माघ मास में पड़ने वाले हर पर्व के रूप-रंग निराले व अनोखे हैं
इस महीने की प्रत्येक तिथि पवित्र मानी गई है, लेकिन प्रमुख पर्व हैं-मकर संक्रांति, संकष्टी चतुर्थी, अचला सप्तमी, माघी पूर्णिमा षट्तिला एकादशी, मौनी अमावस्या, वसंत पंचमी और जया एकादशी।
भारतीय दर्शन में आध्यात्मिक दृष्टि से माघ मास का विशेष महत्व है। इसे आलोक मास भी कहा गया गया। सूर्योपासना के इस विशिष्ट माह की महिमा गोस्वामी तुलसीदास जी के इन शब्दों में स्वत: स्पष्ट हो जाती है:
माघ मकर गत रवि जब होई, तीरथ-पतिहि आव सब कोई। इस माह में पड़ने वाले हर पर्व के रूप-रंग निराले व अनोखे हैं। इसमें आध्यात्मिकता के साथ भरपूर उल्लास भी है और लोकतत्वों की जीवंतता भी। प्रकृति के प्रति आदरभाव और सकारात्मकता है, तो लोकरंजन की गहन भावना भी। इसमें दान देने की उदात्तता समाहित है। स्नान-दान का यह काल विशेष मानव समाज को अपने अंतर में संयम व त्याग के दिव्य भाव जगाने की शुभ प्रेरणा देता है। ऋ तु चक्र के परिवर्तन का यह पर्व तब मनाया जाता है, जब खेतों में फसल कट चुकी होती है और किसान अच्छी पैदावार के लिए प्रकृति को धन्यवाद देते हंै।
हमारा अन्नदाता खुद को प्रकृति से अलग नहीं, बल्कि उसको अपना सबसे प्रिय और आराध्य मानता है। इस स्नान पर्व के प्रसाद में भी यह विशिष्टता दिखती है। तिल, गुड़ और उड़द की दाल जैसे उष्ण प्रवृत्ति के भोच्य पदाथरें के सेवन का विधान। यही वजह है कि देश के विभिन्न प्रांतों में अद्भुत परंपराओं और रीति-रिवाजों के साथ एक माह का यह स्नान पर्व धूमधाम से मनाया जाता है।
इस स्नान पर्व का शुभारंभ मकर संक्रांति से होता है। इस दिन सूर्य नारायण अपनी दिशा बदलकर धनु राशि से मकर राशि में संक्रमण कर हमारे अधिक निकट आ जाते हैं। उनकी यह समीपता हमारे जीवन में नवजीवन भरती है। सूर्य की ऊर्जा अधिक मात्रा में मिलने से जीव-जगत में सक्रियता बढ़ जाती है। माघ के महीने में सूर्य का महत्व इसलिए बढ़ जाता है, क्योंकि वह अपनी गति उत्तरायण की ओर करके हमें यह संकेत देते हैं कि अब अंधकार को छोड़ प्रकाश की ओर बढ़ने का समय आ गया है। इसी कारण साधना विज्ञान के मर्मज्ञों ने माघ मास को सबसे अधिक महत्व दिया है। वैदिक साहित्य में उल्लेख है कि हमारे ऋ षि-मनीषी इस महीने में विभिन्न उच्चस्तरीय आध्यात्मिक साधनाएं करते थे। यह परंपरा रामायण एवं महाभारत काल में भी प्रचलित थी। रामायण काल में तीर्थराज प्रयाग में महर्षि भारद्वाज का आश्रम एवं साधना आरण्यक था, जहां समूचे आर्यावर्त के जिज्ञासु साधक एकत्रित हो संगमतट पर एक मास का कल्पवास करते थे। माघ मास में प्रयाग की पुण्यभूमि में होने वाले आध्यात्मिक समागम में बड़ी संख्या में लोग कल्पवास के लिए जुटते हैं। कुंभ पर्व पर तो इसकी रौनक देखते ही बनती है।
इस स्नान पर्व की उल्लेख चीनी इतिहासकार ह्वेनसांग ने अपने भारत के यात्रा वृत्तांत में भी किया है। हमारे पहले प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू ने भी अपनी कृति 'भारत एक खोज' में माघ मेले का अद्भुत चित्रण किया है। एक माह तक चलने वाले इस धार्मिक मेले में देश-विदेश से करोड़ों लोग स्नान, दान जप, तप, भजन, प्रवचन के लिए यहां आते हैं। प्रयाग, उत्तरकाशी, हरिद्वार, उच्जैन, नासिक, अयोध्या व नैमिषारण्य जैसे देश के प्रमुख तीर्थस्थलों में इस स्नान पर्व पर बड़ी संख्या में श्रद्धालु जुटते हैं। वैसे तो इस महीने की प्रत्येक तिथि पवित्र मानी गई है, लेकिन प्रमुख पर्व हैं-मकर संक्रांति, संकष्टी चतुर्थी, अचला सप्तमी, माघी पूर्णिमा षट्तिला एकादशी, मौनी अमावस्या, वसंत पंचमी और जया एकादशी। माघ शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि भीष्माष्टमी के नाम से भी प्रसिद्ध है। कहा जाता है कि इस तिथि को भीष्म पितामह ने सूर्य के उत्तरायण होने पर अपने नश्र्वर शरीर का त्याग किया था। उन्हीं की पावन स्मृति में यह पर्व मनाया जाता है। षट्तिला एकादशी के दिन छह प्रकार से तिल के सेवन का विधान है। इस दिन तिल के जल से Fान, तिल का उबटन, तिल से हवन, तिल मिले जल का पान,तिल का भोजन तथा तिल का दान किया जाता है।मौनी अमावस्या माघ मास का प्रमुख पर्व है, जो कृष्णपक्ष की अमावस्या को मनाया जाता है। आत्मसंयम की साधना की दृष्टि से इस Fान पर्व का विशेष महत्व है। इसी प्रकार माघ मास की शुक्ल पंचमी को वसंत पंचमी का पर्व मनाया जाता है। मान्यता है कि देवी सरस्वती का इस दिन आविर्भाव हुआ था। इसीलिए इसे वागीश्र्वरी जयंती एवं श्रीपंचमी कही गयी है। माघ मास के शुक्लपक्ष की एकादशी को जया एकादशी कहते हैं। मान्यता है कि इसका व्रत करने से मनुष्य को भोग और मोक्ष की प्राप्ति होती है।