मनोवांछित फल की प्राप्ति के लिए करते हैं सूर्योपासना का अचला सप्तमी व्रत
माघ सप्तमी को जो व्यक्ति सूर्यदेव की पूजा करके एक समय मीठा भोजन अथवा फलाहार करता है उसे पुरे वर्ष सूर्य की पूजा करने का फल एक ही बार में मिल जाता है।
सूर्योपासना का व्रत है अचला सप्तमी। इस व्रत को करने से सूर्यदेव प्रसन्न होते हैं और भक्तों को मान-सम्मान, धन-धान्य से परिपूर्ण करते हैं ऐसा भगवत वचन है। माघ मास की शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि और उसमे भी यदि रविवार का दिन हो तो उसका महत्त्व 100 गुना बढ़ जाता है। वर्ष 2017 में अचला सप्तमी अचला सप्तमी व्रत 3 फ़रवरी को है। यदि अचला सप्तमी रविवार को हो तो इसे भानु सप्तमी भी कहा जाता है। उसी प्रकार सात जन्म के पाप को दूर करने हेतु रथारूढ़ सूर्यनारायण की पूजा, जिसे रथ सप्तमी भी कहा जाता है। इस सप्तमी को शास्त्रों में रथ, आरोग्य,अचला, पुत्र,भानु,और अर्क सप्तमी भी कहा गया है। भगवान श्रीकृष्ण जी ने धर्मराज युधिष्ठर को इस व्रत के बारे में बताया था। कहा जाता है कि आज ही के दिन सूर्य ने अपने प्रकाश रूपी किरण से जगत को प्रकाशित किया था और इसी दिन भगवान सूर्यदेव सात घोड़ों के रथ पर सवार हो कर लोक में प्रकट हुए थे जो आपके समक्ष विराजमान होकर निरंतर जीवन प्रदान कर रहे हैं।
माघ मास अचला सप्तमी व्रत में क्या करना चाहिए
जो भी श्रद्धालु इस व्रत को करना चाहते हैं उन्हें षष्ठी के दिन एक बार ही भोजन करना चाहिए और सप्तमी के दिन प्रातःकाल सूर्योदय काल में से पूर्व किसी पवित्र नदी अथवा जलाशय में स्नान करके सूर्य को दीप दान करने (दीप को जल में प्रवाहित करना) से मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। जो लोग नदी में स्नान नहीं कर सकते, वे पानी में गंगाजल डाल के स्नान कर सकते हैं। यह भी कहा जाता है कि प्रातः काल किसी अन्य व्यक्ति के जलाशय में नहाने से पहले यदि स्नान करते हैं तो बड़ा ही पुण्य मिलता है। इस दिन अपने-अपने गुरु को वस्त्र दान करना चाहिये। विशेषरूप से अचला (अंगोछे जैसा गले में धारण किया जाने वाला वस्त्र) अवश्य दान करना चाहिए। इसके अतिरिक्त तिल, गाय और दक्षिणा भी देनी चाहिए। माघ सप्तमी को जो व्यक्ति सूर्यदेव की पूजा करके एक समय मीठा भोजन अथवा फलाहार करता है उसे पुरे वर्ष सूर्य की पूजा करने का फल एक ही बार में मिल जाता है। यह व्रत संतान सुख के साथ-साथ अखंड सौभाग्य प्रदाता है।
अचला सप्तमी व्रत कथा
भविष्य पुराण में एक कथा है कि एक गणिका इन्दुमति ने अपने जीवन में कभी कोई दान-पुण्य नहीं किया था। इसे जब अपने अंत समय का ख्याल आया तो वशिष्ठ मुनि के पास गयी और वशिष्ठ मुनि से मुक्ति पाने का करो। इसके लिए षष्ठी के दिन एक ही बार भोजन करो और सप्तमी की सुबह स्नान के पूर्व आक के सात पत्ते सिर पर रखें और सूर्य का ध्यान करके गन्ने से जल को हिला कर ‘नमस्ते रुद्ररूपाय रसानां पतये नम:। वरुणाय नमस्तेsस्तु।’ मंत्र का उच्चारण करने के बाद दीप को जल में बहा दें। स्नान के उपरांत सूर्य की अष्टदली प्रतिमा बना कर शिव और पार्वती को स्थापित करें और विधिपूर्वक पूजन कर तांबे के पात्र में चावल भर कर दान करें। गणिका इन्दुमति ने मुनि के कथनानुसार माघ सप्तमी का व्रत किया। इसके पुण्य से शरीर त्याग के बाद इन्द्र ने उसे अप्सराओं की नायिका बना दिया। जो लोग नदी में स्नान नहीं कर सकते, वे पानी में गंगाजल डाल के स्नान कर सकते हैं।
एक अन्य कथा के अनुसार भगवान श्री कृष्णजी के पुत्र शाम्ब को अपने बल और शारीरिक सुंदरता का अभिमान हो गया था। एक बार दुर्वासा ऋषि श्री कृष्ण से मिलने आये थे उस समय दुर्वासा ऋषि का शरीर बहुत ही दुबला हो गया था क्योकि वह कठिन तप में लम्बे समय से लीन थे। ऋषि को देखकर शाम्ब को हंसी आ गयी। स्वभाव से ही क्रोधी ऋषि को शाम्ब की धृष्ठता पर क्रोध आ गया और उन्होंने शाम्ब को कुष्ठ होने का श्राप दे दिया। ऋषि के श्राप का प्रभाव तुरंत ही हो गया। उपचार से जब कोई लाभ नहीं हुआ तब श्री कृष्ण ने शाम्ब को सूर्योपासना करने की सलाह दी शीघ्र ही सूर्योपासना से शाम्ब कुष्ट रोग से छुटकारा मिल गया।