फिल्म रिव्यू: 'नीरजा', दिलेर बेटियों को समर्पित (4 स्टार)
'नीरजा' में नीरजा बनी सोनम कपूर ने अपनी लाइफटाइम परफॉरमेंस दी है। उस किरदार को उन्होंने पूरी शिद्दत से निभाया है। नीरजा के व्यक्तित्व से जुड़ी सभी मुमकिन बारीकियों पर उनकी मेहनत साफ दिखती है।
-अमित कर्ण
मुख्य कलाकार- सोनम कपूर, शबाना आजमी और शेखर राविजियानी
निर्देशक- राम माधवानी
संगीत निर्देशक- विशाल खुराना
स्टार- 4 स्टार
'जिंदगी बड़ी होनी चाहिए, लंबी नहीं' और 'पुष्पा आई हेट टीयर्स' हिंदी फिल्मों के कालजयी संवाद हैं। इनमें गहरा जीवन दर्शन भी छिपा है। 'नीरजा' की कहानी इन्हीं फलसफों के दरम्यान एक अविस्मरणीय, रोमांचक और दुस्साही सफर तय करती है। यह बताती है कि परिस्थितियां चाहे जितनी विकट हों, अपने कर्तव्य से मुंह मत मोड़ो। वह परिवार से भी बड़ी चीज है। जब आंच इंसान की सेल्फ रिस्पेक्ट पर आए तो वैसा करने वालों को तहस-नहस कर दो। अपने संघर्ष का सफर अकेले तय करो। साथ ही न गलत करो और न गलत सहो। एक चीज और वह यह कि जिंदगी में डर भी जरूरी है। वह हिम्मत बंधाने में सहायक होता है। नायिका नीरजा अपनी दिलेरी से वह सब कुछ कह जाती है।
फिल्म दर्शकों को रुलाने, एहसास करने, एहसास देने और सोचने पर मजबूर करती है। महज 23 साल की नीरजा 379 विमान यात्रियों में से 358 की जान बचा यह स्थापित करती है कि बेटियां भी कुल का दीपक होती हैं। मरणोपरांत उन्हें राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह ने अशोक चक्र से सम्मनित किया था।
'नीरजा' में नीरजा बनी सोनम कपूर ने अपनी लाइफटाइम परफॉरमेंस दी है। उस किरदार को उन्होंने पूरी शिद्दत से निभाया है। नीरजा के व्यक्तित्व से जुड़ी सभी मुमकिन बारीकियों पर उनकी मेहनत साफ दिखती है। फिल्म में इस्पाती इच्छानशक्ति की नीरजा बनने से पहले नीरजा एक असफल शादी से गुजरती है। घनघोर मर्दवादी सोच व अप्रोच वाले रमेश के जुल्म को आम लड़कियों की तरह सहती है। लेकिन अति होने पर वह बगावत करती है। सोनम कपूर ने नीरजा के उस कायांतरण को असीम ऊंचाई प्रदान की है। आगे विमान अपहरण के दौरान फिलिस्तीनी आतंकियों के साथ नीरजा की सूझबूझ को भी उन्होंने पर्दे पर जीवंत कर दिया है।
सोनम के अलावा शबाना आजमी ने भी दिल को छू लेने वाली अदाकारी की है। वे नीरजा की मां रमा की भूमिका में हैं। अपनी जवान बेटी के खोने के दर्द को उन्होंने स्क्रीन पर यादगार बना दिया है। फिल्म की आखिर में रमा की दी गई स्पीच दर्शकों की आंखें नम करने को काफी हैं। नीरजा के पिता हरीश जी का किरदार योगेंद्र टिक्कू ने निभाया है। इससे पहले 'नो वन किल्ड जेसिका' में जेसिका के मजबूर पिता को उन्होंने बखूबी निभाया था। यहां भी वे प्रभावी लगे हैं। चौंकाने वाली अदाकारी अबरार जहूर, अली बल्दीवाला, जिम सरभ ने की है। फिलिस्तीनी आतंकियों के रोल में वे तीनों जंचे हैं। उन तीनों की यह पहली फिल्म है। फिल्म में नीरजा के लव इंट्रेस्ट बने हैं शेखर रिजवानी। बतौर एक्टर शेखर की भी यह पहली फिल्मे है। उन्होंने भी डिसेंट काम किया है।
कलाकारों की कड़ी मेहनत को उम्दा निर्देशन और पटकथा का भी भरपूर साथ मिला है। डायरेक्टर राम माधवानी ने 14 साल पहले 'लेट्स टॉक' बनाई थी, मगर वह उतनी चर्चा नहीं बटोर सकी, जितनी राम माधवानी के ऐड कैंपेन बटोरते रहे हैं। बहरहाल, 'नीरजा' से उन्होंने जोरदार कमबैक किया है। कराची में 5 सितंबर 1986 को पैन एम फ्लाइट 73 के हाइजैक की कहानी को उन्होंने एंगेजिंग यानी चित्ताकर्षक बनाया है। पटकथा व कहानी सायवन क्वादरस ने लिखी है, जिन्होंने पूर्व में 'मैरी कॉम' जैसी सफल फिल्म लिखी थी। ऐसा लगता है कि उन्हें बायोपिक लिखने में महारथ हासिल हो चुकी है। राम माधवानी एक साथ नीरजा की जिंदगी में घट रहे घटनाक्रम, आतंकियों की तैयारियों को एक सूत्र में पिरोया है। उससे कहानी की धार बनती रहती है। माकूल रोमांच कायम रहता है। 'मार्गरिटा विद ए स्ट्रा' कर चुकीं एडिटर मोनिषा आर बलदवा ने एडिटिंग चुस्त रखी है। दो घंटे दो मिनट में फिल्म जीवन जीने के तरीके से वाकिफ करा ले जाती है। प्रसून जोशी के गानों का भी अच्छा साथ फिल्म को मिला है। सीधे शब्दों में कहा जाए तो राम माधवानी भावनाओं का कारोबार कर गए हैं।
अवधि- 122 मिनट