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अंतरराष्ट्रीय फंड में निवेश के फायदे

अच्छे निवेश का यह बुनियादी सिद्धांत है कि 'सारी पूंजी एक ही जगह न लगाएं।' जोखिम से बचाव के लिए विविधीकरण (डायवर्सिफिकेशन) आवश्यक है। आज के दौर में, जबकि निवेश से जुड़ा जोखिम काफी बढ़ गया है, यह बात और भी ज्यादा महत्वपूर्ण हो गई है। इसलिए निवेश को न केवल विभिन्

By Edited By: Published: Sun, 31 Aug 2014 11:38 PM (IST)Updated: Mon, 01 Sep 2014 05:46 AM (IST)
अंतरराष्ट्रीय फंड में निवेश के फायदे

अच्छे निवेश का यह बुनियादी सिद्धांत है कि 'सारी पूंजी एक ही जगह न लगाएं।' जोखिम से बचाव के लिए विविधीकरण (डायवर्सिफिकेशन) आवश्यक है। आज के दौर में, जबकि निवेश से जुड़ा जोखिम काफी बढ़ गया है, यह बात और भी ज्यादा महत्वपूर्ण हो गई है। इसलिए निवेश को न केवल विभिन्न असेट श्रेणियों में, बल्कि विभिन्न भौगोलिक क्षेत्रों में वितरित करने में ही समझदारी है।

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वैश्विकरण के दौर में निवेश संबंधी रणनीति के भी ग्लोबल आयाम होने चाहिए। भारतीय निवेश को वैश्विक पूंजी बाजार के लिए खोले जाने से पहले विविधीकरण का मतलब होता था-निवेश को विभिन्न असेट श्रेणियों में वितरित कर जोखिम से बचाव का प्रयास। मगर साल 2004 में जब से भारतीय निवेशकों को विदेश में निवेश की इजाजत दी गई, तब से इसमें एक नया आयाम और जुड़ गया है। यह है-विभिन्न भौगोलिक क्षेत्रों में निवेश का विविधीकरण।

हालांकि लिबरलाइज्ड रेमिटेंस स्कीम (एलआरएस) के तहत भारतीयों को विदेश में हर साल 1.25 लाख डॉलर तक के निवेश की अनुमति है। मगर विदेशी इक्विटी में सीधे निवेश करना आसान नहीं है, क्योंकि इसमें कई तरह के कानूनी व कर संबंधी झमेले हैं। ऐसे में म्यूचुअल फंडों में निवेश ही सबसे बेहतर विकल्प है। मोटे तौर पर विदेशी इक्विटी में निवेश के लिए भारत में तीन तरह के म्यूचुअल फंड उपलब्ध हैं :

अंतरराष्ट्रीय फंडों में निवेश करने के दो फायदे गिनाए जा सकते हैं। पहला, इससे आपके पोर्टफोलियों का घरेलू जोखिमों से बचाव होता है। दूसरा, निवेशक को विकसित देशों के बेहतर शेयर बाजारों के प्रदर्शन का लाभ मिलता है। लंबी मंदी व पिछले छह साल के ठहराव के बाद ग्लोबल अर्थव्यवस्था में सुधार के चिन्ह स्पष्ट रूप से दिखाई दे रहे हैं। ऐसे में भारतीय निवेशक भी ग्लोबल इक्विटी बाजारों में उछाल का फायदा उठाएं तो इसमें बुराई क्या है।

भारतीय निवेशकों के लिए निवेश के लिहाज से सबसे बढि़या अंतरराष्ट्रीय फंड ये हैं : फ्रैंकलिन टेंपलटन इंडिया फीडर फै्रंकलिन यूएस अपाच्र्युनिटीज, डीएसपीबीआर यूएस फ्लेक्सिबिल इक्विटी प्लान, बिरला सनलाइफ इंटरनेशनल इक्विटी प्लान, आइसीआइसीआइ प्रूडेंशियल यूएस ब्लूचिप इक्विटी, टाटा ग्रोइंग इकोनॉमीज फंड, टेंपलटन इंडिया इक्विटी इनकम फंड व कोटक इमर्जिग मार्केट फंड।

भारत के डायवर्सिफाइड इक्विटी फंडों को विदेशी बाजारों में 35 फीसद तक निवेश की अनुमति है। यही फंड अंतरराष्ट्रीय निवेश के लिए उपयुक्त हैं, क्योंकि इनसे निवेशकों को करमुक्त लाभ के साथ-साथ अंतरराष्ट्रीय इक्विटी में निवेश का मौका मिलता है। इस लिहाज से सबसे बढि़या उदाहरण टेंपलटन इंडिया इक्विटी इनकम फंड का है, जिसने पिछले आठ साल से 13.9 फीसद वार्षिक रिटर्न दिया है।

अंतरराष्ट्रीय फंडों में अलग-अलग व्यवसायों से जुड़े कई फंड हैं। जैसे कमोडिटी फंड, ऑयल फंड, गोल्ड फंड, एग्री-बिजनेस फंड वगैरह, लेकिन इनमें निवेश जोखिम भरा होने के साथ जटिल है। इनमें सही वक्त की बड़ी अहमियत है। उदाहरण के लिए इन दिनों गोल्ड या ऑयल फंड में निवेश करना उचित नहीं होगा, क्योंकि इन व्यवसायों का भविष्य फिलहाल बहुत आकर्षक नहीं है। इसलिए निवेशकों को इस तरह के अंतरराष्ट्रीय फंडों से बचना चाहिए।

अंतरराष्ट्रीय इक्विटी फंडों में निवेश की सबसे बड़ी खासियत विविधीकरण और सुरक्षा है। वैसे पिछले एक साल में घरेलू फंडों ने अंतरराष्ट्रीय फंडों से बेहतर प्रदर्शन किया है, लेकिन अंतरराष्ट्रीय फंड भी अच्छा प्रदर्शन करने में कामयाब रहे हैं। उदाहरण के लिए आइसीआइसीआइ प्रूडेंशियल यूएस अपाच्र्युनिटीज फंड ने पिछले एक साल में 20 फीसद से अधिक रिटर्न दिया है। घरेलू जोखिमों से सुरक्षा को देखते हुए इस रिटर्न को शानदार कहा जाएगा। स्पष्ट है कि यदि निवेशक अपने निवेश का कुछ हिस्सा अंतरराष्ट्रीय फंडों में लगाते हैं तो यह समझदारी भरा फैसला होगा।

डॉ. वीके विजय कुमार इन्वेस्टमेंट स्ट्रेटजिस्ट जियोजित बीएनपी पारिबा

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