फिल्म रिव्यू: वेलकम बैक (1.5 स्टार)
अनीस बज्मी और फिरोज नाडियाडवाला की जोड़ी ने 2007 में ‘वेलकम’ से दर्शकों का मनोरंजन किया था। आठ सालों के बाद वे फिर से आए है और इस बार उनकी फिल्म का नाम है ‘वेलकम बैक’। ‘वेलकम बैक’ में पिछली फिल्म के नाना पाटेकर, परेश रावल और अनिल कपूर हैं।
अजय ब्रह्मात्मज
प्रमुख कलाकार: जॉन अब्राहम, नाना पाटेकर, अनिल कपूर, श्रुति हासन, शाइनी आहूजा, परेश रावल
निर्देशक: अनीस बज्मी
संगीत निर्देशकः अनु मलिक, अभिषेक रे
स्टार: 1.5
अनीस बज्मी और फिरोज नाडियाडवाला की जोड़ी ने 2007 में ‘वेलकम’ से दर्शकों का मनोरंजन किया था। आठ सालों के बाद वे फिर से आए है और इस बार उनकी फिल्म का नाम है ‘वेलकम बैक’। ‘वेलकम बैक’ में पिछली फिल्म के नाना पाटेकर, परेश रावल और अनिल कपूर हैं। कुछ और सहयोगी कलाकार भी रिपीट किए गए हैं। हीरो-हीरोइन नए हैं। जॉन अब्राहम और श्रुति हासन ने हीरो-हीरोइन की जिम्मेदारी निभाई है।
फिल्म की कहानी पिछली फिल्म की तरह उलझी हुई है। कोई भी सिरा पकड़ने खोजने की कोशिश करना व्यर्थ है। इस बार नसीरूद्दीन शाह भी हैं। साथ में शाइनी आहूजा एक अंतराल के बाद लौटे हैं। अनीस बज्मी का फॉर्मूला पिछली फिल्म में काम कर गया था। इस फिल्म में भी हिस्सों में हंसी आती है। खास कर फिल्मों के हवाले से लिए गए सीन और द्विअर्थी संवादों पर दर्शक हंसते हैं। शालीन दर्शकों के अंदर भी एक अश्लील व्याक्ति बैठा होता है, जो एडल्ट जोक और सीन पर मजे लेता है। सिनेमा मनोरंजन की ऐसी व्यक्तिगत प्रक्रिया है, जो थिएटर में समूह में संभव होती है। थिएटर में भीड़ की मानसिकता काम करती है। हम उस समूह का हिस्सा हो जाते हैं। बाकी दर्शकों की तरह हंसने और ठहाके लगाने लगते हैं। बाद में संकोच और पछतावा होता है कि हम बह क्यों गए थे? ‘वेलकम बैक’ को देखते हुए ऐसा लग सकता है।
अनीस बज्मीे ने प्रसंगों को जोड़ कर फिल्म बनाई है। उदय और मजनू शरीफ होने के बाद अब शादी करना चाह रहे हैं। तभी उन्हें पता चलता है कि उनकी एक बहन भी है, जिसकी शादी करनी है। बहन की शादी के लिए वे योग्य लड़के की तलाश में निकलते हैं। साथ ही खुद एक ही लड़की के दीवाने हो जाते हैं। स्थितियां हास्यास्पद होती हैं। इन स्थितियों में गंदे, फूहड़ और द्विअर्थी संवादों की बौछार जारी रहती है। फिल्म इंडस्ट्रीे में माना जाता है कि कभी चवन्नी छाप दर्शकों को ऐसी फिल्में अच्छी लगती थी। अभी मल्टीप्लेक्स के दौर में भी अगर इन फिल्मों को दर्शक मिल रहे हैं तो हमें बदले हुए दर्शकों के प्रोफाइल की ठीक से परख करनी होगी।
नसीरूद्दीन शाह, परेश रावल, अनिल कपूर और नाना पाटेकर व्यर्थ दृश्यों को भी रोचक बनाने की सफल कोशिश करते हें। सवाल है कि ये दिग्गाज अभिनेता ऐसे फूहड़ कंसेप्ट के लिए क्यों और कैसे राजी होते हैं? अपनी गरिमा और छवि भुला कर वे ऐसी फिल्में क्यों करते हैं? श्रुति हासन और जॉन अब्राहम के बीच होड़ सी लगी है कि कौन कितना निराश करता है। दोनों ही भाव और अभिव्यक्ति में कमजोर हैं। इस फिल्म में अंकिता श्रीवास्तव को डिंपल कपाडिया के साथ पेश किया गया है। फिल्म खत्म हाने पर उन्होंने लंबी सांस लेने के बाद कहा होगा कि किस से पाला पड़ा। अंकिता श्रीवास्तव को फिल्म में जितना स्पेस दिया गया है, उससे वह अच्छा प्रभाव छोड़ सकती थीं। फिर भी वह निराश करती हैं। इस फिल्म को देखते हुए यह एहसास होता है कि मध्य पूर्व एशिया के अमीरों के पास कितनी आलीशान इमारतें हैं। उनकी इमारतें किसी राजप्रासाद से कम नहीं हैं। फिल्मों और टीवी में तो ऐसे सेट तैयार किए जाते हैं।
अवधिः 153 मिनट
abrahmatmaj@mbi.jagran.com