Move to Jagran APP

..हमें भी वह गाना सुनाओ

एक बार फिर स्कूल बदलने की बात आई। मैंने सातवीं कक्षा में एंग्लो संस्कृत विक्टोरिया जुबली हाईस्कूल, दरियागंज में दाखिला लिया। उम्र जैसे-जैसे बढ़ती गई, मैं भी बड़ा होता गया, साथ ही गाने का शौक भी परवान चढ़ता गया। इन सबके अलावा मोहल्ले की रंगीनियत का भी असर था।

By Edited By: Published: Thu, 30 Aug 2012 01:05 PM (IST)Updated: Thu, 30 Aug 2012 01:05 PM (IST)
..हमें भी वह गाना सुनाओ

पिछले बार आपने पढ़ा कि संगीतकार रवि पुरानी दिल्ली के थे और वहीं के स्कूलों में उनकी शुरुआती पढ़ाई हुई। वे संगीत की दुनिया से बचपन से जुड़ चुके थे। अब आगे की कहानी..

loksabha election banner

एक बार फिर स्कूल बदलने की बात आई। मैंने सातवीं कक्षा में एंग्लो संस्कृत विक्टोरिया जुबली हाईस्कूल, दरियागंज में दाखिला लिया। उम्र जैसे-जैसे बढ़ती गई, मैं भी बड़ा होता गया, साथ ही गाने का शौक भी परवान चढ़ता गया। इन सबके अलावा मोहल्ले की रंगीनियत का भी असर था। जहां धर्मशाला में संगीत के स्वर गूंजते ही रहते थे। तब हमारे मकान में एक किराएदार रहते थे। वे शाम को अक्सर मुझे बुला लेते थे और इसरार करते, आज तुम बड़ा अच्छा गाना गा रहे थे, हमें भी वह गाना सुनाओ..। वे कहते और हम भी गाने के लिए बैठ जाते थे। इस तरह भी गायकी आगे बढ़ रही थी।

एक दिन वह भी आया जब स्कूल में हमारी कक्षा के लड़के ने संस्कृत के अध्यापक, जिन्हें हम सब पंडित जी कहते थे, को बता दिया कि रवि बहुत अच्छा गाता है। पंडित जी संगीत प्रेमी थे। उन्होंने भी भरी कक्षा में मुझसे गाने के लिए कह दिया। संकोच तो हुआ, पर क्या करता? पंडित जी का हुक्म था। गाना सुनाना पड़ा। गाना सुनकर पंडित जी बड़े खुश हुए, उन्होंने कहा, रवि.., तुम तो बहुत अच्छा गाते हो। बड़ी अच्छी आवाज है तुम्हारी..। पंडित को जब भी गीत सुनने की इच्छा होती, वे मुझे कहते और क्लास में ही गीत गाने लगता।

जब स्कूल का सालाना उत्सव हुआ, तो उन्होंने मेरा नाम भी उसमें लिखवा दिया। यह कहकर कि हमारे यहां का भी एक लड़का बहुत अच्छा गाता है। यह बात सन 1939 की है। उन दिनों फिल्म पुकार का एक गाना तुम बिन हमारी कौन खबर ले गोवर्धन गिरधारी.. बड़ा गाया जाता था। यह फिल्म भी तब बहुत हिट हुई थी। इसमें चंद्रमोहन, सरदार अख्तर, जो महबूब खान की पत्नी थीं, नसीम बानो, सोहराब मोदी वगैरह थे। गीत लिखे थे कमाल अमरोही ने और गाया था शीला ने। यह गीत काफी लोकप्रिय था और मुझे भी बेहद पसंद था। जब भी मुझसे गीत गाने की फरमाइश होती, मैं भी शुरू हो जाता गोवर्धन गिरधारी..। स्कूल के वार्षिकोत्सव में भी मैंने वही गाना सुना दिया। अब तो स्कूल में मुझे देखकर दूसरे छात्र कहने लगे, क्यों भाई गोवर्धन गिरधारी! क्या हाल है..? साथियों ने तब खूब तमाशा बनाया। खैर, इस तरह मैं दसवीं क्लास तक पहुंच गया, लेकिन दसवीं क्लास में मैं फेल हो गया। च फेल क्या हुआ, पूरे घर में जैसे हाय-तौबा मच गई। सभी डांटते, पिताजी चिल्लाने लगे, पढ़ता-लिखता था नहीं, फेल तो होना ही था, हर वक्त गाना। अब छोड़ो पढ़ाई-लिखाई, कुछ काम सीख लो, ताकि कभी भूखे नहीं मरना पड़े..।

