Move to Jagran APP

फिल्म रिव्यू: राजा नटवरलाल (2.5 स्टार)

ठगों के बादशाह नटवरलाल उर्फ मिथिलेश कुमार श्रीवास्तव के नाम-काम को समर्पित 'राजा नटवरलाल' कुणाल देशमुख और इमरान हाशमी की जोड़ी की ताजा फिल्म है।

By Edited By: Published: Fri, 29 Aug 2014 11:25 AM (IST)Updated: Fri, 29 Aug 2014 12:01 PM (IST)
फिल्म रिव्यू: राजा नटवरलाल (2.5 स्टार)

अजय ब्रह्मात्मज

loksabha election banner

प्रमुख कलाकार: इमरान हाशमी, हुमैमा मलिक, केके मेनन और परेश रावल।

निर्देशक: कुणाल देशमुख

संगीतकार: युवान शंकर राजा

स्टार: ढाई

ठगों के बादशाह नटवरलाल उर्फ मिथिलेश कुमार श्रीवास्तव के नाम-काम को समर्पित 'राजा नटवरलाल' कुणाल देशमुख और इमरान हाशमी की जोड़ी की ताजा फिल्म है। दोनों ने इसके पहले 'जन्नत' और 'जन्नत 2' में दर्शकों को लुभाया था। इस बीच इमरान हाशमी अपनी प्रचलित इमेज से निकल कर कुछ नया करने की कोशिश में अधिक सफल नहीं रहे। कहा जा रहा है कि अपने प्रशंसकों के लिए इमरान हाशमी पुराने अंदाज में आ रहे हैं। इस बीच बहुत कुछ बदल चुका है। ठग ज्यादा होशियार हो गए हैं और ठगी के दांव बड़े हो गए हैं। राजा बड़ा हाथ मारने के चक्कर में योगी को अपना गुरु बनाता है। एक और मकसद है। उसे अपने बड़े भाई के समान दोस्त राघव के हत्यारे को सबक भी सिखाना है। उसे बर्बाद कर देना है।

कहानी मुंबई से शुरू होती है और फिर धर्मशाला होते हुए दक्षिण अफ्रीका के शहर केप टाउन पहुंचती है। इमरान हाशमी भी योगी की मदद से राजा से बढ़ कर राजा नटवरलाल बनता है। वह अपना नाम भी मिथिलेश बताता है। फिल्म में ठगी के दृश्य या तो बचकाने हैं या फिर अविश्वसनीय। फिल्म की पटकथा सधी और कसी हुई नहीं है। साफ दिखता है कि डांस और गाने के लिए हीरोइन को बार डांसर बना दिया गया है। पाकिस्तान से आई हुमैमा मलिक को इस फिल्म में करने से अधिक दिखाने का काम मिला है। फुर्सत मिलते ही वह चुंबन और आलिंगन में मशगूल हो जाती हैं। वह समर्थ अभिनेत्री हैं, लेकिन स्क्रिप्ट की मांग ही न हो तो प्रतिभा का क्या करें? इस तरह की फिल्म की जरूरत के मुताबिक वह ढलने की कोशिश करती हैं, लेकिन झिझक उभर कर आ जाती है। हां, इमरान हाशमी अपने पुराने अंदाज में हैं। ऐसे किरदारों को उन्होंने साध लिया है। उन्होंने गाने, तेवर और प्रेजेंस में रौनक बिखेरी है।

'राजा नटवरलाल' में सभी किरदारों को कुछ चुटीले संवाद मिले है। संजय मासूम ने इन संवादों में देसी अनुभवों को शब्दों से सजा दिया है। ये संवाद फिल्म के कथ्य और दृश्यों के अनुरूप हैं और भाव को मारक बना देते हैं। हिंदी फिल्मों में बोलचाल की भाषा के बढ़ते असर में डायलॉग और डायलॉगबाजी की मनोरंजक परंपरा को यह फिल्म वापस ले आती है। कलाकारों में परेश रावल ऐसे किरदारों के लिए पुराने और अनुभवी अभिनेता हैं। लंबे समय के बाद दीपक तिजोरी छोटी सी भूमिका में भी अपनी मौजूदगी दर्ज करते हैं। के के मेनन निराश करते हैं। दरअसल, उनके चरित्र को ढंग से गढ़ा ही नहीं गया है। उनकी एक्टिंग मूंछ और विग संभालने में ही निकल गई है।

अगर आप फिल्म देखें तो अवश्य बताएं कि केके मेनन के किरदार का क्या नाम हैं? मुझे कभी वरदा, कभी वरधा, कभी वर्धा तो कभी वर्दा सुनाई पड़ा। हिंदी फिल्मों में उच्चारण की दुर्गति बढ़ती जा रही है?

अवधि: 141 मिनट

बाकी फिल्‍मों का रिव्‍यू पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

रियलिटी शो में एक लड़की ने जड़ा इमरान हाश्‍ामी को थप्‍पड़, क्लिक करके जानें क्‍यों


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.