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Movie Review: आज के समय की एक ज़रूरी फिल्म है-कड़वी हवा (चार स्टार)

इंसानी फितरत के चलते जिस तरह हम प्रकृति का बेजा इस्तेमाल कर रहे हैं, उससे आखिर हमारी पृथ्वी पर और वातावरण पर कितना भयानक असर हो रहा है इसे महसूस करना अत्यंत आवश्यक है।

By Hirendra JEdited By: Published: Fri, 24 Nov 2017 12:07 PM (IST)Updated: Fri, 24 Nov 2017 12:15 PM (IST)
Movie Review: आज के समय की एक ज़रूरी फिल्म है-कड़वी हवा (चार स्टार)
Movie Review: आज के समय की एक ज़रूरी फिल्म है-कड़वी हवा (चार स्टार)

- पराग छापेकर

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मुख्य कलाकार: संजय मिश्रा, रणवीर शौरी, तिलोत्तमा शोम आदि।

निर्देशक: नील माधव पांडा

निर्माता: दृश्यम फिल्म्स

कुछ फिल्में मनोरंजन के लिए होती है, कुछ फिल्में आपको जानकारियां देने के लिए होती है और कुछ फिल्में आपको झकझोर कर जगाने के लिए होती है। ऐसी ही एक फिल्म इस हफ्ते आपके सामने है 'कड़वी हवा। इसमें कोई ख़ान नहीं, इस फिल्म ने शहरों को अपनी पब्लिसिटी से नहीं भरा इसलिए हो सकता है आप इसे नजरअंदाज भी कर दें। आप इसका विज्ञापन अखबार में पढ़ेंगे जरूर मगर कलाकारों के चेहरे देखकर शायद आप यह तय कर लें कि यह फिल्म नहीं देखनी! मगर यह फिल्म अपने समय की एक महत्वपूर्ण फिल्म है।

चंबल के सुदूर गांव में एक बूढ़ा नेत्रहीन हेदु( संजय मिश्रा) अपने बेटी मुकुंद( भूपेश सिंह) और बहू पार्वती (तिलोत्तमा शोम) और दो बच्चियों के साथ साथ रहने वाला एक गरीब किसान है और जैसे तैसे ज़िंदगी बसर कर रहा है।  हेदु अपने बेटे मुकुंद के बैंक से लिए हुए कर्ज के कारण परेशान है उसे यह तक नहीं पता कि आखिर उसके बेटे के ऊपर कितना कर्ज है? इस राशि का पता लगाने के लिए वह लंबी दूरी तक पैदल-पैदल जा कर बैंक पहुंचता है।

मगर उसे असफलता ही हासिल होती है वहीं दूसरी ओर रिकवरी एजेंट है (रणवीर शौरी) जिसे गांव के लोग यमदूत कह कर पुकारते हैं, वह जिस गांव जाता है वहां पैसा वसूलने के चक्कर में कई सारे लोग आत्महत्या कर लेते हैं। रिकवरी एजेंट की एक अलग समस्या है उसे अपने परिवार को उड़ीसा से अपने पास बुलाना है। उसका परिवार ओडिशा के तूफान में बेघर हो कर रह रहा है।

जब हेदु और इस रिकवरी एजेंट का आमना-सामना होता है तो एक नया समीकरण सामने आता है। दोनों ही मौसम के मारे हैं। इन दोनों के मिलने से क्या स्थितियां सामने आती हैं, इसी ताने-बाने पर बुनी गई है फिल्म 'कड़वी हवा'। निर्देशक नील माधव पांडा ने बड़ी ही खूबसूरती से संजीदगी के साथ हर दृश्य में बिगड़ते मौसम की भयानकता बिन कहे उकेरी है।

एक दृश्य में स्कूल में टीचर अपने बच्चों से मौसम के बारे में पूछता है। एक बच्चा मासूमियत से जवाब देता है कि मौसम दो होते हैं-ठंड और गर्मी, बारिश तो उसने देखी नहीं। इस छोटे से दृश्य में आप सिहर जाएंगे! एक दूसरे दृश्य में जब मुकुंद रात को घर नहीं आता तो पार्वती अपने ससुर को उठाते हुए सिर्फ एक बात कहती है - ये घर नहीं आए! इस दृश्य में तिलोत्तमा शोम ने अपने एक ही संवाद से सिनेमाघर के आंसू निकलवा दिए!

संजय मिश्रा के शानदार अभिनय के चलते आपको उस भयानकता का एहसास होने लगता है जो बारिश के ना होने से हमारे किसान झेल रहे हैं! एजेंट के तौर पर रणवीर शौरी को न्यूज़ देखते हुए पता चलता है कि उड़ीसा में फिर एक तूफान आया है। इस दृश्य में रणवीर ने ऐसी जान डाली है कि देखने वाले जान सांसत में फंस जाती है।

कुल मिलाकर यह कहे तो गलत नहीं होगा नील माधव पांडा ने अपने समय की एक बेहतरीन फिल्म बनाई है जिसमें भले ही चमक-दमक ना हो देखना जरूरी है। इंसानी फितरत के चलते जिस तरह हम प्रकृति का बेजा इस्तेमाल कर रहे हैं, उससे आखिर हमारी पृथ्वी पर और वातावरण पर कितना भयानक असर हो रहा है इसे महसूस करना अत्यंत आवश्यक है। इसीलिए यह फिल्म देखना भी आवश्यक है।

जागरण डॉट कॉम रेटिंग: 5 में से 4 (चार)

अवधि: 99 मिनट


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