चूंकि मैं फेल हो गया था तो इस वजह से कुछ बोल नहीं सकता था। तुरंत ही समझ में आ गया कि अब तो पिताजी जो हुक्म देंगे, उसी को मानना पडे़गा। लिहाजा मुझे इलेक्ट्रिक का काम सिखाने की बात तय हुई। वैसे भी इलेक्ट्रिक के काम में मेरी पहले से ही रुचि थी। मुझे ऐसे कामों में मजा भी आता था। हथौड़ी, पेंचकस, प्लास से किसी इलेक्ट्रॉनिक चीज को बनाना, संवारना मेरा काम हो गया। मैं सीखने के लिए वर्कशॉप पर सुबह जाता था और शाम को घर आता था। दिन भर ठोंका-पीटी चलती थी। सुबह धुली हुई फलालेन की सफेद कमीज और पाजामा पहन कर जाता था, जो शाम तक काले हो जाते थे। हाथ-पैर भी काले हो जाते।

छह महीने तक इलेक्ट्रीशियन का काम सीखा। उसके बाद दूसरी वर्कशॉप पर आ गया, जहां पर पम्प बनते थे क्योंकि इलेक्ट्रिक की दुकान पर कुछ सीखने को ज्यादा था नहीं, इंजीनियर अपना काम करते रहते थे और मुझे बस इधर-उधर का काम करना होता था, इसलिए मैंने वह काम छोड़ दिया। उन दिनों अंग्रेजों का जमाना था। वर्कशॉप के मालिक को सरकार की तरफ से एक बड़ा ऑर्डर मिला था एयर रेड प्रिकॉशन और पम्प बनाने का। एयर रेड प्रिकॉशन कहा जाता था एआरपी को, जो अगर बम ऊपर से गिरे तो छिपने के लिए गुफाएं जैसी तैयारी की जाती थीं और जिन्हें चांदनी चौक जैसी घनी आबादी वाले इलाकों की सड़कों पर बिछाया गया था। इसी तरह आग बुझाने के लिए पम्प बनाने का भी आर्डर मिला था। यह शॉप थी चांदनी चौक के कटरा नील में, यहां मैंने डेढ़ साल काम किया। यहां भी काम सिखाने वाला कोई नहीं था। उनका कहना था कि बस देखते जाओ। यह काम तो देखने से आ जाता है, तो आरमेचर वाइडिंग मोटर रिपेयर वगैरह सभी काम मैं देखता रहता था। वे कहते कि भई पेंचकस लाओ, जरा ठंडा पानी ले आओ तो सारे दिन मैं इधर से उधर चक्कर लगाता रहता था। सुबह उठकर मेरी ड्यूटी यही होती थी, मैं वर्कशॉप मालिक के घर जाकर आवाज लगाता था कि मैं आ गया हूं। उनका घर दूसरी मंजिल पर था। वे चाबी का गुच्छा लॉबी वाले जाल से नीचे फेंक देते थे। सबसे पहले मैं दुकान खोल कर वहां झाड़ू से कचरा साफ करता। फिर दस बजे के करीब मालिक आते थे। दुकान शुरू होने के बाद फिर वही दौड़ाना शुरू हो जाता था। कोई मेहमान आता, तो आवाज लगती कि भई जाओ, जरा गरम-गरम समोसे ले आओ। चूंकि काम सीखना मुझे अच्छा लगता था इसलिए ये सारे काम करना मेरी मजबूरी थी। वहां मुझे तनख्वाह कुछ नहीं मिलती थी, लेकिन हर काम का निरीक्षण बड़ी बारीकी से करता था। मैं हमेशा देखता था कि जब भी कोई पंखा ठीक होने के लिए आता, तो मेरा मालिक अंदर जाता था, वहां अलमारी में रखी किताब निकाल कर पढ़ता कि अमुक पंखे के आरमेचर में कितने नंबर का तार है और उसे कितनी बार घुमाना है। मुझे बड़ा ताज्जुब होता था कि इसे कैसे पता है कि इस पंखे के आरमेचर के लिए कितने नंबर का वायर चाहिए? उसे कितनी बार घुमाना है। कुछ दिनों बाद असलियत सामने आई कि अलमारी में रखी किताब में रहस्य कैद है। तब सोचा कि यह खुद तो मुझे कुछ बताया नहीं है तो क्यों न इसकी किताब में लिखे तथ्यों को नोट-बुक में नोट कर लिया जाए? फिर उस दिन से मैं शुरू हो गया। ज्यों ही मालिक किसी काम से बाहर जाता, मैं अलमारी से किताब निकाल कर उससे कॉपी करने लगता।

