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गया आइपीओ का जमाना

आइपीओ में खुदरा निवेशकों की भागीदारी पुरानी स्थिति में वापस आ गई है। हाल में इंडिगो और कैफे कॉफी डे के दो आइपीओ बाजार में आए। इनमें खुदरा भागीदारी काफी कम रही। इंडिगो में धनी वर्ग में 3.57 गुना पंजीकरण रहा, जबकि अपेक्षाकृत गरीब श्रेणी में 0.92 गुना पंजीकरण हुआ।

By Babita KashyapEdited By: Published: Mon, 30 Nov 2015 11:12 AM (IST)Updated: Tue, 01 Dec 2015 09:20 AM (IST)
गया आइपीओ का जमाना

आइपीओ में खुदरा निवेशकों की भागीदारी पुरानी स्थिति में वापस आ गई है। हाल में इंडिगो और कैफे कॉफी डे के दो आइपीओ बाजार में आए। इनमें खुदरा भागीदारी काफी कम रही। इंडिगो में धनी वर्ग में 3.57 गुना पंजीकरण रहा, जबकि अपेक्षाकृत गरीब श्रेणी में 0.92 गुना पंजीकरण हुआ। कैफे कॉफी डे में दोनों की भागीदारी बेहद कम रही। हालांकि आइपीओ के बारे में यह आलोचना प्रासंगिक नहीं है, क्योंकि आंकड़ों से पता चलता है कि भारतीय खुदरा निवेशक पहले ही म्यूचुअल फंड के जरिये अच्छी तरह से इक्विटी में निवेश कर रहे हैं।

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आइपीओ के कुछ दिन बाद ऐसी खबरें थीं कि खुदरा निवेशकों की कम भागीदारी की वजह से बाजार नियामक सेबी नाखुश है। नियामक रिटेल निवेशकों की रुचि कमजोर रहने के मुद्दे को निवेश बैंकरों के साथ उठाना चाहता है। समाचारों में सेबी के इन विचारों को किसी अधिकारी की ओर से नहीं कहा गया था। इस बारे में बाजार नियामक की ओर से आधिकारिक तौर पर कोई बयान भी जारी नहीं हुआ था। निश्चित तो कुछ कहा नहीं जा सकता, लेकिन इतना जरूर है कि इसमें काफी ब्योरा दिया गया था। सेबी को अब चिंता है कि आइपीओ की मार्केटिंग उचित तरीके से नहीं हो पा रही है।

छोटे निवेशकों को आइपीओ में निवेश के लिए आगे लाना लंबे समय से भारतीय नीति नियंताओं और नियामकों की प्राथमिकता रही है। हमने लंबे समय से इस विचार पर गौर किया है कि आइपीओ किसी तरह खुदरा निवेशकों के लिए उपयुक्त हैं। सुधारों की शुरुआत से पूर्व कंट्रोलर ऑफ कैपिटल इश्यू के दिनों में सरकार आइपीओ का मूल्य निर्धारण करती थी। उस समय भले ही यह बात सही हो सकती थी, लेकिन यह समय काफी पहले ही बीत चुका है। उस समय सरकार सभी इश्यू के दाम कम तय करने को मजबूर करती थी, इसलिए आइपीओ के लिए आवेदन करना एक लॉटरी था। कई बार आपको कोई आवंटन नहीं होता था। लेकिन अगर शेयर आवंटित हो गया तो आप थोड़े ही समय में बड़ा लाभ कमा सकते थे। यह हमारी अभावों की अर्थव्यवस्था की तरह था जो तकरीबन हर चीज की कमी के रूप में हमने देखी।

दुर्भाग्य से हमारा पुराना व्यवहार अब भी कायम है। बाजार नियामक सेबी तथा अन्य संस्थाएं समय समय पर आइपीओ में छोटे निवेशकों की हिस्सेदारी बढ़ाना चाहते हैं। आइपीओ की प्रक्रिया का कुछ हिस्सा भी इसी उद्देश्य के लिए तैयार किया गया है। हालांकि वास्तविकता यह है कि रिटेल निवेशकों को सभी आइपीओ को नजरअंदाज कर देना चाहिए। इसलिए इंडिगो के आइपीओ अवसर पर पर भी आप इस सिद्धांत से विचलित मत होइए। आइपीओ में ऐसा कुछ भी नहीं है, जिसकी वजह से वह छोटे निवेशकों के लिए आकर्षक विकल्प हो। वास्तविकता यह है कि सूचीबद्ध शेयरों से तुलना करने पर आइपीओ छोटे निवेशकों के लिए कम उपयुक्त हैं। इसकी वजह साफ है। आइपीओ लाने वाली कंपनियों को कोई उतना नहीं समझ सकता, जितना कि सेकंडरी मार्केट की कंपनियों को समझते हैं। ऐसी कंपनियां सार्वजनिक जांच-परख से दूर रहती हैं। वे जब आइपीओ लेकर आती हैं तो उससे पहले कई महीने और कई वर्षों तक उनके प्रमोटर और मर्चेंट बैंकर्स निवेशकों के बीच कंपनी की सकारात्मक छवि बनाने में जुटे रहते हैं। सूचीबद्ध शेयरों के उलट इनकी वित्तीय सेहत की कई वर्षों तक जांच नहीं हो पाती है। आइपीओ का मूल्य प्रमोटर तय करता है, जबकि स्टॉक मार्केट में बाजार के तंत्र से यह मूल्य तय होता है ।

आइपीओ में इस तरह का जोखिम होने के बावजूद हमारे अधिकारी काफी लंबे समय से छोटे निवेशकों को इसमें निवेश के लिए जोखिम में डालते रहते हैं। आइपीओ में निवेश के लिए छोटे निवेशकों के अनुकूल माहौल कई वर्ष पहले गुजर चुका है। वैसा माहौल वापस लाने की असफल कोशिशों के बावजूद सेबी को यह स्वीकारना चाहिए कि शेयर बाजार में निवेश करने का खुदरा निवेशकों का तरीका अच्छा चल रहा है। हम इक्विटी फंड में निवेश की क्रांति के बीच में हैं।

वैल्यू रिसर्च में हमने जो हाल में विश्लेषण किया है, इस साल सितंबर तक इक्विटी फंड में एक लाख करोड़ रुपये का शुद्ध प्रवाह रहा। यह पूर्ववर्ती एक साल की तुलना में दोगुना है, जो 2007-08 की तेजी में था। यह भारतीय बाजारों के लिए अच्छा समाचार है, क्योंकि अभी बाजार में तेजी का दौर नहीं है।

इसका मतलब यह है कि यह राशि समान अवधि में आइपीओ में निवेश की गई धनराशि से बीस गुना अधिक है। भारतीय खुदरा निवेशक अधिक जोखिम, कम रिटर्न वाले आइपीओ निवेश से आगे बढ़कर शेयर बाजार में एसआइपी इक्विटी फंड में निवेश करने लगा है। सेबी को इस रुझान की ओर ध्यान देना चाहिए।

धीरेंद्र कुमार


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