भगवान का विश्राम-काल शुरू, देवउठनी एकादशी पर जागेंगे
ऐसी मान्यता है कि पूजा, आराधना, कथा वाचन करने व सुनने से पाप कटते हैं और मोक्ष की प्राप्ति होती है। भगवान की पूजा, वेद ग्रंथों का पठन करना, कथा सुनना पुण्यदायी माना गया है।
धार्मिक प्रवृत्ति के लोगों ने शुक्रवार को देवशयनी एकादशी पर व्रत रखा और भगवान विष्णु की आराधना करके सुख-समृद्धि की कामना की। देवशयनी एकादशी के साथ ही चातुर्मास शुरू हो गया और अब चार माह तक भक्तगण पूजा-पाठ पर ध्यान देंगे और अनेक तरह के मांगलिक संस्कार पर भी रोक लग जाएगी।
दीवाली के बाद जब देवउठनी एकादशी पर भगवान जागेंगे, उसके पश्चात पुनः मांगलिक कार्य शुरू होंगे। धर्म ग्रंथों के अनुसार आषाढ़ शुक्ल एकादशी के दिन भगवान विष्णु क्षीरसागर में शयन करने चले जाते हैं, जिसे भगवान के विश्राम काल का समय माना गया है और कार्तिक शुक्ल एकादशी के दिन वे जागते हैं इसलिए चार माह के काल को चातुर्मास कहा गया है। इस काल में भगवान की पूजा, वेद ग्रंथों का पठन करना, कथा सुनना पुण्यदायी माना गया है।
धार्मिक मान्यता में देवगणों के विश्राम के काल को चातुर्मास कहा जाता है, लेकिन सामाजिक मान्यता यह है चूंकि चार माह तक वर्षा काल में बारिश के चलते खेत-खलिहानों में हरियाली छाई रहती है और किसान खेती कार्यों में व्यस्त रहते हैं, जिसके चलते उनके पास समय नहीं रहता, साथ ही प्राचीन समय में पुल, सड़क ना होने से अन्य गांवों तक जाने में परेशानी होती थी, क्योंकि हर तरफ पानी भरा होता था, इसलिए गांववासी एक ही जगह रहकर तीज-त्योहार मनाया करते थे, साधु-संत भी इस दौरान कहीं नहीं आते-जाते थे और अपने आश्रम में ही पूजा-पाठ, तपस्या करने को महत्व देते थे। मौसम में बदलाव आने से खानपान गड़बड़ होता था, इसलिए शरीर को स्वस्थ रखने के लिए उपवास व धार्मिक क्रियाओं को करने पर जोर दिया जाता था। संभवतया इसीलिए साधु-संतों ने चातुर्मास का नियम बनाया। वेद ग्रंथ पढ़ने व कथा सुनने का समय चातुर्मास में पूजा, पाठ, भजन, कीर्तन, सत्संग व रामकथा, श्रीमद्भागवत कथा, शिव पुराण कथा, देवी भागवत कथा सहित अन्य कथाओं का पठन पाठन करने और कथा सुनने पर जोर दिया गया है। ऐसी मान्यता है कि पूजा, आराधना, कथा वाचन करने व सुनने से पाप कटते हैं और मोक्ष की प्राप्ति होती है। नहीं होंगे ये संस्कार, सगाई व विवाह संस्कार , मुंडन संस्कार, जनेऊ संस्कार , गृह प्रवेश।