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फिल्म समीक्षा : बेवकूफियां (डेढ़ स्टार)

मुंबई (रतन) निर्देशक : नुपुर अस्थाना कलाकार : ऋषि कपूर, आयुष्मान खुराना, सोनम कपूर। अवधि : 119 मिनट स्टार : डेढ़ स्टार कहते हैं कि पैसा प्यार के बीच कुछ पल के लिए कांटे तो चुभोता है, पर जीत फिर प्यार की ही होती है। देखें, तो ऐसी कहानी वाली न जाने कितनी फिल्में आई होंगी समय के सांचे में ढली। यशराज की ि

By Edited By: Published: Fri, 14 Mar 2014 06:04 PM (IST)Updated: Sat, 15 Mar 2014 01:35 PM (IST)
फिल्म समीक्षा : बेवकूफियां (डेढ़ स्टार)

मुंबई (रतन)

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निर्देशक : नुपुर अस्थाना

कलाकार : ऋषि कपूर, आयुष्मान खुराना, सोनम कपूर।

अवधि : 119 मिनट

स्टार : डेढ़ स्टार

कहते हैं कि पैसा प्यार के बीच कुछ पल के लिए कांटे तो चुभोता है, पर जीत फिर प्यार की ही होती है। देखें, तो ऐसी कहानी वाली न जाने कितनी फिल्में आई होंगी समय के सांचे में ढली। यशराज की फिल्म 'बेवकूफियां' भी समय की चाशनी में डुबोई हुई पुरानी कहानी ही है। पता नहीं निर्माता आदित्य चोपड़ा को इस कहानी में क्या खास नजर आया और निर्देशक नूपुर अस्थाना ने क्या अलग देखा? यह सवाल फिल्म देखने के बाद लोगों के मन में होता है।

संभव है कि निर्माता-निर्देशक ने यह सोचा हो कि एयरलाइंस और बैंक की नौकरी के साथ मंदी का तड़का कहानी को नया रूप देगा, लेकिन मंदी का दौर आज बस कहने के लिए है यह सभी जानते हैं। इनसे अलग कहानी जब भारतीय परिवेश की है, तो भारतीय इस सोच के साथ नहीं जीते कि जो कमाओ, उससे ज्यादा खर्च करो। यह बात दुनिया भी जानती है और यही वजह रही कि भारत में मंदी का उतना असर तो नहीं ही पड़ा जितना दूसरे देशों में। तो इस कहानी में यहीं से गडबड़ी शुरू होती है और फिर प्यार में हां और ना के साथ फिर हां पर आकर खत्म हो जाती है।

कहानी को लेकर शायद इसके निर्माता-निर्देशक संशय की स्थिति में पहले से थे, तभी तो उन्होंने सोनम को लेकर स्वीमिंग पूल वाला सीन क्रिएट किया और उन्हें बिकनी में दिखाया। सोनम इस लुक में अभी तक किसी फिल्म में नहीं दिखी थीं और न ही इस तरह से उन्होंने लिपलॉक सीन किसी फिल्म में किया है। कुल मिलाकर हिंदी फिल्मों में अच्छी कहानी का अभाव है, यह बात एक बार फिर सामने आई 'बेवकूफियां' के जरिए। फिल्म के बारे में कहा जा सकता है कि यह यशराज जैसी ऊंची दुकान का फीका पकवान है।

फिल्म की कहानी तीन किरदारों, मोहित चढ्डा, मायरा और वी के सहगल के इर्दगिर्द घूमती है। मोहित बने हैं आयुष्मान खुराना, मायरा की भूमिका निभाई है सोनम कपूर ने और वी के सहगल की भूमिका में हैं ऋषि कपूर। वी के सहगल की बेटी मायरा एक बैंक में बड़े पद पर है। उसका ब्वॉयफ्रेंड मोहित भी एक एयरलाइंस में अच्छे ओहदे पर है, लेकिन उसकी सैलरी मायरा से कम है। वी के सहगल देश के सेक्रेटरी लेवल के ओहदे पर हैं और वे अपनी बेटी के लिए ऐसे लड़के को चुनना चाहते हैं, जो मायरा को दुनिया भर की खुशी दे, खासकर उसके पास पैसे की कोई कमी न हो। यही वजह है कि जब सहगल को पता चलता है कि मोहित की सैलरी मायरा से कम है, वह इनके प्यार के बीच कांटा बन जाता है और पूरी कहानी में कांटा बना रहता है। जब मोहित को प्रमोशन मिलता है, उसके बाद ही उसकी नौकरी मंदी की वजह से चली जाती है, लेकिन मायरा और मोहित के दोस्त सहगल को यह नहीं जानने देते कि वह सड़क पर आ गया है। फिर पैसे को लेकर मोहित और मायरा में अनबन होती है और दोनों अलग हो जाते हैं, लेकिन नौकरी से सेवामुक्त हो चुके सहगल को अब मोहित की कुछ बातें अच्छी लगने लगती हैं। उधर, मोहित के ख्यालों से दूर जाने के लिए मायरा विदेश जाने के लिए तैयार होती है, लेकिन अंत में सहगल ही कुछ ऐसा करता है और फिर मोहित-मायरा एक हो जाते हैं।

अभिनय की बात की जाए, तो सोनम कपूर अपने अंदाज में सही दिखी हैं। आयुष्मान खुराना का भी काम इस फिल्म में पहले से अच्छा हुआ है। ऋषि कपूर ने कमाल का काम किया है। फिल्म को खूबसूरत बनाने के लिए ऐसे किसी सीन या लोकेशन को नहीं दिखाया गया है, जो दर्शकों की आंखों को सुकून दे। पर्दे पर सिर्फ कैरेक्टर नजर आते हैं। गीत-संगीत की बात की जाए, तो फिल्म देखते हुए इसका मजा नहीं मिलता। सभी गीत आते-जाते से लगते हैं। बस 'गुलछर्रे..' को सुनना थोड़ा अच्छा लगता है। फिल्म में संगीत रघु दीक्षित का है। गीत लिखे हैं अनविता दत्त ने।


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