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जीवन बीमा को एनपीएस के समान माना जाए

बीमा कंपनियों की व्यापक पहुंच को देखते हुए मौजूदा बीमा आधार का इस्तेिमाल भविष्य् में सामाजिक व वित्तीीय सुरक्षा सुनिश्चि त करने के लिए किया जा सकता है।

By Monika minalEdited By: Published: Mon, 16 May 2016 12:18 PM (IST)Updated: Mon, 16 May 2016 03:52 PM (IST)
जीवन बीमा को एनपीएस के समान माना जाए

सरकार के विकास संबंधी एजेंडे को लेकर वित्तमंत्री अरुण जेटली की बजट घोषणाएं एकदम स्पष्ट थीं। जिनकी इस लिहाज से प्रशंसा की जानी चाहिए कि इनमें आम आदमी को भी कुछ न कुछ राहत दी गई है। बीमा के लिहाज से यह देखना सुखद है कि सिंगिल प्रीमियम एन्यूटीज पर सर्विस टैक्स को 3.5 फीसद से घटाकर 1.4 फीसद कर दिया गया है। इससे निश्चित रूप से इस तरह की पालिसियों की लागत कम होगी और अंतत: इसका लाभ ग्राहकों को मिलेगा।

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एकसमान सर्विस टैक्स
केवल नेशनल पेंशन स्कीम (एनपीएस) के जरिए बुजुर्गों को सुरक्षा देने का प्रयास एक अच्छी रणनीति है। परंतु इस दृष्टिकोण का विस्तार कर इसमें अन्य पेंशन उत्पादों को भी शामिल किए जाने की जरूरत है। यही नहीं, यदि एनपीएस के साथ ही अन्य सभी पेंशन उत्पादों पर भी सर्विस टैक्स को हटा दिया जाए तो इन्हें अधिक आकर्षक बनाया जा सकता है। वित्त मंत्री ने जीवन बीमा पेंशन उत्पादों तथा एनपीएस और ईपीएफ जैसे अन्य पेंशन उत्पादों के बीच असमानताओं को खत्म कर दिया है। देश में सामाजिक सुरक्षा का समुचित इंतजाम न होने तथा 30 करोड़ ग्राहकों का पुख्ता आधार होने से जीवन बीमा क्षेत्र पेंशनयाफ्ता समाज के सृजन में अहम भूमिका अदा कर सकता है। बीमा कंपनियों की व्यापक पहुंच को देखते हुए मौजूदा बीमा आधार का इस्तेमाल भविष्य में सामाजिक व वित्तीय सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए किया जा सकता है।
बीमा पेंशन उत्पादों पर एनपीएस के समान सर्विस टैक्स की मांग अनुचित नहीं होगी। इससे पेंशन एवं एन्यूटी का देश भर में विस्तार करने की सरकार की मंशा को पूरा करने में मदद मिल सकती है। इस तरह आइआरडीआइ से अनुमोदित और एनपीएस जैसे पेंशन एवं एन्यूटी उत्पाद पेश करने वाली सभी जीवन बीमा कंपनियों पर सर्विस टैक्स खत्म करने की मांग में दम है।


पेंशन योजनाओं पर टीडीएस की सीमा

एनपीएस में 50 हजार रुपये तक का निवेश आयकर अधिनियम की धारा 80सीसी (डी) के तहत कर मुक्त है। इससे एनपीएस अन्य पेंशन उत्पादों के मुकाबले लाभ की स्थिति में आ जाती है। इसलिए वित्तमंत्री को एनपीएस जैसे सभी पेंशन उत्पादों को यह छूट देने पर विचार करना चाहिए। यही नहीं, एनपीएस की भांति जीवन बीमा से संबंधित पेंशन उत्पादों को भी धारा 80 सीसीडी (2) के लाभ मिलने चाहिए। साथ ही, एन्यूटी उत्पादों में निवेश करने वाले ग्राहकों को भी यह सुविधा दिए जाने की जरूरत है, ताकि इन स्कीमों में पैसा लगाने वालों को बुढ़ापे में करमुक्त आय प्राप्त हो सके।

करमुक्त निकासी में समानता

जीवन बीमा योजनाओं तथा एनपीएस के मामले में एक और नियामकीय विसंगति है। बजटीय घोषणाओं के मुताबिक एनपीएस के 40 फीसद कोष को कर से छूट होगी। लेकिन आइआरडीएआइ के नियमों के अनुसार जीवन बीमा से जुड़े पेंशन उत्पादों में कोष का केवल 33 फीसद हिस्सा ही करमुक्त है। इसलिए वित्त मंत्री को सभी पेंशन उत्पादों पर करमुक्त कोष की सीमा को एकसमान 40 फीसद कर देना चाहिए।

बचत उत्पादों के लिए पृथक सीमा

जिस देश में सामाजिक सुरक्षा का स्तर अत्यंत निम्न हो तथा सभी को वित्तीय सुरक्षा की सख्त जरूरत हो, वहां जनहितकारी नीतियां बनाते वक्त जीवन बीमा को विशेष महत्व दिया जाना चाहिए। हमारा मानना है कि दीर्घकालिक बचत उत्पादों से होने वाली डेढ़ लाख रुपये तक की आय को करमुक्त करने के लिए धारा 80सी के अलावा कोई पृथक व अतिरिक्त प्रावधान भी होना चाहिए। यदि यह संभव न हो तो स्वास्थ्य बीमा की ही तरह विशुद्ध जीवन जोखिम वाली पालिसियों का सृजन किया जाना चाहिए।
इसके अतिरिक्त मौजूदा नियम केवल उन मामलों में टैक्स डिडक्शन की छूट देते हैं जिनमें बीमित राशि वार्षिक प्रीमियम का 10 गुना हो। इससे अधिक आयुवर्ग वाले लोगों पर लागत का बोझ बढ़ जाता है। इसलिए बेहतर होगा कि 45 वर्ष से अधिक आयु वाले लोगों के लिए इस सीमा को वार्षिक प्रीमियम का 7 गुना कर दिया जाए। इसमें मुश्किल हो तो इस नियम को पूरी तरह समाप्त कर पालिसी की 10 वर्ष की अवधि को कर छूट का आधार बना देना चाहिए।सुरक्षित व पेंशनयाफ्ता समाज के सृजन में जीवन बीमा उद्योग अहम भूमिका निभा सकता है।

- प्रशांत त्रिपाठी, सीनियर डायरेक्टर एवं चीफ फाइनेंशियल आफिसर


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