तब जेरॉक्स मशीन वगैरह तो होती नहीं थी कि मिनटों में पूरी किताब की प्रति कॉपी बन जाए। किताब से उतारने में काफी वक्त लग रहा था। एक दिन मेरा मालिक जरा जल्दी आ गया। उसने मुझे नकल करते अपनी आंखों से देखा, तो वह लगा डांटने, यह क्या हो रहा है, खबरदार जो आइंदा इस अलमारी को हाथ भी लगाया..। मैं सिर झुकाए डांट खाता रहा कि पता नहीं कि अब मेरे साथ यह क्या सलूक करेगा..? वैसे उस किताब से मैं नोट-बुक में काफी कुछ उतार चुका था। फिर एक गलती उससे खुद ही हो गई थी। उसने अपनी किताब तो मुझसे छीन ली, पर मेरी नोट-बुक मेरे ही पास रहने दी। थोड़ा-बहुत डांट-डपट कर वह चुप हो गया, लिहाजा बात वहीं रफा-दफा हो गई और इसी दुकान में काम करते हुए मैं एक दिन मरते-मरते बचा।

यह भी एक रोमांचक घटना है। हुआ यह कि हमारी दुकान में मालिक का कोई मेहमान आया। उसने हमेशा की तरह मुझे समोसे और जलेबी लाने का हुक्म दिया। जब मैं दुकान से समोसा और जलेबी लेकर लौट रहा था, बीच में मेरे स्कूल का साथी मुझे मिल गया। उसने मुझे रोक लिया। चूंकि मैं जल्दी में था, इसलिए मैंने यह कहकर उससे पिंड छुड़ाने की कोशिश की कि मालिक का मेहमान चला जाएगा, इसलिए मुझे ये चीजें तुरंत ही वहां पहुंचानी हैं, लेकिन वह लड़का भी जिद्दी था, बिल्कुल नहीं माना। उल्टे यह और बोला, इतनी जल्दी काहे की है, थोड़ी देर बाद जाकर दे देना..। उसने काफी देर तक मुझे बातों में उलझाए रखा। तभी धड़ाम.. की आवाज के साथ मुझे भारी चीज गिरने की आवाज सुनाई दी। आगे बढ़कर देखा तो आंखें फाड़े देखता ही रह गया। जिस गली में मैं दाखिल होने वाला था, वहीं की एक इमारत धड़ाम से गिरी थी। मुझे उसी गुफा जैसी गली से गुजरना था। अगर उस लड़के ने मुझे नहीं रोका होता तो उस वक्त मैं उसी स्थान पर होता, लेकिन कहते हैं न कि जाको राखे साइयां मार सके न कोये.., उस दिन सचमुच वह लड़का मेरे लिए भगवान बन कर ही मेरे पास आया था।

जब मैं वहां काम कर रहा था, तो लगा कि अब वहां कुछ सीखने के लिए नहीं है। घर में इस बारे में बात हुई, तो नया रास्ता निकलता दिखा। हमारे दादा जी की देहली क्लाथ मिल (डीसीएम) के मालिक सर श्रीराम जी से पुरानी जान-पहचान थी, क्योंकि अंग्रेजों के जमाने में दादा जी और सर श्रीराम साथ ही काम करते थे, लेकिन दादा जी का किसी अंग्रेज अफसर से झगड़ा हो गया। इसलिए उन्हें नौकरी से हाथ धोना पड़ा। श्रीराम जी वहीं रहे और अंग्रेजों के जाने के बाद मिल के मालिक बन गए। एक दिन घर पर बात चली कि अब रवि ने काफी तजुर्बा हासिल कर लिया है। उसे देहली क्लाथ मिल में इसे नौकरी मिल सकती है और श्रीराम तो दादा जी के खास दोस्त हैं, तो फिर कुछ बात तो बन ही सकती थी। दादा जी मुझे लेकर सर श्रीराम के पास पहुंच। उन्होंने दादा जी को बड़ी इज्जत दी और पूछा, कहिए पंडित जी, कैसे आना हुआ? दादा जी ने बताया कि यह मेरा पोता है। इसी की नौकरी के लिए आया हूं। श्रीराम जी ने फौरन मुझे बतौर अप्रेंटिस नौकरी पर रख लिया। महीने भर काम करने के बाद मुझे तनख्वाह मिली पंद्रह रुपये और सत्तरह रुपये महंगाई भत्ता भी, यानी बत्तीस रुपये तनख्वाह मिली, जो मेरी सही में पहली तनख्वाह थी। यह मेरी जिंदगी की पहली कमाई थी। उस दिन मेरी खुशी का ठिकाना नहीं था। यहां मैंने करीब डेढ़ साल तक काम किया। इस तरह जिंदगी के कुछ और दिन बीते।

रतन

मोबाइल पर ताजा खबरें, फोटो, वीडियो व लाइव स्कोर देखने के लिए जाएं m.jagran.com पर


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.