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देवी के इस मंदिर में प्रसाद की जगह मिलते हैं पत्ते

ऋषिकेश से करीब 80 किमी की दूरी का सफर तय करने के बाद चम्बा के बाद कद्दूखाल के नजदीक जहां स्थित है सुरकंडा मंदिर। इस मंदिर में प्रसाद की जगह पत्ते दिए जाते हैं।

By Suchi SinhaEdited By: Published: Thu, 01 Dec 2016 12:16 PM (IST)Updated: Fri, 02 Dec 2016 12:36 PM (IST)
देवी के इस मंदिर में प्रसाद की जगह मिलते हैं पत्ते

मंदिर आस्था के वह स्थान हैं, यहां हर चीजों में ईश्वर का वास है। हिंदुस्तान में कई मंदिर हैं जहां अपनी-अपनी आस्था होती है। ऐसा ही एक मंदिर है ऋषिकेश से करीब 80 किमी की दूरी का सफर तय करने के बाद चम्बा के बाद कद्दूखाल के नजदीक जहां स्थित है सुरकंडा मंदिर। इस मंदिर में प्रसाद की जगह पत्ते दिए जाते हैं ये सुनकर हमारी तरह आप भी आश्चर्य में पड़ गए होंगे। प्रसाद में पत्ते देने के पीछे आखिर वजह क्या है आइए जानते हैं।

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यहां प्रसाद में मिलने वाले पत्ते स्थानीय पेड़ के होते हैं। यह पेड़ रौंसली के नाम से जाना जाता है। रौंसली के पत्तों को भक्तजन अपने घरों में रखते हैं। दरअसल, सुरकंडा मंदिर देवी के 52 शक्तिपीठों में से एक है। स्कंद पुराण में वर्णित है, 'जब दक्ष प्रजापति के यज्ञ में शिव को नहीं बुलाया गया, तो सती ने नाराज होकर हवन कुंड में स्वयं की आहुति दी। इसके बाद शिव सती को कंधों पर लेकर घुमाते रहे। इस दौरान जहां जहां सती का जो अंग गिरा वह स्थान उसी नाम से जाना जाने लगा। सुरकंडा में माता सती का सिर गिरा था जिस कारण इसका नाम सुरकंडा पड़ा।

यह पवित्र स्थान समुद्रतल से करीब तीन हजार मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। मंदिर वर्षभर खुला रहता है। लेकिन यहां नवरात्र और गंगा दशहरा में दर्शन करना विशेष माना गया है। यह एक मात्र शक्तिपीठ है जहां गंगा दशहरा पर मेला लगता है।

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