

लोथल, हड़प्पा संस्कृति का प्रमुख व्यापार केंद्र था, जो हड़प्पा संस्कृति के शहरों को सिंध से जोड़ता था। इस पुराने शहर की संरचना और व्यवस्था आज के आधुनिक शहरों की बनावट से काफी मिलती-जुलती है। हड़प्पा संस्कृति के कुछ औजार, बर्तन एवं खिलौने आज भी यहां देखे जा सकते हैं।

प्राचीन इमारतों का दुर्लभ प्रमाण

सोलंकी राजाओं के शासनकाल में सिद्धपुर अहमदाबाद राज्य की राजधानी थी। उनके राज्यकाल में यहां अनगिनत हवेलियां, मंदिर और आश्रम बनवाए गए थे। सिद्धपुर की गलियों में बसे पुराने घर और हवेलियां इस जगह की खूबसूरती का प्रमाण देती हैं। फोटोग्राफर्स यहां स्ट्रीट फोटोग्राफी के लिए खासतौर पर आते हैं। अब तक मेरे शहर को बिजनेस कैपिटल के रूप में ही जाना जाता था, अब हेरिटेज टैग मिलने से नई पहचान मिली है।

दुनिया में अहमदाबाद को लोग जानेंगे, यह सोचकर रोमांचित हूं।

-आश्का गोराडिया, अभिनेत्री

अहमदाबाद श्रेष्ठ शहर है। इसमें सारी खूबियां हैं, जो एक आदर्श शहर में होनी चाहिए। विश्व विरासत बनने के बाद इसे अपनी पहचान पाने में और मदद मिलेगी।

- मिखिल मुसाले, गुजराती फिल्म निर्माता, राष्ट्र्रीय पुरस्कार विजेता

मोढेरा का सूर्य मंदिर 

भारत के मुख्य सूर्य मंदिरों में से एक अहमदाबाद से 97 किलोमीटर दूर मोढेरा में स्थित है। सूरज की पहली सुनहरी किरणें इस मंदिर के भीतरी मंडप को रोशन कर देती हैं। यह मंदिर चालुक्य वंश के राजाओं के शासनकाल में राजा भीमदेव ने वर्ष 1027 ई. में बनवाया था। मंदिर के आगे बने कुंड में पड़ता प्रतिबिंब सबसे रमणीक नजारा होता है।

पतंगों के साथ 'कायपो छे...Ó

 

रंगीले अहमदाबादी रंग-बिरंगी पतंगों से आसमान रंग देते हैं। हर छत पर पूरा परिवार, संगीत की मस्ती के साथ आनंद में तल्लीन होता है। जैसे ही किसी की पतंग कटती है, हर तरफ 'कायपो छे...Ó का शोर गूंज उठता है। इस दिन यहां चिक्की, तिल के लड्डू और हरे चने खाकर दिन की शुरुआत होती है। मसालेदार 'उंधियूÓ और 'थेपलाÓ की खुशबू की मस्ती में अहमदबादियों को सांझ का गहराता अंधेरा ही पतंग छोड़कर नीचे उतरने को मजबूर करता है। पतंगोत्सव की यह मस्ती दूसरे दिन तक 'बासी उत्तरायणÓ के नाम से जारी रहती है। हर साल 7 से 14 जनवरी को साबरमती रिवर फ्रंट पर  अंतरराष्ट्रीय पतंगोत्सव का आयोजन होता है, जिसमें देश-विदेश के पतंग-प्रेमी हिस्सा लेते हैं।

विंटेज कारों का संग्रहालय

भारत और शायद दुनिया का सबसे बड़ा विंटेज कारों का संग्रह सिर्फ अहमदाबाद के 'ऑटो वल्र्डÓ में है। इस संग्रहालय में प्रवेश करते ही आपको ऐसा महसूस होगा, जैसे किसी टाइम मशीन में बैठ कर हेरिटेज कारों-वाहनों की दुनिया में आ गए हों। यहां रॉल्स रॉयस, बेंटले, कॉर्ड, लिमोजिन और मर्सिडीज जैसी शानदार कारों का संग्रह आपको मंत्रमुग्ध कर देगा। लगभग सौ से भी ज्यादा कारें यहां प्रदर्शन के लिए रखी गई हैं। ये कारें अमेरिका, इंग्लैंड और यूरोप में बनवाई और मॉडिफाई कराई गई थीं। यहां आपको हर एक कार की खासियत की जानकारी भी मिल जाएगी।

एक जमाने में जो कारें वायसराय और उद्योगपतियों के घरों की शान थीं, वे आज अहमदाबाद शहर के इस संग्रहालय की शोभा बढ़ा रही हैं। गरबा में झूमें संग-संग पैरों की थिरकन, झांझर की झंकार और तालियों की लय पर नवरात्र के जश्न में अहमदबादियों के साथ पूरी दुनिया डोलती है। अहमदाबाद का गरबा केवल गुजरात में ही नहीं, पूरे जग में मशहूर है। चाहे जस्टिन बीबर का कंसर्ट हो या सोनू निगम का,  अहमदाबादियों को किसी भी गाने पर गरबा खेलने का हुनर मालूम है। आपने चाहे अपने शहर में कितना भी गरबा-रास देखा हो, किंतु अहमदाबाद का गरबा आपको गुजरात की संस्कृति से असली परिचय करवाएगा।

