हरियाली तीज पर हुआ था शिव-पार्वती का पुनर्मिलन
आज सावन मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया है, जिसे हरियाली तीज कहते हैं। आस्था, उमंग, सौंदर्य और प्रेम का यह उत्सव शिव-पार्वती के पुनर्मिलन के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। चारों तरफ हरियाली होने के कारण इसे हरियाली तीज कहते हैं। रिमझिम फुहारों के बीच तन-मन जैसे नृत्य करने लगता है। महिलाएं झूला झूलती हैं, लोकगीत गाती हैं और खुशिय
आज सावन मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया है, जिसे हरियाली तीज कहते हैं। आस्था, उमंग, सौंदर्य और प्रेम का यह उत्सव शिव-पार्वती के पुनर्मिलन के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। चारों तरफ हरियाली होने के कारण इसे हरियाली तीज कहते हैं। रिमझिम फुहारों के बीच तन-मन जैसे नृत्य करने लगता है। महिलाएं झूला झूलती हैं, लोकगीत गाती हैं और खुशियां मनाती हैं।
मान्यता है कि सावन में कई सौ सालों बाद शिव से पार्वती का पुनर्मिलन हुआ था। शिवजी पार्वती की तपस्या से प्रसन्न हुए थे और उन्हें पत्नी की तरह स्वीकार किया था। इसी कारण सुहागिनें इसे उत्साह से मनाती हैं। वे शादी का जोड़ा पहन कर मेहंदी आदि लगाकर पूरा श्रृंगार करती हैं। जिन लड़कियों की सगाई हो जाती है, उन्हें अपने होने वाले सास-ससुर से सिंदारा मिलता है, जिसमें श्रृंगार का सामान और मिठाई के रूप में घेवर होता है। विवाहिताओं को भी अपने पति एवं सास-ससुर से उपहार मिलते हैं। इस दिन महिलाएं उपवास रखती हैं और शिव-पार्वती की पूजा करती हैं।