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महाशिवरात्रि पर शिव की आराधना का भक्तों को कई गुणा अधिक फल प्राप्त होता है

महाशिवरात्रि के दिन प्रत्येक शिवलिंग में साक्षात् शिव आंशिक रूप में उपस्थित होते हैं। इस दिन शिवलिंग का विधि-विधान के साथ पूजन, अर्चन और स्तवन कर पुण्य का अर्जन करना चाहिए।

By Preeti jhaEdited By: Published: Thu, 23 Feb 2017 12:37 PM (IST)Updated: Thu, 23 Feb 2017 12:57 PM (IST)
महाशिवरात्रि पर शिव की आराधना का भक्तों को कई गुणा अधिक फल प्राप्त होता है
महाशिवरात्रि पर शिव की आराधना का भक्तों को कई गुणा अधिक फल प्राप्त होता है

शिव भक्तों के लिए शिवरात्रि एक बड़ा पर्व है, यूं तो हर महीने कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को शिवरात्रि होती है, लेकिन फाल्गुन मास की कृष्ण पक्ष की शिवरात्रि का विशेष महत्व है। इसलिए इसे मात्र शिवरात्रि ना कहकर ‘महाशिवरात्रि’ कहा जाता है। महाशिवरात्रि का त्योहार शिवभक्तों के लिए काफी खास है। महाशिवरात्रि पर शिव की आराधना का भक्तों को कई गुणा अधिक फल प्राप्त होता है।

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इस पावन त्‍योहार पर फल, पुष्प, चंदन, बिल्वपत्र, धतूरा, धूप, दीप और नैवेद्य से भगवान शिव की पूजा की जाती है। ऐसा कहा जाता है कि महाशिवरात्रि के दिन प्रत्येक शिवलिंग में साक्षात् शिव आंशिक रूप में उपस्थित होते हैं। इसलिए इस दिन शिवलिंग का विधि-विधान के साथ पूजन, अर्चन और स्तवन कर पुण्य का अर्जन अवश्य करना चाहिए। अगर इस दिन पारद शिवलिंग का पूजन किया जाए तो इसे बेहद उत्तम माना जाता है। शिवपुराण में कहा गया है कि पारद लिंग के दर्शन मात्र से हजारों अश्वमेध यज्ञों के आयोजन से भी ज्यादा पुण्य मिलता है। पारद शिविलिंग जिस घर में होता है वहां भगवान शिव और लक्ष्मी का साक्षात वास होता है और उस घर में स्थित सभी वास्तु दोष भी इसके प्रभाव से नष्ट हो जाते हैं।

महाशिवरात्रि पर्व पर भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए भक्त-गण विविध उपाय करते हैं। लेकिन हर उपाय साधारण जनमानस के लिए सरल नहीं होते। यह पूजन विधि जितनी आसान है उतनी ही फलदायी भी। भगवान शिव अत्यंत सरल स्वभाव के देवता माने गए हैं अत: उन्हें सरलतम तरीकों से ही प्रसन्न किया जा सकता है। वैदिक शिव पूजन - भगवान शंकर की पूजा के समय शुद्ध आसन पर बैठकर पहले आचमन करें। यज्ञोपवित धारण कर शरीर शुद्ध करें। तत्पश्चात आसन की शुद्धि करें। पूजन-सामग्री को यथास्थान रखकर रक्षादीप प्रज्ज्वलित कर...स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवा:, स्वस्ति ना पूषा विश्ववेदा:, स्वस्ति न स्तारक्ष्यो अरिष्टनेमि स्वस्ति नो बृहस्पति र्दधातु।

इसके बाद पूजन का संकल्प कर भगवान गणेश एवं गौरी-माता पार्वती का स्मरण कर पूजन.संकल्प करते हुए भगवान गणेश व माता पार्वती का पूजन करें फिर नन्दीश्वर, वीरभद्र, कार्तिकेय (स्त्रियां कार्तिकेय का पूजन नहीं करें) एवं सर्प का संक्षिप्त पूजन करना चाहिए।


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