शिल्पकला की अद्भुत मिसाल सिद्दी सैय्यद की जाली

सुल्तान अहमद शाह के राज्य की वास्तुकला का बेजोड़ नमूना है सिद्दी सैय्यद की जाली। कहते हैं कि सिद्दी सैय्यद मस्जिद की खूबसूरत जाली के काम से प्रेरणा लेकर ही बादशाह शाहजहां ने अपने शिल्पकारों को ताजमहल के भीतरी हिस्से को सजाने की सलाह दी थी। शहर के मध्य में स्थित संगमरमर से बनी इस मस्जिद में जाली के काम के साथ लताओं और फूलों की खूबसूरत पच्चीकारी की गई है। सूरज की किरणें इन जालियों से गुजरकर मस्जिद की फर्श पर खूबसूरत आकृतियों की रचना करती प्रतीत होती हैं।

इन्हें भी जानें

-भारी मात्रा में कपास उत्पादन और कॉटन मिलों की वजह से अहमदाबाद को भारत का मैनचेस्टर कहा जाता है।

-देश की पहली बुलेट ट्रेन अहमदाबाद से मुंबई के बीच प्रस्तावित है।

-भारत के मशहूर वास्तुकला विद्यालयों में से एक सीईपीटी विद्यालय अहमदाबाद में स्थित है।

-सुप्रसिद्ध सरखेज रोजा शहर से 7 किलोमीटर की दूरी पर है। इस परिसर में प्राचीन स्थापत्य कला सेजुड़ी कई महत्वपूर्ण इमारतें हैं।

-साबरमती रिवर फ्रंट भारत का पहला एवं एकमात्र रिवर फ्रंट है, जिसका निर्माण लंदन की टेम्स नदी पर बने रिवर फ्रंट से प्रेरित है।

लुभा लेता है दिलकश अंदाज

नाश्ते में खाखरा, जुबान पर गुजराती गीत और चेहरे पर मुस्कान लिए हर अहमदाबादी अपनी

ही मस्ती में धंधे यानी काम पर जाता दिखेगा। 'केम छोÓ-ये दो शब्द आपको उनसे तुरंत जोड़

देंगे। अपने गुज्जु अंदाज में वह चाय के लिए जरूर आमंत्रित करता है। हिंदी आये न आये,

पर वे आपको अपनी टूटी-फूटी हिंदी में पूरी दुनिया की जानकारी दे देंगे। वे अपने मेहमानों

की खातिरदारी चाय के साथ गाठिया, ढोकला, भाखरवड़ी के साथ करते हैं।

सैर: कैसे और कब?

अहमदाबाद देश के प्रमुख शहरों से सड़क और रेल मार्ग से जुड़ा है। सरदार पटेल अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा देश के सभी बड़े शहरों से जुड़ा है। भारत के सभी बड़े शहरों से रेलमार्ग से भी यहां पहुंच सकते हैं। यहां आने के लिए बस सेवा भी उपलब्ध है। नवंबर से फरवरी यहां आने का उपयुक्त समय माना जाता है।

गुजराती व्यंजनों का अनूठा जायका विख्यात है, मगर आप यह जानकार अचरज में पड़ सकते हैं कि असल में गुजराती भोजन आयुर्वेद में बताये छह रसधातु यानी षड्-रस को ध्यान में रखकर बनाया जाता है। गुजराती खाने में गुड़ का मीठापन, कोकम का खट्टापन, मीठे का खारापन, मेथी के दानों की कड़वाहट, मिर्ची का तीखापन और अदरक का अम्ल रस घुला होता है। परंपरा के अनुसार यहां खाने के साथ दही या छाछ भी लिया जाता है। यहां एसजी रोड पर स्थित गोवर्धन थाल, ठाकर भोजनालय और वेजलपुर स्थित रजवाडु में आप गुजराती खाने का लुत्फ उठा सकते हैं।

अहमदाबाद में माणेक चौक तथा लॉ गार्डन की फूड स्ट्रीट पर शाम ढलते ही स्थानीय लोगों की भीड़ जमा होने लगती है। माणेक चौक के नजदीक ही नॉनवेज व्यंजनों के भी स्टॉल्स लगते हैं, पर मुख्य माणेक चौक भांति-भांति के स्वादिष्ट पुलाव, पाव भाजी, पाइनएपल सैंडविच और चॉकलेट सैंडविच के लिए मशहूर है। खाने के बाद अहमदाबादियों की तरह पान खाना न भूलें।

सेवा कैफे!

सीजी रोड पर आप एक ऐसे कैफे को भी देख सकते हैं, जहां चौकीदार से लेकर वेटर तक हर कोई सद्भावना से सेवा देता है। यह सेवा कैफे गांधीजी के मूल्यों पर आधारित है और शायद भारत का इकलौता कैफे है, जो स्वयंसेवकों द्वारा संचालित किया जाता है। आप भी चाहें तो यहां किसी भी काम में अपनी सेवा दे सकते हैं।

लेखन: अहमदाबाद से पूर्वी कमालिया, फोटो: देवेश जोशी, यश दरजी, संयोजन-संपादन: सीमा झा। 


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